जरूरतें, बदलती सोच और सहूलियत का मिश्रण है लिव इन रिलेशनशिप में रहना। मेट्रो शहरों में कल्चरल चेंज तेजी से आने के साथ लिव इन में रहना चलन बनता जा रहा है। एक दूसरे के साथ रहने की इच्छा को खुलकर जाहिर करने वाले बड़े ही आराम से लिव इन में रहने का तरीका अपना रहे हैं।
आजादी से रहने की इच्छा और किसी का साथ लिव इन के तौर पर आसान रास्ता माना जा रहा है। पिछले कुछ सालों में लिव इन की लोकप्रियता और स्वीकार्यता इस कदर बढ़ी की सुप्रीम कोर्ट ने इस पर खुलकर टिप्पणी की। युवाओं की इस सोच से मेल खाती हुई सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी इस बात का सबूत है कि लोगों की इच्छा को कानूनी जामा पहनाए जाना जरूरी है।
कुछ समय पहले लिव इन को लेकर लोग खुलकर बोलने से हिचकते थे परंतु अब इसमें बदलाव आ रहा है। खासतौर पर युवा लिव इन को लेकर पहले से कहीं अधिक उत्साहित हैं, साथ ही इसको जगजाहिर करने से भी नहीं हिचकते। लिव इन में रहने वाले युवा मानते हैं कि लंबे समय की पहचान और एकदूसरे को लेकर बेहतर समझ लिव इन को एक अच्छा तरीका और रिश्ता बनाती है। ये युवा आपस में झगड़ते भी हैं परंतु बढ़िया अंडरस्टैंडिंग के कारण सभी परिस्थितियों से बाहर निकल आते हैं।
लिव इन इमोशन से आगे
लिव इन में रहने का फैसला पूरी तरह से इमोशनल नहीं होता। इसका एक खास पहलू आर्थिक भी है। लिव इन का चलन खासतौर पर बड़े शहरों में है। यहां होने वाली आर्थिक मजबूरियों के चलते भी लोगों को पार्टनर की जरूरत होती है। ऐसे में युवा विपरीत सेक्स के पार्टनर के साथ लिव इन में रहने लगते हैं। इससे उन्हें फायनेशियल सपोर्ट भी मिलता है और इमोशनल भी। लिव इन में रहने को आजादी के रूप में देखने वाले ये युवा अपनी फायनेंशियल और इमोशनल जरूरतों को भी इस चलन के साथ जोड़ रहे हैं।
आजादी की चाह
शादी का एक बहुत ही कानूनी ताकतवर पक्ष है। शादी करने के बाद, इसमें पार्टनर से अलग होना मुश्किल और कानूनी झमेलों वाला काम है। वहीं लिव इन आजादी का अहसास है। बड़े ही आराम से साथी का साथ पसंद न आने पर युवा अलग होने का फैसला कर सकते हैं। इस तरह कानूनी बंधनों से बचना आसान है।
जिम्मेदारियां न होना
जिम्मेदारियों से घबराने और उन्हें न उठाने की इच्छा वाले युवाओं के लिए लिव इन बेहतर उपाय है। यहां दोनों पक्ष सभी परिस्थितियों को जानते हुए साथ आते हैं, ऐसे में दोनों ही पक्षों की जिम्मेदारी शादी के मुकाबले बहुत ही कम होती है। इसके अलावा न सिर्फ एक दूसरे को लेकर, बल्कि एक दूसरे के परिवारों को लेकर भी जिम्मेदारी नहीं उठानी होती।
दोहरी सोच
हालांकि लिव इन को कोर्ट की भी मान्यता मिल चुकी है परंतु युवा खुद इस रिश्ते को लेकर दोहरी सोच का शिकार हैं। जितनी आसानी से वे लिव इन में रहने के लिए तैयार हो जाते हैं उतनी ही आसानी से वे यह साफ कर देते हैं कि शादी के मुद्दे पर वे लिव इन में रहे लड़के या लड़की से रिश्ता नहीं जोड़ना चाहते। शादी के नाम पर उन्हें इस तरह के किसी भी चक्कर में न पड़ा हुआ पार्टनर चाहिए। वजह साफ है लिव इन में रहने की वजह चाहे जो भी हो, युवा आज भी शादी को लेकर अलग सोच रखते हैं और कहीं न कही पुराने ढर्रे पर ही सोचते हैं।
समाज की अस्वीकृति
युवा जहां इस तरीको को आसान और सुविधाजकनक समझते हैं बडे उम्र के लोग इस तरह की स्वीकृति को स्वीकारने की स्थिति में नहीं है। अधिकतर लोगों का मानना है कि इस रिश्ते में लड़कियों को हर प्रकार से शोषण होता है। उनके हाथ कुछ नहीं रहता। यह समय और वक्त बर्बाद करने का तरीका है। इसमें पार्टनर से अलग होने पर लड़कियों को स्वयं ही जूझना होता हैं क्योंकि अक्सर परिवार को इस रिश्ते की जानकारी नहीं होती। इसके अलावा परिवार इस बारे में जानने पर इसे स्वीकार भी नहीं करता। इन परिस्थितियों में लड़कियों का इमोशनली कमजोर होना तय है। इन युवाओं के लिए रहने की जगह तलाशना भी मुश्किल काम है क्योंकि लोग इस तरह की स्थितियों में किराए पर अपनी जगह देना पसंद नहीं करते।