अधिकतर लोगों को यह प्रश्न कठिन या धार्मिक लग सकते हैं क्योंकि उन्होंने वेद, उपनिषद या गीता को नहीं पढ़ा है। उसमें शाश्वत प्रश्नों के शाश्वत उत्तर है।
जैसे कोई पूछ सकता है कि जन्म किया है? हो सकता है कि आपके पास उत्तर हो कि किसी आत्मा का किसी शरीर में प्रवेश करना जन्म है, लेकिन यह सही उत्तर नहीं है।
आत्मा का भी सूक्ष्म शरीर होता है। इसीलिए कहते हैं कि आत्मा का सूक्ष्म शरीर को लेकर स्थूल शरीर से संबंध स्थापित हो जाना ही जन्म है। अब सवाल यह उठता है कि यह संबंध कैसे स्थापित होता है?
दरअसल, प्राणों के द्वारा यह संबंध स्थापित होता है। सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर के बीच प्राण प्राण सेतु की तरह या रस्सी के बंधन की तरह है। जन्म को जाति भी कहा जाता है। जैसे उदाहरणार्थ.: वनस्पति जाति, पशु जाति, पक्षी जाति और मनुष्य जाति। न्म को जाति कहते हैं। कर्मों के अनुसार जीवात्मा जिस शरीर को प्राप्त होता है वह उसकी जाति कहलाती है। शरीर को योगासनों से सेहतमंद बनाए रखा जा सकता है।
जन्म के बाद मृत्यु क्या है?
इसका उत्तर जन्म के उत्तर में ही छिपा हुआ है। दरअसल, सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर के बीच जो प्राणों का संबंध स्थापित है उसका संबंध टूट जाना ही मृत्यु है। प्रश्न यह भी है कि प्राण क्या है? आपके भीतर जो वायु का आवागमन हो रहा है वह प्राण है। प्राण को प्राणायाम से सेहतमंद बनाए रखा जा सकता है। प्राण के निकल जाने से व्यक्ति को मृत घोषित किया जाता है। यदि प्राणायाम द्वारा प्राण को शुद्ध और दीर्घ किया जा सके तो व्यक्ति की आयु भी दीर्घ हो जाती है।
जिस तरह हमारे शरीर के बाहर कई तरह की वायु विचरण कर रही है उसी तरह हमारे शरीर में भी कई तरह की वायु विचरण कर रही है। वायु है तो ही प्राण है। अत: वायु को प्राण भी कहा जाता है। वैदिक ऋषि विज्ञान के अनुसार कुल 28 तरह के प्राण होते हैं। प्रत्येक लोक में 7-7 प्राण होते हैं। जिस तरह ब्राह्माण में कई लोकों की स्थिति है जैसे स्वर्ग लोक (सूर्य या आदित्य लोक), अंतरिक्ष लोक (चंद्र या वायु लोक), पृथिवि (अग्नि लोक) लोक आदि, उसी तरह शरीर में भी कई लोकों की स्थिति है।
मृत्यु के बाद पुनर्जन्म क्या है?
उपनिषदों के अनुसार एक क्षण के कई भाग कर दीजिए उससे भी कम समय में आत्मा एक शरीर छोड़ तुरंत दूसरे शरीर को धारण कर लेता है।
यह सबसे कम समयावधि है। सबसे ज्यादा समायावधि है 30 सेकंड। सूक्ष्म शरीर को धारण किए हुए आत्मा का स्थूल शरीर के साथ बार-बार संबंध टूटने और बनने को पुनर्जन्म कहते हैं।
कर्म और पुनर्जन्म एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। कर्मों के फल के भोग के लिए ही पुनर्जन्म होता है तथा पुनर्जन्म के कारण फिर नए कर्म संग्रहीत होते हैं। इस प्रकार पुनर्जन्म के दो उद्देश्य हैं- पहला, यह कि मनुष्य अपने जन्मों के कर्मों के फल का भोग करता है जिससे वह उनसे मुक्त हो जाता है। दूसरा, यह कि इन भोगों से अनुभव प्राप्त करके नए जीवन में इनके सुधार का उपाय करता है जिससे बार-बार जन्म लेकर जीवात्मा विकास की ओर निरंतर बढ़ती जाती है तथा अंत में अपने संपूर्ण कर्मों द्वारा जीवन का क्षय करके मुक्तावस्था को प्राप्त होती है।