16 Powerful Kingdoms of India: प्राचीन भारत एक समृद्धि और शाक्तिशाली भारत था। दुनिया का संपूर्ण व्यापार और राजनीति का केंद्र उस काल में भारत ही हुआ करता था। तब भारत की सीमाओं का विस्तार हिन्दू कुश पर्वत माला से अरुणाचल की पर्वत माला तक और कैलाश पर्वत से कन्या कुमारी के पार समुद्र पर्यंत तक भारत ही हुआ करता था।
1. चक्रवर्ती भरत का साम्राज्य : भगवान राम के काल के हजारों वर्ष पूर्व प्रथम मनु स्वायंभुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भारतवर्ष को बसाया था। वायु पुराण के अनुसार महाराज प्रियव्रत का अपना कोई पुत्र नहीं था तो उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था। नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था। इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा इन्हीं भरत के नाम पर इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ा। भारतवर्ष की सीमाएं उस काल में अफगानिस्तान से लेकक अरुणाचल तथा कश्मीर से लेकर लंका तक। बर्मा, थाईलैंड, इंडोनेशिया और मलेशिया भी उनके शासन क्षेत्र में आते थे। महाभारत के अनुसार भरत का साम्राज्य सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में व्याप्त था जिसमें वर्तमान भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिज्तान, तुर्कमेनिस्तान तथा फारस आदि क्षेत्र शामिल थे।
2. वैवस्वत मनु : ब्रह्मा के पुत्र मरीचि के कुल में वैवस्वत मनु हुए। वैवस्वत मनु और उनके कुल के लोगों ने संपूर्ण जंबूद्वीप पर शासन किया था। वैवस्वत मनु को आर्यों का प्रथम शासक माना जाता है। वैवस्वत मनु के कुल में कई महान प्रतापी राजा हुए जिनमें इक्ष्वाकु, पृथु, त्रिशंकु, मांधाता, प्रसेनजित, भरत, सगर, भगीरथ, रघु, सुदर्शन, अग्निवर्ण, मरु, नहुष, ययाति, दशरथ और दशरथ के पुत्र भरत, राम और राम के पुत्र लव और कुश। इक्ष्वाकु कुल से ही अयोध्या कुल चला।
3. मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम : भगवान श्रीराम का शासन क्षेत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत की तरह ही विस्तृत था। संपूर्ण अखंड भारत के साथ ही कई अन्य क्षेत्र भी उनके शासन के अंतर्गत आते थे।
4. युधिष्ठिर साम्राज्य : महाभारत के युद्ध के बाद युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का सम्राट बनाया गया था। उस समय युधिष्ठिर चक्रवर्ती सम्राट थे। करीब 2964 ई. पूर्व युधिष्ठिर का राज्यारोहण हुआ था। उनके शासनकाल में संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप आता था। राजसूय यज्ञ से पहले युधिष्ठिर के निर्देश से पाण्डवों ने पूरे भूमण्डल की दिग्विजय अपने शौर्य से की थी। अरब, ईरान, तिब्बत, रशिया और चीन के कुछ हिस्से भी इनके शासन क्षेत्र में आते थे। परीक्षित के बाद उनके पुत्र जन्मेजय ने राज्य संभाला। जनमेजय के बाद शासन क्षेत्र में बदलाव आते गए।
5. मौर्य राजवंश का साम्राज्य : सम्राट चन्द्रगुप्त को (340–298 BCE) चन्द्रगुप्त महान कहा जाता है। सिकंदर के काल में हुए चन्द्रगुप्त ने सिकंदर के सेनापति सेल्युकस को दो बार बंधक बनाकर छोड़ दिया था। सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य थे। चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्युकस की पुत्री हेलन से विवाह किया था। चन्द्रगुप्त की एक भारतीय पत्नी दुर्धरा थी जिससे बिंदुसार का जन्म हुआ। चन्द्रगुप्त ने अपने पुत्र बिंदुसार को गद्दी सौंप दी थीं। बिंदुसार के समय में चाणक्य उनके प्रधानमंत्री थे। इतिहास में बिंदुसार को 'पिता का पुत्र और पुत्र का पिता' कहा जाता है, क्योंकि वे चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र और राजा अशोक महान के पिता थे। अशोक के काल में भारत की सीमाएं कलिंग को छोड़कर अखंड भारत में व्याप्त थीं। यहां तक की ईरान के भी कुछ क्षेत्र उनके शासन क्षेत्र में आते थे। अधिकतर सीमा क्षेत्र अनुमानित 52 लाख वर्ग किलोमीटर था।
6. विक्रमादित्य साम्राज्य : विक्रम संवत अनुसार विक्रमादित्य आज से 2295 वर्ष पूर्व हुए थे। नाबोवाहन के पुत्र राजा गंधर्वसेन भी चक्रवर्ती सम्राट थे। कलि काल के 3000 वर्ष बीत जाने पर 101 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य का जन्म हुआ। उन्होंने 100 वर्ष तक राज किया। -(गीता प्रेस, गोरखपुर भविष्यपुराण, पृष्ठ 245)। विक्रमादित्य भारत की प्राचीन नगरी उज्जयिनी के राजसिंहासन पर बैठे। उन्होंने ईसा पूर्व 57-58 में सबसे पहले शको को अपने शासन क्षेत्र से बहार खदेड़ दिया। महाराजा विक्रमादित्य का सविस्तार वर्णन भविष्य पुराण और स्कंद पुराण में मिलता है। विक्रमादित्य के बारे में प्राचीन अरब साहित्य में वर्णन मिलता है। इतिहासकारों के अनुसार उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राज्य भारतीय उपमहाद्वीप के अलावा ईरान, इराक और अरब में भी था। विक्रमादित्य की अरब विजय का वर्णन अरबी कवि जरहाम किनतोई ने अपनी पुस्तक 'सायर-उल-ओकुल' में किया है। पुराणों और अन्य इतिहास ग्रंथों के अनुसार यह पता चलता है कि अरब और मिस्र भी विक्रमादित्य के अधीन थे। एक विक्रमादित्य द्वितीय 7वीं सदी में हुए, जो विजयादित्य (विक्रमादित्य प्रथम) के पुत्र थे। विक्रमादित्य द्वितीय ने भी अपने समय में चालुक्य साम्राज्य की शक्ति को अक्षुण्ण बनाए रखा।
7. गुप्त साम्राज्य : गुप्त साम्राज्य के दो महत्वपूर्ण राजा हुए। पहले समुद्रगुप्त और दूसरे चंद्रगुप्त द्वितीय। शुंग वंश के पतन के बाद सनातन संस्कृति की एकता को फिर से एकजुट करने का श्रेय गुप्त वंश के लोगों को जाता है। गुप्त वंश की स्थापना 320 ई. लगभग चंद्रगुप्त प्रथम ने की थी और 510 ई. तक यह वंश शासन में रहा। इस वंश में अनेक प्रतापी राजा हुए। नृसिंहगुप्त बालादित्य (463-473 ई.) को छोड़कर सभी गुप्तवंशी राजा वैदिक धर्मावलंबी थे। ललितादित्य ने बौद्ध धर्म अपना लिया था। गुप्त वंश के सम्राटों में क्रमश: श्रीगुप्त, घटोत्कच, चंद्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, रामगुप्त, चंद्रगुप्त द्वितीय, कुमारगुप्त प्रथम (महेंद्रादित्य) और स्कंदगुप्त हुए। स्कंदगुप्त के समय हूणों ने कंबोज और गांधार (उत्तर अफगानिस्तान) पर आक्रमण किया था। हूणों ने अंतत: भारत में प्रवेश करना शुरू किया। हूणों का मुकाबला कर गुप्त साम्राज्य की रक्षा करना स्कन्दगुप्त के राज्यकाल की सबसे बड़ी घटना थी। स्कंदगुप्त और हूणों की सेना में बड़ा भयंकर मुकाबला हुआ और गुप्त सेना विजयी हुई। इसके बाद उनका गुप्त साम्राज का शासन क्षेत्र करीब 35 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैल गया था।
8. हर्षवर्धन : गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत में अराजकता की स्थिति बनी हुई थी। ऐसी स्थिति में हर्ष के शासन ने राजनीतिक स्थिरता प्रदान की। सम्राट हर्षवर्धन ने लगभग आधी शताब्दी तक अर्थात् 590 ईस्वी से लेकर 647 ईस्वी तक अपने राज्य का विस्तार किया। उनके काल में कन्नौज में मौखरि वंश के राजा अवंति वर्मा शासन करते थे। हर्ष का जन्म थानेसर (वर्तमान में हरियाणा) में हुआ था। यहां 51 शक्तिपीठों में से 1 पीठ है। हर्ष के मूल और उत्पत्ति के संदर्भ में एक शिलालेख प्राप्त हुआ है, जो कि गुजरात राज्य के गुन्डा जिले में खोजा गया है। हर्षवर्धन ने पंजाब छोड़कर शेष समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया था। कादंबरी के रचयिता कवि बाणभट्ट उनके (हर्षवर्धन) के मित्रों में से एक थे। कवि बाणभट्ट ने उसकी जीवनी 'हर्षचरित' में उसे 'चतुःसमुद्राधिपति' एवं 'सर्वचक्रवर्तिनाम धीरयेः' आदि उपाधियों से अलंकृत किया।
9. सम्राट ललितादित्य : मध्यकालिन भारत की शुरुआत सम्राट हर्षवर्धन (590-647) से होती है। हर्षवर्धन का दक्षिण भारत के सम्राट पुलकेशी द्वितीय (शासनकाल 609-642) से हुआ था। इसी काल में कश्मीर में बहुत ही शक्तिशाली सम्राट ललितादित्य (सन् 697 से सन् 738) का राज्य भी रहा था। इसी काल में सिंध के राजा दाहिर (663-712 ईस्वी) में रहा था। राजतरंगिणी में 1184 ईसा पूर्व के राजा गोनंद से लेकर राजा विजय सिम्हा (1129 ईसवी) तक के कश्मीर के प्राचीन राजवंशों और राजाओं का प्रमाणिक दस्तावेज है। कश्मीर के हिन्दू राजाओं में ललितादित्य मुक्तापीड (शासनकाल 724 ई से 770 ईस्वी के बीच) सबसे प्रसिद्ध राजा हुए। वे कार्कोट राजवंश के राजा था। कार्कोट राजवंश का शासनकाल 625 से 885 ईस्वी के बीच रहा। ललितादित्य ने अरबों, तिब्बतियों, कम्बोजों एवं तुर्को को पराजित किया था। उनके साम्राज्य का विस्तार उन्होंने काराकोरम पर्वत श्रेणियों के पार तिब्बत के पठार से आगे चीन तक और पश्चिम में कैस्पियन सागर कर लिया था। उनका शासन उत्तर-पश्चिम में तुर्किस्तान और उत्तर-पूर्व में तिब्बत तक फैला था। यही कारण है कि उन्हें भारत का सिकंदर कहा जाता है। कहते हैं कि तुर्कों ने अपने दोनों हाथों को अपनी पीठ के पीछे बांधकर और सिर झुका कर ललितादित्य का स्वागत किया था। यह बात किताबों में कम ही बताई जाती है क्योंकि बाद में तुर्कों ने ही भारत पर आक्रमण करके भारत के बड़े भू भाग पर कब्जा कर लिया था। इन्हीं तुर्कों को भारत में मुगल कहा जाता है।
10. चालुक्य राजवंश साम्राज्य : चालुक्य राजवंश में सबसे शक्तिशाली पुलकेशिन द्वितीय था। जिसका शासनकाल 609-642 ईस्वी के मध्य का माना जाता है। कहते हैं कि पुलकेशिन ने गृहयुद्ध में चाचा मंगलेश पर विजय प्राप्त कर सत्ता कर कब्जा किया था। उसने श्री पृथ्वीवल्लभ सत्याश्रय की उपाधि से अपने को विभूषित किया था। पुलकेनिश ने कई राजाओं को परास्त कर उनकी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। जैसे राष्ट्रकूट राजा गोविन्द, लाट, मालवा व भृगुकच्छ के गुर्जरों को भी उसने हराया था। उसने कदम्बों को हराया, मैसूर के गंगों व केरल के अलूपों को भी पछाड़ दिया था। कोंकण की राजधानी पुरी पर भी कब्जा जमा लिया था। पल्लव राजा महेन्द्रवर्मन को पराजित कर कांची तक उसने अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया था। उससे भयभीत होकर चेर, चोल व पाण्ड्यों ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी। उसने नर्मदा से कावेरी के तट के सभी प्रदेशों पर अपना आधिपत्य कायम कर लिया लिया था। इस प्रकार दक्षिण के एक बड़े भू-भाग पर उसका शासन था। राजा हर्षवर्धन ने जब उसकी बढ़ती शक्ति देखी तो उन्हें पीछे हटा पड़ा था।
11. चोल राजवंश का साम्राज्य : इस चोल वंश का संस्थापक विजयालय (850-870-71 ई.) इस राजवंश में राजराजा चोल और उनके पुत्र राजेंद्र चोल के शासन में शासन किया। राजा राज को अन्य निर्माणों के अलावा तमिलनाडु के तंजावुर में बृहदीश्वर मंदिर के निर्माण के लिए जाना जाता है। तमिल चोल शासकों ने 9 वीं शताब्दी से 13 वीं शताब्दी के बीच एक अत्यंत शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य का निर्माण किया।
12. पल्लव साम्राज्य : ऐसा माना जाता है कि पल्लवों द्वारा स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के पूर्व वे सातवाहनों के राजा के सामान्य थे। पल्लवों का शासन बाद में कांची से ही प्रारंभ हुआ। उनका शासन क्षेत्र तमिल और तेलगु था। उन्हीं के राज्य में महान दार्शनिक बोधिवर्मन थे, जिन्हें पंलववंशी ही माना गया है। पल्वलवंशी की राजधानी कांची (तमिलनाडु में कांचीपुरम) थी। विष्णुगोप के बाद जिस पल्लव राजा का इतिहास में उल्लेख मिलता है उसका नाम है सिंह विष्णु (575-600 ई.)। पल्लव राजवंश का श्रीगणेश इसी से होता है। सिंहविष्णु के बाद उसका पुत्र महेंद्रवर्मन प्रथम (600-630 ई.) में सम्राट बना। सिंहविष्णु के बाद उसका पुत्र महेंद्रवर्मन प्रथम (600-630 ई.) में सम्राट बना। उसके काल में चालुक्यों से उसका संघर्ष होता रहता था। परंतु उसकी सेना ने कभी भी हार नहीं मानी। महेंद्रवर्मन प्रथम के शासन काल में एक बार चालुक्य सम्राट पुलकेशिन् द्वितीय की सेना पल्लव राजधानी के एकदम करीब पहुंच गई थी। परंतु सम्राट की सेना ने बहादुरी से मुकाबला किया और पुल्ललूर के युद्ध में चालुक्यों को बुरी तरह से पराजित कर दिया। इसी के साथ ही पल्लवों ने साम्राज्य के कुछ उत्तरी भागों को छोड़कर शेष सभी की पुनर्विजय कर ली। पल्लवों के सामंत आदित्य प्रथम ने अपनी शक्ति बढ़ाई और 893 ईस्वी के लगभग अपराजित को पराजित कर पल्लव साम्राज्य को चोल राज्य में मिला लिया।
13. पाल राजवंश : हर्षवर्धन के बाद भारत में पाल, प्रातिहार और राजपूतों का शासन रहा जबकि दक्षिण में राष्ट्रकूट वंश का शासन था। उक्त सभी के बाद फिर भारत में मराठा, मुगल और सिखों का साम्राज्य रहा जबकि दक्षिण में बहमनी, निजामशाहियों, विजयनगर साम्राज्य, काकतिया साम्राज्य आदि का राज रहा। हर्ष के समय के बाद से उत्तरी भारत के प्रभुत्व का प्रतीक कन्नौज माना जाता था। बाद में यह स्थान दिल्ली ने प्राप्त कर लिया। पाल साम्राज्य की नींव 750 ई. में 'गोपाल' नामक राजा ने डाली। पाल वंश का सबसे बड़ा सम्राट 'गोपाल' का पुत्र 'धर्मपाल' था। इसने 770 से लेकर 810 ई. तक राज्य किया। पहले प्रतिहार शासक 'वत्सराज' ने धर्मपाल को पराजित कर कन्नौज पर अधिकार प्राप्त कर लिया। पर इसी समय राष्ट्रकूट सम्राट 'ध्रुव', जो गुजरात और मालवा पर प्रभुत्व के लिए प्रतिहारों से संघर्ष कर रहा था, उसने उत्तरी भारत पर धावा बोल दिया। कड़े संघर्ष के बाद उसने नर्मदा पार कर आधुनिक झांसी के निकट वत्सराज को युद्ध में पराजित किया। इसके बाद उसने आगे बढ़कर गंगा घाटी में धर्मपाल को हराया। इन विजयों के बाद यह राष्ट्रकूट सम्राट 790 में दक्षिण लौट आया।
14. सम्राट मिहिर भोज का साम्राज्य : गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना नागभट्ट नामक एक सामंत ने 725 ई. में की थी। उसने राम के भाई लक्ष्मण को अपना पूर्वज बताते हुए अपने वंश को सूर्यवंश की शाखा सिद्ध किया। विद्वानों का मानना है कि इन गुर्जरों ने भारतवर्ष को लगभग 300 साल तक अरब-आक्रांताओं से सुरक्षित रखकर प्रतिहार (रक्षक) की भूमिका निभाई थी। वत्सराज के बाद उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय राजसिंहासन पर बैठा। इस वंश का सबसे प्रतापी राजा भोज प्रथम था, जो कि मिहिरभोज के नाम से भी जाना जाता है और जो नागभट्ट द्वितीय का पौत्र था।
सम्राट मिहिर भोज कन्नौज के सम्राट थे। उन्होंने 836 ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक 49 साल के लंबे समय तक शासन किया था। उन्होंने बंगाल के राजा देवपाल के पुत्र नारायण लाल को परास्त कर उत्तरी बंगाल को अपने साम्राज्य में मिला लिया था। दक्षिण के राष्ट्रकुट राजा अमोघवर्ष को पराजित कर दिया था। सिन्ध के अरब शासक इमरान बिन मूसा को पराजित करके सिन्ध को अपने साम्राज्य में मिला लिया था और मुल्तान के मुस्लिम शासक को वे अपने नियंत्रण में रखते थे। कन्नौज पर अधिकार के लिए बंगाल के पाल, उत्तर भारत के प्रतिहार और दक्षिण भारत के राष्ट्रकूट शासकों के बीच लगभग 100 वर्षों तक संघर्ष होता रहा जिसे इतिहास में 'त्रिकोणात्मक संघर्ष' कहा जाता है। कहते हैं कि मिहिर भोज ने काबुल के राजा ललिया शाही को तुर्किस्तान के आक्रमण से बचाया था। दूसरी ओर नेपाल के राजा राघवदेव को तिब्बत के आक्रमणों से बचाया था। परंतु उनकी पालवंशी राजा देवपाल और दक्षिण के राष्ट्कूट राजा अमोघवर्ष शत्रुता चलती रहती थी।
15. भोज साम्राज्य : कुछ विद्वान मानते हैं कि महान राजा भोज (भोजदेव) का शासनकाल 1010 से 1053 तक रहा। राजा भोज ने अपने काल में कई मंदिर बनवाए। राजा भोज के नाम पर भोपाल के निकट भोजपुर बसा है। धार की भोजशाला का निर्माण भी उन्होंने कराया था। कहते हैं कि उन्होंने ही मध्यप्रदेश की वर्तमान राजधानी भोपाल को बसाया था जिसे पहले 'भोजपाल' कहा जाता था। इनके ही नाम पर भोज नाम से उपाधी देने का भी प्रचलन शुरू हुआ जो इनके ही जैसे महान कार्य करने वाले राजाओं की दी जाती थी। राजा भोज खुद एक विद्वान होने के साथ-साथ काव्यशास्त्र और व्याकरण के बड़े जानकार थे और उन्होंने बहुत सारी किताबें लिखी थीं। मान्यता अनुसार भोज ने 64 प्रकार की सिद्धियां प्राप्त की थीं तथा उन्होंने सभी विषयों पर 84 ग्रंथ लिखे थे। आईन-ए-अकबरी में प्राप्त उल्लेखों के अनुसार भोज की राजसभा में 500 विद्वान थे। इन विद्वानों में नौ (नौरत्न) का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
16. विजयनगर साम्राज्य : राजा कृष्ण देवराय का जन्म 16 फरवरी 1471 ईस्वी को कर्नाटक के हम्पी में हुआ था। उनके पिता का नाम तुलुवा नरसा नायक और माता का नाम नागला देवी था। उनके बड़े भाई का नाम वीर नरसिंह था। कृष्ण देवराय को 'आंध्र भोज' की उपाधि प्राप्त थी। इसके अलावा उन्हें अभिनव भोज, और आन्ध्र पितामह भी कहा जाता था। बाजीराव की तरह ही कृष्ण देवराय एक अजेय योद्धा एवं उत्कृष्ट युद्ध विद्या विशारद थे। इस महान सम्राट का साम्राज्य अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक भारत के बड़े भूभाग में फैला हुआ था जिसमें आज के कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, केरल, गोवा और ओडिशा प्रदेश आते हैं। महाराजा के राज्य की सीमाएं पूर्व में विशाखापट्टनम, पश्चिम में कोंकण और दक्षिण में भारतीय प्रायद्वीप के अंतिम छोर तक पहुंच गई थीं।
17. अन्य साम्राज्य : उपरोक्त के अलावा मराठा साम्राज्य, सिख साम्राज्य, राजपूत साम्राज्य, जाट साम्राज्य, गुर्जर साम्राज्य ने भारत की रक्षा के लिए मुगल और ब्रिटिश साम्राज्य से लगातार लड़ाईयां लड़ी। इन सभी का शासन क्षेत्र में लाखों वर्ष किलोमीटर में फैला था।