पद्मनाभ मंदिर के खजाने के 10 खास रहस्य, चेम्बर-बी का रहस्य बरकरार

अनिरुद्ध जोशी
सोमवार, 13 जुलाई 2020 (14:56 IST)
सुप्रीम कोर्ट ने केरल के तिरुवनंतपुरम स्थित ऐतिहासिक श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रबंधन एवं प्रशासन में त्रावणकोर के पूर्ववर्ती शाही परिवार के अधिकार को सोमवार को बरकरार रखा। न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय खंडपीठ ने केरल उच्च न्यायालय के 2011 के फैसले के खिलाफ त्रावनकोर रॉयल परिवार की अपील मंजूर कर ली। शाही परिवार ने केरल उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी। आओ जानते हैं मंदिर के खजाने के 10 खास रहस्य जो आप नहीं जानते होंगे।
 
 
1. अनुमानीत 5,00,000 करोड़ का खजाना : सन् 2011 में इसका खुलासा हुआ। दक्षिण भारत के पद्मनाभ मंदिर में छिपा था 5,00,000 करोड़ का खजाना है जिसे गिनने में आधुनिक मशीनें और कई लोगों की टीमें लगीं।
 
2. त्रावणकोर के महाराजा का खजाना : 2011 में कैग की निगरानी में पद्मनाभस्वामी मंदिर से करीब एक लाख करोड़ रुपए मूल्य का खजाना निकाला गया था। यह खजाना त्रावणकोर के महाराजा का बताया जाता है।
 
3. तहखाने को खोलने की मनाही : तहखाने से पाए गए खजाने में से कुछ तहखाने को खोलकर देखने की मनाही थी, क्योंकि मंदिर प्रशासन और भक्तजनों को किसी अननोही घटना और अशुभ के होने का डर था। 
 
4. विष्णु के मंदिर में रखा है खजाना : पद्मनाभस्वामी मंदिर केरल के तिरुअनंतपुरम् में मौजूद भगवान विष्णु का प्रसिद्ध मंदिर है, लेकिन यहां से अपार मात्रा में 'लक्ष्मी' की प्राप्ति हुई थी। भारत के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में शामिल यह ऐतिहासिक मंदिर तिरुवनंतपुरम के पर्यटन स्थलों में से एक है। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति विराजमान है जिसे देखने के लिए रोजाना हजारों भक्त दूर-दूर से यहां आते हैं। इस प्रतिमा में भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। यहां लक्ष्मीजी की मूर्ति भी विराजमान है।
 
5. नाग के नाम पर है नगर का नाम : मान्यता है कि तिरुअनंतपुरम् नाम भगवान के 'अनंत' नामक नाग के नाम पर ही रखा गया है। यहां पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को 'पद्मनाभ' कहा जाता है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से विष्णु भगवान की प्रतिमा मिली थी जिसके बाद यहां पर मंदिर का निर्माण किया गया। 
 
6. राजा मार्तंड ने कराया था निर्माण : मंदिर का निर्माण राजा मार्तंड ने करवाया था। भगवान विष्णु को समर्पित पद्मनाम मंदिर को त्रावणकोर के राजाओं ने बनाया था। इसका जिक्र 9वीं शताब्दी के ग्रंथों में भी आता है, लेकिन मंदिर के मौजूदा स्वरूप को 18वीं शताब्दी में बनवाया गया था। 1750 में महाराज मार्तंड वर्मा ने खुद को पद्मनाभदास बताया। इसके बाद शाही परिवार ने खुद को भगवान पद्मनाभ को समर्पित कर दिया। माना जाता है कि इसी वजह से त्रावणकोर के राजाओं ने अपनी दौलत पद्मनाभ मंदिर को सौंप दी। 
 
7. सरकार ने नहीं लिया अपने कब्जे में : त्रावणकोर के राजाओं ने 1947 तक राज किया। आजादी के बाद इसे भारत में विलय कर दिया गया, लेकिन पद्मनाभ स्वामी मंदिर को सरकार ने अपने कब्जे में नहीं लिया। इसे त्रावणकोर के शाही परिवार के पास ही रहने दिया गया, तब से पद्मनाभ स्वामी मंदिर का कामकाज शाही परिवार के अधीन एक प्राइवेट ट्रस्ट चलाता आ रहा है।
 
8. कैसा है मंदिर : मंदिर में एक स्वर्ण स्तंभ भी बना हुआ है, जो मंदिर की खूबसूरती में इजाफा करता है। मंदिर के गलियारे में अनेक स्तंभ बनाए गए हैं जिन पर सुंदर नक्काशी की गई है, जो इसकी भव्यता में चार चांद लगा देती है। मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को धोती और महिलाओं को साड़ी पहनना अनिवार्य है।
 
9. 22 सौ करोड़ डॉलर का खजाना : भारत के केरल में सन् 2011 में श्रीपद्मनाभ स्वामी मंदिर की सुरक्षा उस वक्त कड़ी कर दी गई जब यहां सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर मंदिर के तहखाने में बने पांच खुफिया दरवाजे खोल दिया जो सदियों से बंद थे। और हर दरवाजे के पार उन्हें सोना और चांदी के अंबार मिलते गए जिनकी अनुमानीत कीमत करीब 22 सौ करोड़ डॉलर थी।
 
10. चेम्बर-बी : लेकिन जब वे आखरी चेम्बर-बी पर पहुंचे तो वे उसे खोलने में नाकाम हो गए। वहां तीन दरवाजे हैं। पहला दरवाजा लोहे की झड़ों से बना दरवाजा है। दूसरा लकड़ी से बना एक भारी दरवाजा है और अंतिम दरवाजा लोहे का बना बड़ा ही मजबूत दरवाजा है जो बंद है और उसे खोला नहीं जा सकता क्योंकि उसे पर लोहे के दो नाग बने हैं और वहां चेतावनी लिखी है कि इसे खोला गया तो अंजाम बहुत बुरा होगा।
 
इस पर न तो ताले लगे हैं और न ही कोई कुंडी। कहा जाता है कि उसे एक मंत्र से बंद किया गया है। उसे कहते हैं अष्टनाग बंधन मंत्र। मगर वो मंत्र क्या है ये कोई नहीं जानता। वह चेम्बर एक अनोखे शाप से ग्रस्त है। यदि कोई भी उसे चेम्बर के दरवाजे तक जाने का प्रयास करता है तो वह बीमार हो जाता है या उसकी मौत भी हो सकती है।
 
17 जुलाई 2011 में पहले पांच कक्षों को खोलने के बाद ही टी.पी सुंदरराजन यानी वे शख्स जिन्होंने इन दरवाजों को खुलवाने के लिए अदालत में याचिका दी थी, पहले वे बीमार पड़े और फिर उनकी मौत हो गए। अगले ही महीने मंदिर प्रशासन ने यह चेतावनी जारी कर दी की यदि किसी ने भी उस अंतीम कक्ष को खुलवाने या खोलने की कोशीश की तो अंजाम बहुत बुरा होगा। 
 
सबसे बड़ा सवाल यही है कि चेम्बर बी के दरवाजे के पीछे आखिर क्या रखा है? अपार सोना, कोई खतरनाक हथियार या कि प्राचीन भारत की कोई ऐसी टेक्नोलॉजी का राज छुपा है जिसे जानकर दुनिया हैरान रह सकती है। यह कहीं ऐसा तो नहीं कि वहां कोई ऐसा रास्ता हो जहां से पाताल लोग में जाया जा सकता हो।

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