बसंत पंचमी 2020 : माता सरस्वती के 5 रहस्य जानकर आप चौंक जाएंगे

Webdunia
बुधवार, 29 जनवरी 2020 (11:35 IST)
त्रिदेवियों में से एक माता सरस्वती की पूजा देश में कम ही होती है। उनके मंदिर भी बहुत कम ही पाए जाते हैं। वसंत पंचमी को ही उनकी विशेष रूप से पूजा और अर्चना होती है। कार्यस्थलों पर उनकी मूर्ति को देखा जा सकता है। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण वह संगीत की देवी भी हैं। वसंत पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। देवी सरस्वती का वर्ण श्‍वेत है। आओ जानते हैं माता सरस्वती के ऐसा 10 रहस्य जिन्हें आप शायद ही जानते होंगे।
 
 
1. दो सरस्वती : शास्त्रों के अनुसार जिस तरह ज्ञान या विद्याएं दो हैं उसी तरह सरस्वती भी दो हैं। विद्या में अपरा और परा विद्या है। अपरा विद्या की सृष्टि ब्रह्माजी से हुई लेकिन परा विद्या की सृष्टि ब्रह्म (ईश्वर) से हुई मानी जाती है। अपरा विद्या का ज्ञान जो धारण करती है, वह ब्रह्माजी की पुत्री है जिनका विवाह विष्णुजी से हुआ है। ब्रह्माजी की पत्नी जो सरस्वती है, वे परा विद्या की अधिष्ठात्री देवी हैं। वे मोक्ष के मार्ग को प्रशस्त करने वाली देवी हैं और वे महालक्ष्मी की पुत्री हैं।
 
शाक्त परंपरा में तीन रहस्यों का वर्णन है- प्राधानिक, वैकृतिक और मुक्ति। इस प्रश्न का, इस रहस्य का वर्णन प्राधानिक रहस्य में है। इस रहस्य के अनुसार महालक्ष्मी के द्वारा विष्णु और सरस्वती की उत्पत्ति हुई अर्थात विष्णु और सरस्वती बहन और भाई हैं। इन सरस्वती का विवाह ब्रह्माजी से और ब्रह्माजी की जो पुत्री है, उनका विवाह विष्णुजी से हुआ है।
 
2. सरस्वती जन्म कथा : हिन्दू धर्म के दो ग्रंथों ‘सरस्वती पुराण’ और ‘मत्स्य पुराण’ में सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का अपनी ही बेटी सरस्वती से विवाह करने का प्रसंग है जिसके फलस्वरूप इस धरती के प्रथम मानव ‘मनु’ का जन्म हुआ। सरस्वती पुराण के अनुसार सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्मा ने सीधे अपने वीर्य से सरस्वती को जन्म दिया था। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि सरस्वती की कोई मां नहीं केवल पिता, ब्रह्मा थे। 
 
स्वयं ब्रह्मा भी सरस्वती के आकर्षण से खुद को बचाकर नहीं रख पाए और उन्हें अपनी अर्धांगिनी बनाने पर विचार करने लगे। सरस्वती ने अपने पिता की इस मनोभावना को भांपकर उनसे बचने के लिए चारो दिशाओं में छिपने का प्रयत्न किया लेकिन उनका हर प्रयत्न बेकार साबित हुआ। इसलिए विवश होकर उन्हें अपने पिता के साथ विवाह करना पड़ा। ब्रह्मा और सरस्वती करीब 100 वर्षों तक एक जंगल में पति-पत्नी की तरह रहे। इन दोनों का एक पुत्र भी हुआ जिसका नाम रखा गया था स्वयंभु मनु।
 
सरस्वती उत्पत्ति कथा मत्स्य पुराण अनुसार : मत्स्य पुराण में यह कथा थोड़ी सी भिन्न है। मत्स्य पुराण अनुसार ब्रह्मा के पांच सिर थे। कालांतर में उनका पांचवां सिर काल भैरव ने काट दिया था। कहा जाता है जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो वह इस समस्त ब्रह्मांड में अकेले थे। ऐसे में उन्होंने अपने मुख से सरस्वती, सान्ध्य, ब्राह्मी को उत्पन्न किया। ब्रह्मा अपनी ही बनाई हुई रचना, सरवस्ती के प्रति आकर्षित होने लगे और लगातार उन पर अपनी दृष्टि डाले रखते थे। ब्रह्मा की दृष्टि से बचने के लिए सरस्वती चारों दिशाओं में छिपती रहीं लेकिन वह उनसे नहीं बच पाईं। इसलिए सरस्वती आकाश में जाकर छिप गईं, लेकिन अपने पांचवें सिर से ब्रह्मा ने उन्हें आकाश में भी खोज निकाला और उनसे सृष्टि की रचना में सहयोग करने का निवेदन किया। सरस्वती से विवाह करने के पश्चात सर्वप्रथम स्वयंभु मनु को जन्म दिया। ब्रह्मा और सरस्वती की यह संतान मनु को पृथ्वी पर जन्म लेने वाला पहला मानव कहा जाता है।
 
पुराणों में सरस्वती के बारे में भिन्न भिन्न मत मिलते हैं। एक अन्य पौराणिक उल्लेख अनुसार देवी महालक्ष्मी (लक्ष्मी नहीं) से जो उनका सत्व प्रधान रूप उत्पन्न हुआ, देवी का वही रूप सरस्वती कहलाया।कहते हैं कि माता सरस्वती के भिन्न भिन्न रूप को आप उनके चित्र को देखकर पहचान सकते हैं। जैसे कमल पर आसन जमाए, मोर की सवारी किए हुए या हंस पर सवार सरस्वती। उक्त सभी सरस्वती देवी अलग अलग हैं।
 
3. वसंत पंचमी कथा : सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने मनुष्य योनि की रचना की, परंतु वह अपनी सर्जना से संतुष्ट नहीं थे, तब उन्होंने विष्णु जी से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल को पृथ्वी पर छिड़क दिया, जिससे पृथ्वी पर कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी सुंदर स्त्री प्रकट हुई। जिनके एक हाथ में वीणा एवं दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। वहीं अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। जब इस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई, तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा।
 
4. सरस्वती नदी : माता सरस्वती के नाम पर ही एक नदी का नाम सरस्वती रखा गया। ऋग्वेद में सरस्वती नदी का उल्लेख मिलता है और इसकी महत्ता को दर्शाया गया है। ऋग्वेद की ऋचाओं में कहा गया है कि यह एक ऐसी नदी है जिसने एक सभ्यता को जन्म दिया। इसे भाषा, ज्ञान, कलाओं और विज्ञान की देवी भी माना जाता है। क्योंकि इसी के किनारे बैठकर वेद लिखे गए और कई कलाओं का जन्म हुआ। महाभारत में मिले वर्णन के अनुसार सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा-सा नीचे आदिबद्री नामक स्थान से निकलती थी। महाभारत (शल्य पर्व) में सरस्वती नामक 7 नदियों का उल्लेख किया गया है। उन्ही में से एक एक सरस्वती नदी यमुना के साथ बहती हुई गंगा से मिल जाती थी। प्राकृतिक आपदा के कारण मूल नदी लुप्त हो गई। 
 
5. ब्रह्मा की पत्नियां : माना जाता है कि ब्रह्माजी की 5 पत्नियां थीं- सावित्री, गायत्री, श्रद्धा, मेधा और सरस्वती। इसमें सावित्री और सरस्वती का उल्लेख अधिकतर जगहों पर मिलता है। यह भी मान्यता है कि पुष्कर में यज्ञ के दौरान सावित्री के अनुपस्थित होने की स्थित में ब्रह्मा ने वेदों की ज्ञाता विद्वान स्त्री गायत्री से विवाह कर यज्ञ संपन्न किया था। इससे सावित्री ने रुष्ट होकर ब्रह्मा को जगत में नहीं पूजे जाने का शाप दे दिया था। गुर्जर इतिहाकार के जानकार मानते हैं कि गायत्री माता एक गुर्जर महिला थीं।
  
कहते हैं कि ब्रह्माजी को बदनाम करने के लिए या अनजाने में इन चार श्लोकों का गलत अर्थ मध्यकाल और अंग्रेज काल से ही निकाला जाता रहा है:-
 
वाचं दुहितरं तन्वीं स्वयंभूर्हतीं मन:।
अकामां चकमे क्षत्त्: सकाम् इति न: श्रुतम् ॥(श्रीमदभागवत् 3/12/28)
 
प्रजापतिवै स्वां दुहितरमभ्यधावत्
दिवमित्यन्य आहुरुषसमितन्ये
तां रिश्यो भूत्वा रोहितं भूतामभ्यैत्
तं देवा अपश्यन्
“अकृतं वै प्रजापतिः करोति” इति
ते तमैच्छन् य एनमारिष्यति
तेषां या घोरतमास्तन्व् आस्ता एकधा समभरन्
ताः संभृता एष् देवोभवत्
तं देवा अबृवन्
अयं वै प्रजापतिः अकृतं अकः
इमं विध्य इति स् तथेत्यब्रवीत्
तं अभ्यायत्य् अविध्यत्
स विद्ध् ऊर्ध्व् उदप्रपतत् ( एतरेय् ब्राहम्ण् 3/333)
 
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अथर्ववेद का श्लोक:-
सभा च मा समितिश्चावतां प्रजापतेर्दुहितौ संविदाने।
येना संगच्छा उप मा स शिक्षात् चारु वदानि पितर: संगतेषु।
 
ऋगवेद का श्लोक :-
पिता यस्त्वां दुहितरमधिष्केन् क्ष्मया रेतः संजग्मानो निषिंचन् ।
स्वाध्योऽजनयन् ब्रह्म देवा वास्तोष्पतिं व्रतपां निरतक्षन् ॥ (ऋगवेद -10/61/7)
 
*यहां यह जानना जरूरी है कि वैदिक काल में राजा को प्रजापति कहा जाता था। सभा और समिति को प्रजापति की दुहिता यानि बेटियों जैसा माना जाता था। ब्रह्मा को प्रजापति भी कहा जाता है इस कारण भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई। ब्रह्मा की बेटी सरस्वती श्वेत रंग की थीं, लाल रंग की नहीं।
 
#पुराणों में हेरफेर?
मध्य और अंग्रेज काल में पुराणों के साथ बहुत छेड़छाड़ की गई है। हिन्दू धर्म के दो ग्रंथों 'सरस्वती पुराण' और 'मत्स्य पुराण' में सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का सरस्वती से विवाह करने का प्रसंग है जिसके फलस्वरूप इस धरती के प्रथम मानव 'मनु' का जन्म हुआ। लेकिन पुराणों की व्याख्या करने वाले सरस्वती के जन्म की कथा को उस सरस्वती से जोड़ देते हैं जो ब्रह्मा की पत्नी हैं जिसके चलते सब कुछ गड्ड मड्ड हो चला है। हालांकि इस पर शोध कर इस भ्रम को स्पष्ट किए जाने की आज ज्यादा जरूरत है।यह आलेख किसी भी तरह का दावा नहीं करता है।

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