रामानंद अर्थात रामानंदाचार्य वैष्णव भक्तिधारा के महान संत हैं। उन्होंने उत्तर भारत में वैष्णव सम्प्रदाय को पुनर्गठित किया तथा वैष्णव साधुओं को उनका आत्मसम्मान दिलाया।
रामानंद का जन्म : माघ माह की सप्तमी ईस्वी सन् 1299 को प्रयाग के कान्यकुब्ज ब्राह्मण के कुल में जन्मे श्री रामानंदजी के पिता का नाम पुण्यसदन शर्मा तथा माता का नाम सुशीलादेवी था। वशिष्ठ गोत्र कुल के होने के कारण वाराणसी के एक कुलपुरोहित ने मान्यता अनुसार जन्म के तीन वर्ष तक उन्हें घर से बाहर नहीं निकलने और एक वर्ष तक आईना नहीं दिखाने को कहा था। जहां रामानंद का जन्म हुआ उस स्थान को वर्तमान में श्री मठ प्राकट्य धाम कहा जाता है।
रामानंद की दीक्षा : आठ वर्ष की उम्र में उपनयन संस्कार होने के पश्चात उन्होंने वाराणसी पंच गंगाघाट के स्वामी राघवानंदाचार्यजी से दीक्षा प्राप्त की। तपस्या तथा ज्ञानार्जन के बाद बड़े-बड़े साधु तथा विद्वानों पर उनके ज्ञान का प्रभाव दिखने लगा। इस कारण मुमुक्षु लोग अपनी तृष्णा शांत करने हेतु उनके पास आने लगे।
प्रमुख शिष्य : स्वामी रामानंदाचार्यजी के कुल 12 प्रमुख शिष्य थे: 1. संत अनंतानंद, 2. संत सुखानंद, 3. सुरासुरानंद , 4. नरहरीयानंद, 5. योगानंद, 6. पिपानंद, 7. संत कबीरदास, 8. संत सेजान्हावी, 9. संत धन्ना, 10. संत रविदास, 11. पद्मावती और 12. संत सुरसरी।
निधन : रामानंदाचार्य की धार्मिक परंपरा और संप्रदाय के अनुसार उन्होंने ईस्वी सन् 1410 में देह त्याग दी थी।
रचनाएं : स्वामी रामानंद ने अनेक ग्रंथ लिखे थे। जिनमें से श्रीवैष्णव मताव्ज भास्कर, श्रीरामार्चन-पद्धति प्रमुख है। इसके अलावा गीताभाष्य, उपनिषद-भाष्य,आनन्दभाष्य, सिद्धान्त-पटल, रामरक्षास्तोत्र, योग चिन्तामणि, रामाराधनम्, वेदान्त-विचार, रामानन्दादेश, ज्ञान-तिलक, ग्यान-लीला, आत्मबोध राम मन्त्र जोग ग्रन्थ, कुछ फुटकर हिन्दी पद और अध्यात्म रामायण भी है।
शंकराचार्य की तरह पदवी : उनके देह त्याग के बाद से वैष्ण्व पंथियों में जगद्गुरु रामानंदाचार्य पद पर 'रामानंदाचार्य' की पदवी को आसीन किया जाने लगा। जैसे शंकराचार्य एक उपाधि है, उसी तरह रामानंदाचार्य की गादी पर बैठने वाले को इसी उपाधि से विभूषित किया जाता है। दक्षिण भारत के लिए श्रीक्षेत्र नाणिज को वैष्णव पीठ रूप में घोषित कर इसका नाम 'जगद्गुरु रामानंदाचार्य पीठ, नणिजधाम' रखा गया है।
वैष्णवों के अखाड़े और संप्रदाय : कुंभ स्नान के दौरान 13 अखाड़े में से 3 अखाड़े वैष्णवों के हैं- निर्मोही, दिगंबर और निर्वाणी। बाकी 7 अखाड़े शैव और 3 अखाड़े उदासीन संप्रदाय के हैं। मुख्य संप्रदाय की बात करें तो रामानंद द्वारा रामानंद, रामानुजाचार्य द्वारा विशिष्टाद्वैत, माधवाचार्य द्वारा माध्वचारी, भास्कराचार्य द्वारा निम्बार्क, बल्लभाचार्य द्वारा पुष्टिमार्गी या शुद्धाद्वैत संप्रदाय का प्रचलन हुआ। वैष्णव के बहुत से उप संप्रदाय हैं- जैसे बैरागी, दास, राधावल्लभ, सखी, गौड़ीय, विष्णु स्वामी, श्री संप्रदाय, हंस संप्रदाय, ब्रह्म संप्रदाय, रुद्र संप्रदाय आदि है। श्री चतु: सम्प्रदाय वैष्णवों के 52 द्वारा है।
कहते हैं कि उनके काल में मुस्लिम बादशाह गयासुद्दीन तुगलक ने हिंदू जनता और साधुओं पर हर तरह की पाबंदी लगा रखी थी। इन सबसे छुटकारा दिलाने के लिए रामानंद ने बादशाह को योगबल के माध्यम से मजबूर कर दिया था और अंतत: बादशाह ने हिंदुओं पर अत्याचार करना बंद कर उन्हें अपने धार्मिक उत्सवों को मनाने तथा हिंदू तरीके से रहने की छूट दे दी थी।