जनेऊ कान में ही क्यों लपेटते हैं, जानिए

मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व जनेऊ को कानों पर कस कर दो बार लपेटना पड़ता है। मान्यता है कि इससे कान के पीछे की दो नसें, जिनका संबंध पेट की आंतों से होता है, आंतों पर दबाव डालकर उनको पूरा खोल देती है, जिससे मल विसर्जन आसानी से हो जाता है तथा कान के पास ही एक नस से मल-मूत्र विसर्जन के समय कुछ द्रव्य विसर्जित होता है। जनेऊ उसके वेग को रोक देती है, जिससे कब्ज, एसीडीटी, पेट रोग, मूत्रन्द्रीय रोग, रक्तचाप, हृदय के रोगों सहित अन्य संक्रामक रोग नहीं होते।
 
कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है। कान पर जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है। जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति नियमों में बंधा होता है। वह मल विसर्जन के पश्चात अपनी जनेऊ उतार नहीं सकता। जब तक वह हाथ पैर धोकर कुल्ला न कर ले। अत: वह अच्छी तरह से अपनी सफाई करके ही जनेऊ कान से उतारता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट, कृमि, जीवाणुओं के रोगों से बचाती है। इसी कारण जनेऊ का सबसे ज्यादा लाभ हृदय रोगियों को होता है।
 
* चिकित्सा विज्ञान के अनुसार दाएं कान की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ी होती है। मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है। वैज्ञानिकों अनुसार बार-बार बुरे स्वप्न आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से इस समस्या से मुक्ति मिल जाती है।
 
* माना जाता है कि शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह काम करती है। यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कमर तक स्थित है। जनेऊ धारण करने से विद्युत प्रवाह नियंत्रित रहता है जिससे काम-क्रोध पर नियंत्रण रखने में आसानी होती है।
 
* विद्यालयों में बच्चों के कान खींचने के मूल में एक यह भी तथ्य छिपा हुआ है कि उससे कान की वह नस दबती है, जिससे मस्तिष्क की कोई सोई हुई तंद्रा कार्य करती है। इसलिए भी यज्ञोपवीत को दायें कान पर धारण करने का उद्देश्य बताया गया है।

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