पितृदोष की शांति के 16 उपाय : सर्वपितृ अमावस्या पर अवश्य आजमाएं
पितृदोष एक अदृश्य बाधा है। यह बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है। पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं, जैसे आपके आचरण से, किसी परिजन द्वारा की गई गलती से, श्राद्ध आदि कर्म न करने से, अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है।
1. सामान्य उपायों में षोडश पिंडदान, सर्पपूजा, ब्राह्मण को गौदान, कन्यादान, कुआं, बावड़ी, तालाब आदि बनवाना, मंदिर प्रांगण में पीपल, बड़ (बरगद) आदि देववृक्ष लगवाना एवं विष्णु मंत्रों का जाप, प्रेत श्राप को दूर करने के लिए श्रीमद्द्भागवत का पाठ करना चाहिए।
2. वेदों और पुराणों में पितरों की संतुष्टि के लिए मंत्र, स्तोत्र एवं सूक्तों का वर्णन है जिसके नित्य पठन से किसी भी प्रकार की पितृ बाधा क्यों न हो, वह शांत हो जाती है। अगर नित्य पठन संभव न हो तो कम से कम प्रत्येक माह की अमावस्या और आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या अर्थात पितृपक्ष में अवश्य करना चाहिए। वैसे तो कुंडली में किस प्रकार का पितृदोष है, उस पितृदोष के प्रकार के हिसाब से पितृदोष शांति करवाना अच्छा होता है।
3. भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठकर या घर में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न मंत्र की 1 माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृदोष संकट बाधा आदि शांत होकर शुभत्व की प्राप्ति होती है। मंत्र जाप प्रात: या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं।
मंत्र : 'ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।'
4. अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रतापूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा, घी एवं 1 रोटी गाय को खिलाने से पितृदोष शांत होता है।
5. अपने माता-पिता व बुजुर्गों का सम्मान, सभी स्त्री कुल का आदर-सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितर हमेशा प्रसन्न रहते हैं।
6. पितृदोषजनित संतान कष्ट को दूर करने के लिए 'हरिवंश पुराण' का श्रवण करें या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें।
7. प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती या सुन्दरकाण्ड का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है।
8. सूर्य पिता है अत: ताम्बे के लोटे में जल भरकर उसमें लाल फूल, लाल चंदन का चूरा, रोली आदि डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य देकर 11 बार 'ॐ घृणि सूर्याय नम:' मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है।
9. अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध, चीनी, सफेद कपड़ा, दक्षिणा आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए।
10. पितृ पक्ष में पीपल की परिक्रमा अवश्य करें। अगर 108 परिक्रमा लगाई जाए तो पितृदोष अवश्य दूर होगा।
11.किसी मंदिर के परिसर में पीपल अथवा बड़ का वृक्ष लगाएं और रोज उसमें जल डालें, उसकी देखभाल करें। जैसे-जैसे वृक्ष फलता-फूलता जाएगा, पितृदोष दूर होता जाएगा, क्योंकि इन वृक्षों पर ही सारे देवी-देवता, इतर योनियां व पितर आदि निवास करते हैं।
12. यदि आपने किसी का हक छीना है या किसी मजबूर व्यक्ति की धन-संपत्ति का हरण किया है तो उसका हक या संपत्ति उसको अवश्य लौटा दें।
13. पितृदोष से पीड़ित व्यक्ति को किसी भी एक अमावस्या से लेकर दूसरी अमावस्या तक अर्थात 1 माह तक किसी पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्योदय काल में शुद्ध घी का 1 दीपक लगाना चाहिए और ये क्रम टूटना नहीं चाहिए।
14.एक माह बीतने पर जो अमावस्या आए, उस दिन एक प्रयोग और करें
इसके लिए किसी देसी गाय या दूध देने वाली गाय का थोड़ा-सा गौमूत्र प्राप्त करें और उसे थोड़े जल में मिलाकर इस जल को पीपल वृक्ष की जड़ों में डाल दें। इसके बाद पीपल वृक्ष के नीचे 5 अगरबत्ती, 1 नारियल और शुद्ध घी का दीपक लगाकर अपने पूर्वजों से श्रद्धापूर्वक अपने कल्याण की कामना करें और घर आकर उसी दिन दोपहर में कुछ गरीबों को भोजन करा दें। ऐसा करने पर पितृदोष शांत हो जाएगा।
15. घर में कुआं हो या पीने का पानी रखने की जगह हो, उस जगह की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें, क्योंकि ये पितृ स्थान माना जाता है। इसके अलावा पशुओं के लिए पीने का पानी भरवाने तथा प्याऊ लगवाने अथवा आवारा कुत्तों को जलेबी खिलाने से भी पितृदोष शांत होता है।
16. अगर पितृदोष के कारण अत्यधिक परेशानी हो, संतान हानि हो या संतान को कष्ट हो तो किसी शुभ समय में अपने पितरों को प्रणाम कर उनसे प्रसन्न होने की प्रार्थना करें और अपने द्वारा जाने-अनजाने में किए गए अपराध व उपेक्षा के लिए क्षमा-याचना करें। फिर घर अथवा शिवालय में पितृ गायत्री मंत्र का सवा लाख विधि से जाप कराएं। जाप के उपरांत दशांश हवन के बाद संकल्प लें कि इसका पूर्ण फल पितरों को प्राप्त हो, ऐसा करने से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं, क्योंकि उनकी मुक्ति का मार्ग आपने प्रशस्त किया होता है।
विशेष उपाय :पितृदोष की शांति हेतु यह उपाय बहुत ही अनुभूत और अचूक फल देने वाला देखा गया है। वह यह कि किसी गरीब की कन्या के विवाह में गुप्त रूप से अथवा प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक सहयोग करना। (लेकिन यह सहयोग पूरे दिल से होना चाहिए, केवल दिखावे या अपनी बढ़ाई कराने के लिए नहीं)। इससे पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप मिलने वाले पुण्य फल से पितरों को बल और तेज मिलता है जिससे वे ऊर्ध्व लोकों की ओर गति करते हुए पुण्य लोकों को प्राप्त होते हैं।
अगर किसी विशेष कामना को लेकर किसी परिजन की आत्मा पितृदोष उत्पन्न करती है तो ऐसी स्थिति में मोह को त्यागकर उसकी सद्गति के लिए 'गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र' का पाठ करना चाहिए।
पितृदोष दूर करने का अत्यंत सरल उपाय
घर के वायव्य कोण (North-West)में सरसों के तेल में बराबर मात्रा में अगर का तेल मिलाकर दीपक पूरे पितृ पक्ष में लगाना चाहिए। दीया पीतल का हो तो ज्यादा अच्छा है। दीपक कम से कम 10 मिनट जलना आवश्यक है।