अधिकतर लोग घर में ही श्राद्ध कर्म करते हैं। इसके लिए वे घर में ही पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोज करवाते हैं। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्राद्ध पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक कुल 16 दिनों तक चलता है। उक्त 16 दिनों में दिन के किस समय में पितरों के लिए पितृ पूजा और ब्राह्मण भोज कराना चाहिये यह जानना भी जरूरी है।
कुपत, रोहिणी और अपराह्न काल में करते हैं श्राद्ध : विद्वान ज्योतिष मानते हैं कि श्राद्ध के 16 दिनों में कुपत, रोहिणी या अपराह्न काल में ही श्राद्ध कर्म करना चाहिये। ये कुपत काल दिन का आठवां मुहूर्त काल होता है। तारीख के अनुसार यह मुहूर्त हर दिन अलग अलग होता है। कुतप काल में किए गए दान का अक्षय फल मिलता है।
श्राद्ध मुहूर्त : इस बार 2 सितंबर को शुरू हो रहे पितृ पक्ष में कुतुप मुहूर्त सुबह 11:55 बजे से दोपहर 12:46 बजे तक है। वहीं रोहिण मूहूर्त दोपहर 12:46 बजे से दोपहर 1:37 बजे तक है। वहीं अपराह्नय काल मुहूर्त दोपहर 1:37 बजे से शाम 4:09 बजे तक है। अपराह्नय काल समाप्त होने के पूर्व श्राद्ध संबंधी सभी अनुष्ठान पूर्ण कर लेने चाहिए। इसके अलावा गजच्छाया योग में भी श्राद्ध कर्म करना अति उत्तम अनंत गुना फल देने वाला माना गया है। जब सूर्य हस्त नक्षत्र पर हो और त्रयोदशी के दिन मघा नक्षत्र होता है तब 'गजच्छाया योग' बनता है।
8 प्रहर : 24 घंटे में 8 प्रहर होते हैं। दिन के 4 और रात के 4 मिलाकर कुल 8 प्रहर। औसतन एक प्रहर 3 घंटे का होता है जिसमें दो मुहूर्त होते हैं। 8 प्रहरों के नाम:- दिन के 4 प्रहर- पूर्वाह्न, मध्याह्न, अपराह्न और सायंकाल। रात के 4 प्रहर- प्रदोष, निशिथ, त्रियामा एवं उषा।
24 घंटे में 1440 मिनट होते हैं:- मुहूर्त सुबह 6 बजे से शुरू होता है:- रुद्र, आहि, मित्र, पितॄ, वसु, वाराह, विश्वेदेवा, विधि, सतमुखी, पुरुहूत, वाहिनी, नक्तनकरा, वरुण, अर्यमा, भग, गिरीश, अजपाद, अहिर, बुध्न्य, पुष्य, अश्विनी, यम, अग्नि, विधातॄ, क्ण्ड, अदिति जीव/अमृत, विष्णु, युमिगद्युति, ब्रह्म और समुद्रम।