श्री कृष्‍ण जन्म के 10 रहस्य, जानिए आप भी अचंभित हो जाएंगे

अनिरुद्ध जोशी
शुक्रवार, 8 मई 2020 (16:40 IST)
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म, जीवन और मृत्यु तीनों ही बहुत ही रहस्यमयी है। उन्होंने जीवन को संघर्ष की बजाय उत्साह और उत्सव में बिताने का उदाहरण प्रस्तुत किया है। आओ जानते हैं उनके जन्मकाल के 10 ऐसे रहस्य जिन्हें जानकर आप भी अचंभित हो जाएंगे।
 
 
1. कंस जब अपनी चचेरी बहन देवकी और वसुदेव को उनके ससुराल छोड़ने जा रहा तो उसने रास्ते में भविष्यवाणी सुनी की हे कंस जिस बहन को तु छोड़ने जा रहा है उसकी आठवीं संतान तेरा वध करेगी। यह सुनकर कंस दोनों को कारागार में डाल देता है और एक एक करके देवकी की छह संतानों का वध कर देता है।
 
2. भगवान श्रीकृष्ण वसुदेव और देवकी की आठवीं संतान थे, उसके पूर्व शेषानाग ने सातवीं संतान के रूप में जन्म लिया था। योगमाया से वे देवकी के गर्भ से निकलकर रोहिणी के गर्भ में चले गए और देवकी के गर्भ में रोहिणी का गर्भ आ गया। शेषनाग ने ही उनके जन्म की बाधाओं को हटाकर कारागर के मार्ग खोल दिए थे।
 
3. श्री कृष्ण ने विष्णु के 8वें अवतार के रूप में 8वें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के 28वें द्वापर में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के 7 मुहूर्त निकल गए और 8वां उपस्थित हुआ तभी आधी रात के समय सबसे शुभ लग्न में उन्होंने जन्म लिया। उस लग्न पर केवल शुभ ग्रहों की दृष्टि थी। तब रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में लगभग 3112 ईसा पूर्व को उनका जन्म हुआ था। ज्योतिषियों के अनुसार रात 12 बजे उस वक्त शून्य काल था।
 
4. जब उनके गर्भ में आते ही कारागार में आलौकिक प्रकाश फैल गया और चारों और फूल बिछ गए। यह सुनकर कंस भयभीत हो गया।
 
5. जब भगवान श्रीकृष्‍ण का जन्म हुआ तब भारी बारिश हो रही थी और यमुना नदी में उफान था। उनके माता और पिता को उनकी मृत्यु का डर था। अंधेरा भी भयंकर था, क्योंकि उस वक्त बिजली नहीं होती थी।
 
5. कहते हैं कि जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ तो जेल के सभी संतरी माया द्वारा गहरी नींद में सो गए। उस बारिश में ही वसुदेव ने नन्हे कृष्ण को एक सूफड़े में रखा और उसको लेकर वे जेल से बाहर निकल आए।
 
6. मान्यता अनुसार कुछ दूरी पर ही यमुना नदी थी। उन्हें उस पार जाना था लेकिन कैसे? तभी चमत्कार हुआ। यमुना के जल ने भगवान के चरण छुए और फिर उसका जल दो हिस्सों में बंट गया और इस पार से उस पार रास्ता बन गया।
 
7. कहते हैं कि वसुदेव कृष्ण को यमुना के उस पार गोकुल में अपने मित्र नंदराय के यहां ले गए। वहां पर नंद की पत्नी यशोदा को भी एक कन्या उत्पन्न हुई थी। वसुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को ले गए।
 
8. दुनिया में ऐसे कई बालक है जिन्हें उनकी मां ने नहीं दूसरी मां ने पाल-पोसकर बढ़ा किया। दुनिया में योगमाया की तरह ऐसी भी कई बालिकाएं है जिन्होंने किसी महान उद्देश्य के लिए खुद का बलिदान कर दिया और फिर वे जीवन भर कृष्‍ण जैसे भाई का साथ देती रही।
 
8. जब कंस को पता चला कि छलपूर्वक वसुदेव और देवकी ने अपने पुत्र को कहीं ओर भेज दिया है तो उसने तुरंत चारों दिशाओं में अपने अनुचरों को भेज दिया और कह दिया कि अमुक-अमुक समय पर जितने भी बालकों का जन्म हुआ हो उनका वध कर दिया जाए। पहली बार में ही कंस के अनुचरों को पता चल गया कि हो न हो वह बालक यमुना के उस पार ही छोड़ा गया है। कंस ने अपने सैनिकों को उसे ढूंढने के लिए लगा दिया। चारों और हाहाकार मच गया।
 
9. कृष्ण के जन्म के बाद उनको मारने की बहुत तरह की घटनाएं आती हैं, लेकिन वे सबसे बचकर निकल जाते हैं। जो भी उन्हें मारने आता है, वही मर जाता है। कहना चाहिए की मौत हारकर लौट जाती है। जिस व्यक्ति में जीने की तमन्ना है और जो मौत से नहीं डरता है वही जिंदगी को सुंदर बना सकता है।
 
10. कहते हैं कि श्रीकृष्ण के जन्म के समय छह ग्रह उच्च के थे। उनकी कुण्‍डली में लग्न में वृषभ राशि थी जिसमें चंद्र ग्रह था। चौथे भाव में सिंह राशि थी जिसमें सूर्य विराजमान थे। पांचवें भाव में कन्या राशि में बुध विराजमान थे। छठे भाव की तुला राशि में शनि और शुक्र ग्रह थे। नौवें अर्थात भाग्य स्थान पर मकर राशि थी जिसमें मंगल ग्रह उच्च के होकर विराजमान थे। 11वें भाव में मीन राशि के गुरु उच्च के होकर विराजमान थे। हालांकि कई विद्वान उनकी कुण्‍डली के ग्रहों की स्थिति को इससे अलग भी बताते हैं। कुछ के अनुसार केतु लग्न में था तो कुछ के अनुसार छठे भाव में।
 
श्रीकृष्‍ण की जन्‍म कुण्‍डली को लेकर कई भेद हैं, लेकिन यह गणितीय स्थिति अब तक सर्वार्थ शुद्ध उपलब्‍ध है। इसके कई प्रमाण हमें मिलते हैं। श्रीमद्भागवत की अन्वितार्थ प्रकाशिका टीका में दशम स्‍कन्‍ध के तृतीय अध्‍याय की व्‍याख्‍या में पंडित गंगासहाय ने ख्‍माणिक्‍य ज्‍योतिष ग्रंथ के आधार पर लिखा है कि…
 
''उच्‍चास्‍था: शशिभौमचान्द्रिशनयो लग्‍नं वृषो लाभगो जीव: सिंहतुलालिषु क्रमवशात्‍पूषोशनोराहव:।' 
नैशीथ: समयोष्‍टमी बुधदिनं ब्रह्मर्क्षमत्र क्षणे श्रीकृष्‍णाभिधमम्‍बुजेक्षणमभूदावि: परं ब्रह्म तत्।।''

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