श्रीकृष्ण की नीतियां प्रोग्रेसिव हैं, जानिए 10 बातें

बुधवार, 17 अगस्त 2022 (17:43 IST)
भगवान श्रीकृष्ण ने धर्म, दर्शन, राजनीति, युद्ध, कर्म, जीवन, सत्य, न्याय, देश, परिवार और समाज आदि कई विषयों पर अपने विचार को महाभारत और इससे इतर प्रस्तुत किया है। श्रीकृष्ण पूर्णावतार थे और उन्होंने जो कहा वह आज भी प्रासंगिक है। उनकी नीतियां आज के प्रगतिशील मानव के लिए जरूरी है। उनकी नीतियों पर चलकर ही कई लोग अपने जीवन में सफल हो चुके हैं। आओ जानते हैं 10 नीतियां।
 
1. शक्तिशाली से कूटनीति से काम लें: जब दुश्मन शक्तिशाली हो तो उससे सीधे लड़ाई लड़ने की बजाय कूटनीति से लड़ना चाहिए। भगवान कृष्ण ने कालयवन और जरासंध के साथ यही किया था। उन्होंने कालयवन को मु‍चुकुंद के हाथों मरवा दिया था, तो जरासंध को भीम के हाथों। ये दोनों ही योद्धा सबसे शक्तिशाली थे लेकिन कृष्ण ने इन्हें युद्ध के पूर्व ही निपटा दिया था। दरअसल, सीधे रास्‍ते से सब पाना आसान नहीं होता। खासतौर पर तब जब आपको विरोधि‍यों का पलड़ा भारी हो। ऐसे में कूटनीति का रास्‍ता अपनाएं।
 
2. यह स्पष्ट होना चाहिए कि कौन किधर है: श्रीकृष्ण ने कहा था कि कुल या कुटुम्ब से बढ़कर देश है और देश से बढ़कर धर्म, धर्म का नाश होने से देश और कुल का भी नाश हो जाता है। जब कुरुक्षेत्र में धर्मयुद्ध का प्रारंभ हुआ तो युधिष्ठिर दोनों सेनाओं के बीच में खड़े होकर कहते हैं कि मैं जहां खड़ा हूं उसके नीचे एक ऐसी रेखा है जो धर्म और अधर्म को बांटती है। निश्चित ही एक ओर धर्म और दूसरी ओर अधर्म है। दोनों ओर धर्म या अधर्म नहीं हो सकता। अत: जो भी यह समझता है कि हमारी ओर धर्म है वह हमारी ओर आ जाए और जो यह समझता है कि हमारे शत्रु पक्ष की ओर धर्म है तो वह उधर चला जाए क्योंकि यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि कौन किधर है। युद्ध प्रारंभ होने से यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि कौन किसकी ओर है? कौन शत्रु और कौन मित्र है? इससे युद्ध में किसी भी प्रकार की गफलत नहीं होती है। लेकिन फिर भी यह देखा गया था कि ऐसे कई योद्धा थे, जो विरोधी खेमे में होकर भीतरघात का काम करते थे। ऐसे लोगों की पहचान करना जरूरी होता है।
 
3. संख्या नहीं साहस और सही समय की जरूरी: युद्ध या कोई भी कार्य संख्या बल महत्व नहीं रखता, बल्कि साहस, नीति और सही समय पर सही अस्त्र एवं व्यक्ति का उपयोग करना ही महत्वपूर्ण कार्य होता है। पांडवों की संख्या कम थी लेकिन कृष्ण की नीति के चलते वे जीत गए। उन्होंने घटोत्कच को युद्ध में तभी उतारा, जब उसकी जरूरत थी। उसका बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उसके कारण ही कर्ण को अपना अचूक अस्त्र अमोघास्त्र चलाना पड़ा जिसे वह अर्जुन पर चलाना चाहता था।
 
4. संधि या समझौता तब नहीं मानना चाहिए: भीष्म पितामह ने युद्ध के कुछ नियम बनाए थे। श्रीकृष्ण ने युद्ध के नियमों का तब तक पालन किया, जब तक कि अभिमन्यु को चक्रव्यूह में फंसाकर उसे युद्ध के नियमों के विरुद्ध निर्ममता से मार नहीं दिया गया। अभिमन्यु श्रीकृष्ण का भांजा था। श्रीकृष्ण ने तब ही तय कर लिया था कि अब युद्ध में किसी भी प्रकार के नियमों को नहीं मानना है। इससे यह सिद्ध हुआ कि कोई भी वचन, संधि या समझौता अटल नहीं होता। यदि उससे राष्ट्र का, धर्म का, सत्य का, जीवन का अहित हो रहा हो तो उसे तोड़ देना ही चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण ने अस्त्र न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा भी तोड़कर धर्म की ही रक्षा की थी।
 
5. युद्ध के जोश में ज्ञान जरूरी है: इस भयंकर युद्ध के बीच भी श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया। यह सबसे अद्भुत था। कहने का तात्पर्य यह कि भले ही जीवन के किसी भी मोर्चे पर व्यक्ति युद्ध लड़ रहा हो लेकिन उसे ज्ञान, सत्संग और प्रवचन को सुनते रहना चाहिए। यह मोटिवेशन के लिए जरूरी है। इससे व्यक्ति को अपने मूल लक्ष्य का ध्यान रहता है।
6. युद्ध की योजना जरूरी है: भगवान श्रीकृष्ण ने जिस तरह युद्ध को अच्छे से मैनेज किया था, उसी तरह उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन को भी मैनेज किया था। उन्होंने हर एक प्लान मैनेज किया था। यह संभव हुआ अनुशासन में जीने, व्यर्थ चिंता न करने, योजना बनाने और भविष्य की बजाय वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करने से। मतलब यह कि यदि आपके पास 5, 10 या 15 साल का कोई प्लान नहीं है, तो आपकी सफलता की गारंटी नहीं हो सकती। युद्ध में मृत सैनिकों का दाह-संस्कार, घायलों का इलाज, लाखों सैनिकों की भोजन व्यवस्था और सभी सैनिकों के हथियारों की आपूर्ति का इंतजाम बड़ी ही कुशलता से किया गया था। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह सभी कार्य श्रीकृष्ण की देखरेख और उनकी नीति के तहत ही होता था।
 
7. अधर्मी को मारते वक्त सोचना नहीं: जब आपको दुश्मन को मारने का मौका मिल रहा है, तो उसे तुरंत ही मार दो। यदि वह बच गया तो निश्चित ही आपके लिए सिरदर्द बन जाएगा या हो सकता है कि वह आपकी हार का कारण भी बन जाए। अत: कोई भी दुश्मन किसी भी हालत में बचकर न जाने पाए। कृष्ण ने द्रोण और कर्ण के साथ यही किया था।
 
8. प्रत्येक सैनिक को राजा समझें : जो राजा या सेनापति अपने एक-एक सैनिक को भी राजा समझकर उसकी जान की रक्षा करता है, जीत उसकी सुनिश्‍चित होती है। एक-एक सैनिक की जिंदगी अमूल्य है। अर्जुन सहित पांचों पांडवों ने अपने साथ लड़ रहे सभी योद्धाओं को समय-समय पर बचाया है। जब वे देखते थे कि हमारे किसी योद्धा या सैनिक पर विरोधी पक्ष का कोई योद्धा या सैनिक भारी पड़ रहा है तो वे उसके पास उसकी सहायता के लिए पहुंच जाते थे।
 
9. निष्पक्ष या तटस्थ पर ना करें भरोसा: जो निष्पक्ष हैं, तटस्थ या दोनों ओर हैं इतिहास उनका भी अपराध लिखेगा। दरअसल वह व्यक्ति ही सही है, जो धर्म, सत्य और न्याय के साथ है। निष्पक्ष, तटस्थ या जो दोनों ओर है उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
 
10. भय को जीतना जरूरी: कृष्‍ण सिखाते हैं कि संकट के समय या सफलता न मिलने पर साहस नहीं खोना चाहिए। इसकी बजाय असफलता या हार के कारणों को जानकर आगे बढ़ना चाहिए। समस्याओं का सामना करें। एक बार भय को जीत लिया तो फि‍र जीत आपके कदमों में होगी।

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