भगवान श्रीकृष्ण के कई बाल सखा थे। जैसे मधुमंगल, सुबाहु, सुबल, भद्र, सुभद्र, मणिभद्र, भोज, तोककृष्ण, वरूथप, श्रीदामा, सुदामा, मधुकंड, विशाल, रसाल, मकरन्द, सदानन्द, चन्द्रहास, बकुल, शारद और बुद्धिप्रकाश आदि। उद्धव और अर्जुन बाद में सखा बने। बलराम उनके बड़े भाई थे और सखा भी।
पुष्टिमार्ग के अनुसार अष्टसखाओं के नाम : कृष्ण की बाल एवं किशोर लीला के आठ आत्मीय संगी- कृष्ण, तोक, अर्जुन, ऋषभ, सुबल, श्रीदामा, विशाल और भोज। आओ जानते हैं इस बार मधुमंगल के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
3. एक बार मधुमंगल के श्रीकृष्ण का रूप धर लिया था ताकि सभी गोपियां उससे भी प्रेम कर सके और उसे भी लड्डू मिल सके। तभी वहां घोड़े का रूप धारण करके केशी दैत्य आ धमका। उसने सोच यही कृष्ण है तो वह मधुमंगल को मारने लगा तभी श्रीकृष्ण ने मधुमंगल को बचाकर उस दैत्य का वध कर दिया। इस घटना के बाद मधुमंगल ने कसम खा ली थी कि आज के बाद में कभी कृष्ण रूप नहीं धरूंगा। जहां यह घटना घटी थी उस स्थल को केशीघाट कहते हैं। इसी तरह ऐसी कई घटनाएं हैं जो मधुमंगल से जुड़ी हुई है।
4. भगवान कन्हैया ने अपने सभी सखाओं से कहा कि हम आज मधुमंगल के घर का भोजन करेंगे। यह सुनकर मधुमंगल अपने घर गया और अपनी माता पूरनमासी से कन्हैया के भोजन की व्यवस्था के लिए कहने लगा। इस पर बेचारी निर्धन माता की बोलीं- बेटा तुम तो जानते ही हो हमें एक समय का भोजन भी ठीक से नहीं मिल पाता है। इस पर मधुमंगल ने अपने घर में ढूंढ़ने पर पाया कि एक हांड़ी में तीन दिन पुरानी कड़ी रखी है। मधुमंगल ने सोचा कि दूध दही माखन को खाने वाले अपने प्यारे सखा को मैं ये नहीं खिला सकूंगा। इसलिए मधुमंगल उस कड़ी को झाड़ी में छुपकर अकेले ही पीने लगा, तभी वहां पर कन्हैया आ जाते हैं और छुपकर कड़ी पीने का कारण पूछते हैं। इस पर मधुमंगल ने सारा वृतांत सुनाया। यह सुनकर कन्हैया के प्रेमाश्रु बहने लगे।
5. मधु मंगल को भरपेट भोजन नहीं मिलता था इसीलिए वह दुबला पतला और कमजोर था। एक दिन बालकृष्ण ने मधुमंगल अर्थात मनसुखा के कंधे पर हाथ रखकर कहा कि मनसुखा तुम मेरे मित्र हो या नहीं? मनसुखा बोला, हां मैं तुम्हारा मित्र हूं। तब कन्हैया ने कहा कि ऐसा दुर्बल मित्र मुझे पसंद नहीं। तुम मेरे जैसे तगड़े हो जाओ।
यह सुनकर मनसुखा रोने लगा और बोला, कन्हैया तुम राजा के पुत्र हो। तुम्हारी माता तुम्हें रोज दूध और माखन खिलाती है। इससे तुम तगड़े हो गए हो। मैं तो गरीब हूं। मैंने कभी माखन नहीं खाया। मेरी मां मुझे छाछ ही देती है। यह सुनकर कन्हैया ने कहा कि मैं तुम्हें हर रोज माखन खिलाऊंगा। मनसुखा बोला यदि तुम हर रोज मुझे माखन खिलाओगे तो तुम्हारी मां क्रोधित हो जाएगी। तब कन्हैया कहते हैं कि अरे! अपने घर का नहीं, पर बाहर से कमाकर मैं तुम्हें खिलाऊंगा। इस प्रकार श्रीकृष्ण अपने मित्र के लिए माखन चोर बन गए।