निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 26 अगस्त के 116वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 116 ) में जब संभरासुर सत्यभामा बनकर प्रद्युम्न का हरण कर लेता है तो बलरामजी क्रोधित होकर धरती की सभी नदियों का जल रोक देते हैं और वे उस जल को द्वारिका के समुद्र में मोड़ने वाले रहते हैं तब श्रीकृष्ण उन्हें रोककर बताता हैं कि तुम शेषनाग का अवतार हो और प्रद्युम्न का हरण तो विधि का विधान है। प्रद्युम्न ही संभरासुर का वध करेगा। अब आगे...
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
बलरामजी को विष्णुजी बताते हैं कि उसे शक्ति माता दुर्गा ने वर दिया है। यदि तुम वध करोगे तो ये अनुचित होगा। इसीलिए शिवजी के आशीर्वाद से कामदेव ने श्रीकृष्ण के रूप में पृथ्वीलोक पर संभरासुर का वध करने के लिए जन्म लिया है जो सर्वथा उचित है। मैं अलग-अलग माध्यमों से अधर्मियों का संहार करता हूं इस समय में प्रद्युम्न के माध्यम से संभरासुर का वध करूंगा। यही विधि का विधान है बलराम। यही भगवान शिवजी की इच्छा है। इसलिए प्रद्युम्न के लिए आतंकित होने की कोई आवश्यकता नहीं है। बलराम वो सुरक्षित है बिल्कुल सुरक्षित। यह सुनकर बलरामजी प्रसन्न हो जाते हैं। फिर विष्णुजी कहते हैं- बलराम श्रीकृष्ण वासुदेव का कहना मानो अत: तुम्हें पानी रोकने की आवश्यकता नहीं है। इस पर बलरामजी कहते हैं- जैसी आपकी आज्ञा भगवन। फिर विष्णुजी कहते हैं- बलराम अब तुम मेरा ये दर्शन भूल जाओगे और यह भी भूल जाओगे की तुम शेषनाग का अवतार हो।
फिर श्रीकृष्ण और बलराम खुद को उसी नदी के किनारे खड़ा पाते हैं तब बलरामजी कुछ समझ नहीं पाते हैं कि ये हुआ क्या। तभी श्रीकृष्ण कहते हैं- दाऊ भैया अब आप हल निकाल लीजिये। यह सुनकर बलरामजी कहते हैं- हल! इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं- हां दाऊ भैया हल निकाल लीजिये।..बलरामजी को कुछ समझ में नहीं आता है परंतु वे श्रीकृष्ण की आज्ञा मानकर हल निकाल लेते हैं तब सभी नदियों का प्रवाह पहले जैसा हो जाता है। फिर श्रीकृष्ण बलरामजी से कहते हैं- चलिये दाऊ भैया आइये। बलरामजी कुछ बोले बगैर ही उनके साथ हो लेते हैं।
उधर, संभरासुर जोर-जोर से हंसते हुए अपनी पत्नी से कहता है- और महारानी जिस कृष्ण ने हमसे हमारा पुत्र छीन लिया था हमने उससे उसका पुत्र छीन लिया है। काश आप देखती रानी कि कृष्ण की रानियां पुत्र शोक के कारण किस तरह से विलाप कर रही थीं। उन्हें शोकाकुल देखकर पुत्र वियोग के कारण मेरा शोकाकुल मन शांत हुआ था।
इधर, रुक्मिणी उदास बैठी रहती है अपने पुत्र वियोग में तो श्रीकृष्ण कहते हैं कि देवी अब ये भावुकता छोड़िये और इस नाटक से बाहर आइये। देखिये देवी हम जैसा चाहते थे वैसा ही हो गया। वाह देवी आपके अभिनय ने तो संभरासुर जैसे मायावी को भी धोखे में डाल दिया। यह सुनकर रुक्मिणी कहती हैं- वो अभिनय नहीं था भगवन, वो तो एक मां के दिल की वेदनाओं का प्रदर्शन था। मेरे आंसू झूठे नहीं थे। वह तो एक मां की आंखों में झलकने वाले ममता के मोती थे। इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं कि देवी पृथ्वीलोक में निवास करने के बाद आप भी माया-मोह के चक्कर में उलझ गई।.. तब रुक्मिणी कहती हैं कि एक देवी के भीतर एक मां भी है। प्रद्युम्न और मेरा जब मिलन होगा तब वह बड़ा हो चुका होगा। उसका बचपन मेरे हाथ से फिसल गया है। जब वह पहली बार किसी को मां कहकर पुकारेगे तब मैं तो उसके पास भी नहीं होऊंगी भगवन।...इस तरह दोनों में वार्तालाप होता है।
बाद में रुक्मिणी और श्रीकृष्ण देखते हैं कि समुद्र में एक मछली के पेट के भीतर प्रद्युम्न है। यह देखकर रुक्मिणी कहती है वाह प्रभु! आपकी लीला अगाथ है। प्रद्युम्न को देखकर मेरा व्याकुल मन शांत हो गया। फिर यह बताया जाता है कि नाव में बैठे कुछ मछुआरे जाल डालकर उस मछली को पकड़ लेते हैं जिसने प्रद्युम्न को निगल लिया था।
यह देखकर श्रीकृष्ण कहते हैं- देवी मायावी संभारासुर का वध करने के लिए प्रद्युम्न को भी मायावी विद्या की शिक्षा लेना जरूरी है। अब इन मछुआरों के माध्यम से प्रद्युम्न संभरासुर के साम्राज्य में प्रदेश करेगा और संभरासुर का काल बनेगा।
उधर, वो मुछआरे उस मछली को बड़ी मुश्किल से जल से बाहर निकालकर खुश हो जाते हैं। एक कहता है- बहुत बड़ी मछली फंसी आज। इतनी बड़ी मछली बेचेंगे कहां और खरीदेगा कौन? ऐसा लगता है कि मछली नहीं मजरमच्छ गले पड़ गया है। तब दूसरा कहता है यही तो समस्या है इसे हम कहां ले जाएंगे? तब तीसरा कहता है कि यदि हम इस मछली को महाराज संभरासुर को भेंट कर दें तो? इस पर एक कहता है वो क्यों? तब वह कहता है कि अरे! महाराज हमें इनाम देंगे तो हम वारे-न्यारे हो जाएंगे।
तब वे सभी उस मछली को ले जाकर महाराज संभरासुर को दे देते हैं। संभरासुर उस मछली को देखकर कहता है- वाह! महारानी हमारे इन शुभचिंतकों को इस अनुपम भेंट के लिए पुरुस्कार मिलना ही चाहिए। फिर उन मछु्आरों को महारानी मायावती सिक्कों की एक थैली दे देती हैं। वह थैली लेकर मछुआरे वहां से चले जाते हैं।
यह देखकर श्रीकृष्ण कहते हैं- देखा देवी! होनी जब होनी होने को आती है तो मनुष्य कैसा अंधा हो जाता है। इस समय संभरासुर के समक्ष यही समस्या है। उसे अपने समीप प्रद्युम्न के रूप में साक्षात मृत्यु दिखाई नहीं दे रही है। मूर्ख उस मछली को देखकर कितना प्रसन्न हो रहा है।
फिर उधर, संभरासुर अपने एक सेवक से कहता है- प्रतिहारी हमारे उस विशेष रसाइये भाणासुर को हमारा संदेश दो। कहो की महल में इसी समय उपस्थित हो। महाराज ने एक विशेष मछली का विशेष व्यंजन तैयार करने की आज्ञा दी है।..सेवक यह सुनकर कहता है- जो आज्ञा महाराज।
उधर, भाणासुर को बताया जाता है जो अपनी पत्नी के साथ भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष खड़ा होता है। उसकी पत्नी प्रार्थना करती है कि हे ईश्वर! तू ही जन्मदाता और तूही मृत्यु देने वाला, मेरी गोद कब से खाली है तू उसे भर दे प्रभु, जल्दी भर दे।....यह सुनकर भाणासुर कहता है तो तुम पहले से ही पूजा कर रही थी? यह सुनकर उसकी पत्नी कहती हैं- हां। तब वह कहता है तो अब तक क्यों नहीं सुनी तुम्हारे भगवान विष्णु ने तुम्हारी प्रार्थना? इस पर वह कहती है कि इसलिए की तुमने मेरे साथ प्रार्थना नहीं की। तुम केवल एक बार भगवान विष्णु की प्रार्थना करो। वो हमारी प्राथना अवश्य सुनेंगे। यह सुनकर भाणासुर कहता है- नहीं ये नहीं हो सकता।
तभी वहां पर संभरासुर का भेजा सेवक द्वार पर आवाज लगता है भाणासुर, ओ भाणासुर। ऐसा कहते हुए वह सेवक अंदर प्रवेश कर जाता है तो भाणासुर की पत्नी जल्दी से विष्णु की मूर्ति का परदा गिरा देती है।
फिर वह सैनिक कहता है- भाणासुर क्या कर रहे थे? यह सुनकर भाणासुर कहता है- कुछ नहीं परंतु तुम राजमहल छोड़कर इधर क्या कर रहे हो? तब वह सेवक कहता है कि असुरेश्वर ने तुम्हें तुरंत उपस्थित होने की आज्ञा दी है और तुम्हारी आज की छुट्टी रद्द की गई है। यह सुनकर वह कहता है कि परंतु महल में और भी तो दूसरे रसोईये हैं। तब वह सेवक कहता है- हैं पर असुरेश्वर को एक बहुत बड़ी मछली भेंट में मिली है और आप मछली के व्यंजन बनाने के विशेषज्ञ हैं। इसलिए महाराज ने आप दोनों को ये विशेष काम सौंपा है। चलिये, चलिये।
फिर भाणासुर और उसकी पत्नी दोनों ही राजमहल में जाकर देखते हैं वह विशालकाय मछली। यह देखकर उसकी पत्नी कहती हैं- इतनी बड़ी मछली इसे मैं काटूंगी कैसे? तब भाणासुर बड़ा छूरा देकर कहता है कि बड़ी मछली के लिए बड़ा छूरा। एक भाग तुम काटो और दूसरा भाग मैं काटता हूं। फिर भाणासुर मछली का पिछला हिस्सा और उसकी पत्नी अगला हिस्सा काटने लगते हैं तभी उसकी पत्नी को मछली के पेट में से छपाक-छपाक की आवाज सुनाई देती है तो वह कहती है स्वामी इसका पेट देख रहे हो कितना बड़ा है। ये अवश्य ही गर्भवती है, नहीं मैं इसे नहीं काटूंगी।
यह सुनकर उसका पति भाणासुर कहता है- अरी पगली! यदि ये मछली गर्भवती भी है तो इसके पेट से अंडा निकलेगा, बच्चा थोड़े ही निकलेगा। चलो काटो इसे जल्दी से, मुझे पहले से ही बहुत देर हो चुकी है। फिर भी उसकी पत्नी कहती है कि मैं इसे नहीं काटूंगी।... यह दृश्य देवर्षि नारद, देवी रति, रुक्मिणी और श्रीकृष्ण देख रहे होते हैं।
फिर भाणासुर की पत्नी मछली काटने लग जाती है और वे जैसे ही मछली का अगला हिस्सा काटकर अलग करती है तो उसकी पत्नी ये देखकर दंग रह जाते हैं कि उसके पेट में तो एक जिंदा बालक है। तभी प्रद्युम्न रोने लगता है। यह देखकर उसकी पत्नी आश्चर्य से कहती है- बालक! फिर वह उसे बाहर निकालकर कहती है- स्वामी स्वामी, ये देखिये ये बालक। भाणासुर भी उसे देखकर आश्चर्य करता है। उसकी पत्नी कहती है- स्वामी ये तो रो रहा है ये जीवित है स्वामी।...
उसकी पत्नी भगवान विष्णु का कोटि-कोटि धन्यवाद करती हैं। फिर वह अपने पति भाणासुर से कहती है कि अब तुम भी प्रार्थना करो। यह सुनकर उसका पति कहता है- अरे ये तुम क्या कह रही हो? पता नहीं किसका बच्चा है ये जिसे तुम अपना कह रही हो और इसका श्रेय भी तुम भगवान विष्णु को दे रही हो। तब उसकी पत्न कहती है कि कुछ भी हो ये भगवान विष्णु का ही उपहार है। तब उसका पति कहता है- इस झूठ को तुम भगवान विष्णु का उपहार कह रही हो। अपनी निराश ममता को इस झूठी आस से समझा रही हो। कितनी भोली हो तुम। आज तक तुम मुझसे छुपकर उस गुड़िया को सीने से लगाए मन को बहलाए करती थी अब तुम्हारे पागलपन को ये सचमुच की गुड़िया मिल गई है। मेरा मन तो यह नहीं मान सकता कि ये मेरा बच्चा है। तब उसकी पत्नी कहती है कि सबकुछ मानने से ही होता है स्वामी। मानो तो फूल है वर्ना माटी और धूल है।
यह सुनकर उसका पति कहता है- मानने के लिए कुछ तर्क तो होना चाहिए। ना तो तुमने इसे जन्मा है और ना तुमने इसे दूध पिलाया है फिर मां बेटे के संबंध को भला कोई क्यूं मानेगा? लाओ इस बच्चे को मुझे दे दो। महाराज के पास ले जाकर सब सच-सच बता दूंगा। यह सुनकर उसकी पत्नी कहती है कि नहीं नहीं मैं तुम्हें ऐसा अनर्थ नहीं करने दूंगी। ये बालक तो भगवान विष्णु का दिव्य उपहार है। उनकी पूजा से हमें ये मिला है। यह हमारे भाग्य से हमें ये मिला है। फिर ये बच्चा, इस बच्चे को तो मछली के पेट में ही समाप्त हो जाना चाहिए था। और, फिर ये मछली हमारे पास ही कटने के लिए क्यूं आती? दूसरे रसोइये के पास भी तो जा सकती थी। इधर हम बच्चे के लिए भगवान विष्णु की आराधना कर रहे थे और उधर वे हमारे लिए बच्चे का प्रबंध कर रहे थे। ये केवल बालक ही नहीं भगवान विष्णु की लीला है और आप इस लीला को नकार रहे हैं। उसे मुझसे छीन ले जाना चाहते हैं।
तब भाणासुर कहता है कि तुम्हारे भावुक होने से वास्तविकता तो नहीं बदल सकती। ना तो तुमने इसे जन्म दिया है और ना ही इसे दूध पिलाया है। लाओ ये बच्चा मुझे दे दो। ऐसा कहकर वह उसकी पत्नी से बच्चा छीनकर ले जाने लगता है तब उसकी पत्नी पीछे से उसका हाथ पकड़कर कहती है ये बच्चा मेरा है इसे मुझे दे दो।...तभी रुक्मिणी अपने चमत्कार से उसकी पत्नि के स्तन में दूधभर देती है और दूध बाहर झरने लगता है यह देखकर उसकी पत्नी कहती है- रुको स्वामी ये देखो। देखो ये क्या हो रहा है? ये देखो भगवान विष्णु की एक और लीला। उसका पति भी ये देखकर आश्चर्य करता है और कहता है ये तो सचमुच चमत्कार है।
फिर वह उस बच्चे को स्तनपान कराते हुए कहती है- स्वामी अब तो आपकी शिकायत दूर हो गई ना? अब ये बच्चा मेरा दूध पिकर मेरा हो गया है। अब ये मेरा बच्चा है और जब मैं इसकी मां बन गई हूं तो आप इसके पिता बन गए हैं ना? यह सुनकर भाणासुर कहता है- हां भानामति।.. तब भानामति कहती है कि तो फिर आप एक वचन दीजिये कि आप यह किसी को नहीं बताएंगे कि ये बच्चा मछली के पेट से मिला है। तब भाणासुर कहता है कि मैं वचन देता हूं। फिर भानामति कहती है कि आपका ये वचन मेरे माथे पर लगे बांछपन के कलंक को मिटा देगा।
फिर बाद में वे दोनों महाराज संभरासुर और रानी मायावती के पास जाकर उन्हें प्रणाम करते हैं और कहते हैं- महाराज ये हम दोनों का पहला पुत्र है। इसलिए हम दोनों आपसे आशीर्वाद लेने आएं हैं। यह सुनकर संभरासुर कहता है- लाओ हम भी देखें कि तुम्हारा पुत्र कैसा है।... यह सुनकर रति घबरा जाती है और नारदमुनि भी देखने लगते हैं। श्रीकृष्ण और रुक्मिणी भी इस घटना को देखते हैं।
फिर भाणासुर अपने पुत्र (प्रद्युम्न) को संभरासुर के हाथ में दे देता है। संभरासुर हंसते हुए उसे अपनी गोद में लेता है और तब फिर उस बालक को गौर से देखकर वह कुछ समझ नहीं पाता है तब फिर वह पूछता है ये तुम्हारा बालक है? यह सुनकर भाणासुर सकपका जाता तो उसकी पत्नी भानामति कहती है- हां महाराज ये मेरा ही पुत्र है। फिर संभरासुर कहता है- ये बालक बड़ा ही शूरवीर लगता है। यह सुनकर भानापति कहती है- महाराज आप इसे लंबी आयु का आशीर्वाद दीजिये। यह सुनकर संभरासुर कहता है- आयुष्यमान भव:। ऐसा कहकर वह उस बालक को अपनी रानी मायावती के हाथ में देकर कहता है- लीजिये महारानी आप भी देखिये इस बालक को। महारानी हाथ में लेकर कहती है- बधाई हो भाणासुर, बधाई हो भानामति। तुम्हें पुत्र की प्राप्ति हुई ये देखकर मुझे परम संतोष हुआ।
फिर संभरासुर अपने गले का एक हार निकालकर कहता है- ये लो भाणासुर हमारी तरफ से तुम्हारे पुत्र के लिए भेंट। क्या नामकरण किया है तुमने अपने पुत्र का? यह सुनकर भाणासुर कहता है- महाराज अभी तक नामकरण नहीं हुआ है। यह सुनकर रानी मायावती कहती है- क्यों भाणासुर? यह सुनकर भानामति कहती है यदि आप दोनों ही इसे आशीर्वाद देकर इसका नामकरण करेंगे तो हम धन्य हो जाएंगे महारानी। फिर भाणासुर कहता है कि महाराज संभरासुर जैसे परमप्रतापी, बलशाली, शौर्यशाली और महावीर का आशीर्वाद यदि हमारे पुत्र को प्राप्त हुआ तो भविष्य में हामारा पुत्र भी वीर बनकर दुष्टों को नष्ट करेगा। यह सुनकर गर्वित होकर संभरासुर कहता है- अवश्य करेगा। तुम्हारा पुत्र बड़ा होकर शत्रु का सर्वनाश करेगा।
फिर भाणासुर कहता है- महाराज इसका नामकरण तो कीजिये। यह सुनकर संभरासुर कुछ सोचने लग जाता है और फिर कहता है- हम इसका नाम प्रद्युम्न रखते हैं।... यह सुनकर देवर्षि और रति चौंक जाते हैं। रुक्मिणी श्रीकृष्ण की ओर देखती है तो वे मुस्कुराने लगते हैं।
यह नाम सुनकर रानी मायावती संभरासुर की ओर देखकर कहती है- प्रद्युम्न! तब संभरासुर मुस्कुरा देता है। फिर भाणासुर और उसकी पत्नी कहती है- प्रद्युम्न अच्छा नाम है महाराज। अब आज्ञा दें महाराज। फिर वे दोनों वहां से चले जाते हैं तब मायावती पूछती है कि महाराज आपने ये कैसा नाम रखा है? तब संभरासुर कहता है क्यों मायावती आपको ये नाम पसंद नहीं आया? तब वह कहती हैं- परंतु प्रद्युम्न तो वासुदेव श्रीकृष्ण के पुत्र का नाम था। यह सुनकर संभरासुर कहता है कि तो क्या हुआ। भाणासुर और भानामति के पुत्र को देखकर न जाने क्यों मुझे कृष्ण का पुत्र याद आ गया। इसीलिए मैंने उसका नाम प्रद्युम्न रख दिया। यह सुनकर मायावती कहती है- परंतु शत्रु पुत्र का नाम अब इस महल में गुंजकर शत्रु की याद दिलाता रहेगा। यह सुनकर संभरासुर कहता है- नहीं मायावती नहीं, बल्कि शत्रु पर विजय की याद दिलाता रहेगा जिसके पुत्र का मैंने वध किया है।
फिर उधर रसोई घर में प्रद्युम्न रो रहा होता है तो उसकी पत्नी भानामति कहती है- आप ध्यान नहीं दे रहे इस पर। तब वह कहता है कि भानापति आज राजमहल में राजगुरु पधार रहे हैं उनके लिए भोजन बनाना है यदि देर हो गई तो महाराज क्रोधित हो जाएंगे। इसलिए तुम बालक को संभालो, मैं भोजन बनाता हूं। फिर भानामति बालक को चुप कराने लग जाती है।
उधर राजमहल के बाहर संभरासुर के राजगुरु रथ से उतरते हैं।... उन्हें देखकर रति नारदमुनिक से कहती हैं- ये क्यों आए हैं? देवर्षि राजगुरु को देखकर मेरे मन में भय की आंधी क्यों उठ रही है। संभरासुर के राजगुरु का चेहरा बता रहा है कि वो ज्ञानी हैं, तपस्वी हैं।
संभरासुर के राजगुरु रथ से उतरकर राजमहल की छत पर देखते हैं तो उन्हें काला साया नजर आता है। तभी पास में खड़ा संभरासुर का पुत्र कुंभकेतु कहता है गुरुदेव आप रुक क्यों गए, क्या हुआ? तब वे कहते हैं कि मुझे राजमहल पर संकट की काली छाया दिखाई दे रही है। तब वह कुंभकेतु कहता है परंतु मुझे तो नहीं दिखाई दे रही गुरुदेव। यह सुनकर गुरुदेव कहते हैं तुम्हें वह काली छाया नहीं दिखाई देगी युवराज कुंभकेतु। तब कुंभकेतु कहता है यदि काली छाया है भी तो इसमें संकट की क्या बात है गुरुदेव? तब वे कहते हैं ये छाया घोर संकट का प्रतीक है कुंभकेतु। राजमहल पर अवश्य ही कोई विकट समय आने वाला है।
फिर गुरुदेव अपनी शक्ति से भगवान शंकर का नाम लेकर उस काली छाया से प्रकट होने का कहता है और पूछते हैं बताओ की तुम कौन हो तो वह काली छाया प्रकट होकर कहती है कि मैं काल हूं और संभरासुर का भक्षण करूंगा। यह सुनकर गुरुदेव कहते हैं- परंतु संभरासुर तो अजेय और अमर हैं। यह सुनकर काल कहता है कि केवल में ही अजर और अमर हूं और कोई नहीं। ये उसकी भूल है मैं संभरासुर का काल हूं। यह सुनकर गुरुदेव चौंक जाते हैं। जय श्रीकृष्णा।
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