फिर हनुमानजी को गंधमादन पर्वत पर बैठे हुए दिखाया जाता है जो अपने प्रभु श्रीकृष्ण को देख रहे होते हैं। उस वक्त रुक्मिणी तिलक लगाकर उनकी आरती उतार रही होती है तभी श्रीकृष्ण के चरणों में तीन कलम के फूल प्रकट हो जाते हैं। तब दोनों हनुमानजी की ओर देखते हैं तो हनुमानजी उन्हें प्रणाम करते हैं, क्योंकि हनुमानजी अपने प्रभु को अपने सरोवर के कमल के फूल प्रतिदिन चढ़ाते हैं। रुक्मिणी कहती है- प्रभु! हनुमान हर सुबह सबेरे सबसे पहले आपकी पूजा अर्चना करना और यह दिव्य कमल आपको अर्पण करना कभी नहीं भूलते। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं- देवी मैं अपने परमभक्त हनुमान पर जितना भी गर्व करूं कम है। केवल मेरी भक्ति ही उसका जीवन उद्देश्य बनकर रह गई है। तब रुक्मिणी कहती है- परंतु प्रभु इसके अतिरिक्त एक उद्देश्य और भी तो है। आप ही ने कहा था कि हनुमान द्वारा बलराम भैया, भीम भैया, अर्जुन, गरूढ़ और सुदर्शन का अहंकार तोड़ना चाहते हैं। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं- हां देवी मैंने कहा था कि अहंकार किसी भी योद्धा का दुश्मन होता है और मैं मेरे अपनों के इस दुश्मन को नष्ट करना चाहता हूं।