वानर द्वीत की लाश के पास पौंड्रक बैठा रहता है तब उसकी पत्नी तारा कहती है- देख लिया महाराज, श्रीकृष्ण से टकराने का परिणाम। यह सुनकर पौंड्रक क्रोधित होकर कहता है- चुप तारा चुप, हमारा मित्र सो रहा है और तुम शोर कर ही हो, सोने दो इसे सोने दो। यह सुनकर काशीराज कहते हैं- भगवान वासुदेव द्वीत मर चुका है। तब पौंड्रक कहता है- हां हम भी तो यही कह रहे हैं, सो रहा है ये मृत्यु की नींद सो रहा है। उस ग्वाले कृष्ण ने इसे सुला दिया है। यह सुनकर उसका भाई कहता है- हां वासुदेव हां। हमने बहुत बड़ी भूल की। ये भूल हमें बहुत महंगी पड़ी। परंतु अब हम उस कृष्ण को एक-एक करने सबको निगलने का अवसर नहीं देंगे। हम सब मिलकर उस ग्वाले को जंगली कुत्तों की भांति घेर लेंगे और फिर उसका विनाश कर देंगे।