निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 31 अक्टूबर के 173वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 173) में अर्जुन द्वारा जयद्रथ के वध की शपथ लेने के बाद श्रीकृष्ण पहले ही बता चुके थे कि जयद्रथ को उसके पिता द्वारा वरदान मिला है कि जो भी उसका वध करेगा और जैसे ही उसका सिर भूमि पर गिरेगा तो वध करने वाले के सिर के 100 टुकड़े हो जाएंगे। तब श्रीकृष्ण अर्जुन को एक नई युक्ति बताते हैं उसी युक्ति और नीति के अनुसार अगले दिन का युद्ध प्रारंभ हो जाता है। चारों ओर शंख ध्वनि बजने लगती है। अर्जुन युद्ध भूमि पर तबाही मचा देता है। सभी कौरव सिंधु नरेश जयद्रथ की सुरक्षा की शपथ ले चुके होते हैं।
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अर्जुन के रोद्र रूप को देखकर सिंधु नरेश जयद्रथ घबरा जाता है। कृपाचार्य कहते हैं कि तुम निश्चिंत हो जाओ तुम्हें कुछ नहीं होगा। शकुनि कहता है कि सिंधु नरेश क्या आप हम पर भरोसा नहीं करते हैं? यह सुनकर वह कहता है कि करता हूं परंतु आपसे ज्यादा मुझे अर्जुन के शौर्य और पराक्रम पर भरोसा है। अर्जुन अपनी प्रतिज्ञा अवश्य पूरी करेगा और उसकी प्रतिज्ञा पूरी होने का अर्थ है मेरा अस्तित्व ही मिट जाना। लगता है कि सूर्य को भी अस्त होने की कोई जल्दी नहीं है। इस तरह सिंधु नरेश बहुत ही घबरा जाता है।
उधर, श्रीकृष्ण कहते हैं कि सूर्य सर पर आ गया है। आधा दिन हाथ से निकल गया है और अब तक जयद्रथ हमें दिखाई नहीं दिया है। यह सुनकर अर्जुन कहता है कि कब तक, कब तक छिपेगा अपनी मृत्यु से? आज में उसे जीवित नहीं छोड़ूंगा। इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं कि पार्थ! ये तुम्हारी भावना बोल रही है। इस समय तुम भावनावश सच्चाई को भूल रहे हो। यह सुनकर अर्जुन पूछता है- कौनसी सचाई। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि यही की द्रोणाचार्य ने कुशलतापूर्वक व्यूह के अंदर व्यूह की रचना की है। तुम कौरवों का जो व्यूह ध्वस्त करके जयद्रथ तक पहुंचना चाहता हो वह द्रोणाचार्य का रचा हुआ केवल बाहरी व्यूह है और उन्होंने जो आंतरिक व्यूह बनाया है उसमें जयद्रथ सुरक्षित है और इस व्यूह के मुख पर स्वयं द्रोणाचार्य खड़े हैं। अब तक हम इस बाहरी व्यूह का भेदन भी नहीं कर सके हैं जबकि हमें चाहिए कि हम इस बाहरी व्यूह को तोड़कर हम आगे बढ़ें और द्रोणाचार्य से युद्ध करके उन्हें पराजित करें। इसके बाद ही हम आंतरिक व्यूह में प्रवेश कर सकेंगे। जयद्रथ तक पहुंचना बहुत ही दुष्कर कार्य है। क्योंकि हमारे पास केवल सूर्यास्त तक का समय है और समय है कि हमारे हाथों से निकला जा रहा है।
यह सुनकर अर्जुन कहता है कि धन्यवाद केशव जो तुमने मुझे गुरु द्रोणाचार्य की चाल समझा दी। अब चलो गुरु द्रोणाचार्य और उस आंतरिक व्यूह की ओर चलो। यह देखकर दुर्योधन सेना को आदेश देता है कि अर्जुन को रोको और उसे आगे मत बढ़ने दो, उसे चारों ओर से घेर लो। परंतु अर्जुन अपने तीरों से कोहराम मचा देता है। अर्जुन को रोकने के लिए कर्ण आता है परंतु भीम बीच में ही कूदकर कहता है कि अर्जुन तुम जाओ, इस सूत पुत्र से तो मैं निपटता हूं।
उधर यह घटना संजय धृतराष्ट्र को बताते हैं कि अर्जुन को रोकने के लिए कौरववीर एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं परंतु उसे रोकने में असफल हैं। महाराज अर्जुन ने मानो आज साक्षात यमराज का अवतार धारण कर लिया है। उसके सामने जो भी कोई आता है ढेर हो जाता है। यह सुनकर धृतराष्ट्र कहते हैं कि संजय यह तो बताओ कि सिंधु नरेश जयद्रथ तो सुरक्षित है ना? इस पर संजय कहता है कि हां महाराज परंतु वो अपना आत्मविश्वास खो चुके हैं। तब धृतराष्ट्र कहते हैं कि तुम सबकुछ बता रहे हो संजय परंतु दिन कितना चढ़ चुका है ये नहीं बता रहे हो। तब संजय बताता है कि ऐसा लगता है कि सूर्य कुरुक्षेत्र के आकाश में ठहरकर अर्जुन का पराक्रम देख रहा है।
उधर अर्जुन लाशों के ढेर लगा देता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि वाह अर्जुन वाह। आड़े आने वाली हर बाधाओं को इसी प्रकार दूर करते जाओ। यह देखकर दुर्योधन अर्जुन को रोकने का प्रयास करता है परंतु अर्जुन के पराक्रम के आगे उसे हार मानना पड़ती है। श्रीकृष्ण कहते हैं- दुर्योधन पहले गुरु द्रोण से धनुर्विद्या की शिक्षा लेकर आना फिर अर्जुन से युद्ध करना। फिर अर्जुन कहता है कि चलो केशव, रथ द्रोणाचार्य के सामने ले चलो।
अर्जुन का द्रोणाचार्य से भयंकर युद्ध होता है। इस बीच सिंधु नरेश घबराता रहता है। कृपाचार्य और अश्वत्थामा उसे सांत्वना देते हैं परंतु सिंधु नरेश कहता है कि अरे! अर्जुन कर्ण और दुर्योधन सहित सभी सेना को परास्त करके यहां तक पहुंच गया है। अब मुझे कोई नहीं बचा सकता। तुम मानो या ना मानो मेरी रक्षा का वचन देकर कर्ण, दुर्योधन, शकुनि और तुम लोग अपने ही प्राणों की रक्षा करते रहे इसलिए अर्जुन यहां तक आ पहुंचा, नहीं तो वह यहां सूर्यास्त तो क्या प्रलय तक भी नहीं पहुंच सकता था। बस अब मुझे लगता है कि मेरा अंत किसी भी क्षण आ जाएगा।
उधर धृतराष्ट्र पूछता है कि संजय सूर्यास्त हुआ या नहीं? तब संजय कहता है कि सूर्यास्त होने में अभी समय है महाराज। यह सुनकर धृतराष्ट्र कहता है कि क्या यह सूर्य भी पांडवों का पक्षपाती बन गया है। शीघ्र बताओ संजय कि अर्जुन अब कहां तक पहुंच गया है। यह सुनकर संजय कहता है कि अर्जुन अब द्रोणाचार्य के रचे दूसरे व्यूह के पास पहुंच गया है।
अर्जुन और द्रोणाचार्य में भयंकर युद्ध चल रहा होता है। तभी श्रीकृष्ण सूर्य को देखकर कहते हैं कि पार्थ सूर्य पश्चिम दिशा की ओर झुक गया है पर हम व्यूह में अब तक प्रवेश भी नहीं कर सके। हमें व्यूह में शीघ्र ही प्रवेश करना चाहिए। यह सुनकर अर्जुन कहता है कि परंतु द्रोणाचार्य को परास्त किए बिना इस व्यूह में प्रवेश नहीं कर सकते। इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं कि और द्रोणाचार्य के हाथों में जब तक शस्त्र है उन्हें कोई भी परास्त नहीं कर सकता। चाहे वह कितना ही वीर क्यों ना हो। यदि तुम्हें जयद्रथ का वध करना है तो द्रोणाचार्य को टालकर व्यूह में प्रवेश करना होगा और वह भी अतिशीघ्र क्योंकि अब हमारे पास समय नहीं है। यह सुनकर अर्जुन अपने तीर से माया रचता है, द्रोणाचार्य को एक नहीं रथ पर बैठे कई अर्जुन और कृष्ण नजर आने लगते हैं। यह देखकर सभी घबरा जाते हैं।
उधर, धृतराष्ट्र कहते हैं कि क्या कह रहे हो तुम संजय, कुरुक्षेत्र में कई अर्जुन प्रकट हो गए हैं? इस पर संजय कहता है कि हां महाराज दुर्योधन और अन्य कौरव भ्रम में पड़ गए हैं। तब धृतराष्ट्र कहते हैं कि ये अर्जुन मायावी कब से बन गया? कहीं ये कृष्ण की माया तो नहीं?
फिर द्रोणाचार्य बताते हैं कि अर्जुन ने गांधर्वास्त्र फेंककर हमें भ्रमित कर दिया है। फिर दुर्योधन के कहने पर द्रोणाचार्य गांधर्वास्त का प्रत्युतर देते हैं और अर्जुन की माया को समाप्त कर देते हैं परंतु जब माया समाप्त होती है तो शकुनि कहता है आचार्य ये असली अर्जुन और कृष्ण कहां चले गए? दिखाई नहीं दे रहे। यह सुनकर सभी घबरा जाते हैं तभी दुर्योधन कहता है वो देखो आचार्य अर्जुन व्यूह में प्रवेश कर गया है। आचार्य अब क्या होगा? उधर, भीम के साथ युधिष्ठिर भी कहता है कि इसी व्यूह में जयद्रथ को छुपाया है।
द्रोणाचार्य कहते हैं कि तुम चिंता मत करो अर्जुन जयद्रथ के पास पहुंच ही नहीं पाएगा क्योंकि अर्जुन के पास उतना समय ही नहीं है। वो देखिये सूर्यास्त होने का समय आ चुका है। सभी सूर्य की ओर देखते हैं। सूर्य बस डूबने ही वाला रहता है। यह देखकर सभी खुश हो जाते हैं। उधर, धृतराष्ट्र भी यह सुनकर खुश हो जाता है।
उधर, अर्जुन व्यूह को तोड़ता हुआ आगे बढ़ता जाता है और इधर युधिष्ठिर सहित सभी पांडव सूर्य को देखकर चिंतित हो जाते हैं और खुद को कोसते रहते हैं।
दूसरी ओर सिंधु नरेश अश्वत्थामा और कृपाचार्य से कहता है कि इन धमाकों का अर्थ यह है कि अर्जुन ने ना केवल व्यूह में प्रवेश कर लिया है बल्कि वह मेरे निकट भी आ पहुंचा है। बस कुछ ही क्षणों में वह मेरे सर तक भी पहुंच जाएगा। तब अश्वत्थामा कहता है कि घबराइये नहीं सिंधु नरेश इसकी कोई संभावन दिखाई नहीं देती क्योंकि एक व्यहू को ध्वस्त करने के बाद इस दूसरे व्यूह को ध्वस्त करने में अर्जुन को सारा दिन लग जाएगा। परंतु इतना समय लाएगा कहां से वह?
तभी श्रीकृष्ण अपनी माया से सूर्य को अस्त कर देते हैं। सभी कौरव पक्ष में हर्ष व्याप्त हो जाता है। अर्जुन अपनी प्रतिज्ञा अनुसार अग्नि में प्रवेश करने के लिए चिता तैयार करता है और चिता में अग्नि प्रज्वलित कर देता है। यह देखने के लिए सभी कौरव एकत्रित हो जाते हैं। उनके साथ जयद्रथ भी हंसता हुआ वहां आ खड़ा होता है। तभी श्रीकृष्ण अपनी माया दिखाते हैं और सूर्य फिर से निकल आता है।
तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि अभी सूर्यास्त कहां हुआ है पार्थ, वो देखो। सभी आसमान में देखने लगते हैं। यह देखकर जयद्रथ घबराकर कहता है कि ये कैसे हो गया? फिर श्रीकृष्ण कहते हैं कि और जब सूर्यास्त नहीं हुआ है तो तुम्हें अग्नि में प्रवेश करने के बदले अपनी प्रतिज्ञा पूरी करनी चाहिए। पार्थ! वो देखो सूर्य और वो रहा जयद्रथ, तुम्हारा शत्रु। यह देख और सुनकर अर्जुन हर्षित हो जाता है और जयद्रथ कहता है बचाओ। परंतु तब तक अर्जुन अपने धनुष पर बाण का संधान करके छोड़ चुका होता है।
जयद्रथ का सिर कटकर धनुष पर सवार होकर आसमान में दूर निकल जाता है और सीधा जाकर उसके पिता की गोद में गिर जाता है। तपस्या कर रहे जयद्रथ के पिता चौंक जाते हैं और वह उसका सिर उठाकर भूमि पर रख देते हैं तभी उनके सिर के 100 टुकड़े हो जाते हैं। यह देखकर अर्जुन और श्रीकृष्ण प्रसन्न हो जाते हैं तभी आसमान में सूर्यास्त हो जाता है। जय श्रीकृष्णा।
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा