Shri Krishna 22 May Episode 20 : जब बालकृष्ण गए माखन चुराने तो गजब हो गया

अनिरुद्ध जोशी

शुक्रवार, 22 मई 2020 (22:12 IST)
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 22 मई के 20वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 20 ) में यक्ष कुबेर के वृक्षरूपी पुत्र नंद कुबेर और मणि ग्रीव का उद्धार करने के बाद बालकृष्ण को थोड़ा और बड़ा बताया जाता है जब वे मोरपंख बांधे गोकुल भ्रमण कर रहे होते हैं तो सभी लोग उन्हीं की ओर देखते हैं।

रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
नंदबाबा और माता यशोदा बहुत ही प्रसन्न रहते हैं अपने बालक को देखकर। दोनों मिलकर उन्हें भोजन कराते हैं। दूसरी ओर घाट पर बैठी युवतियां बाते करती हैं कि आज तो नंद का लाल नहीं आया। दूसरी कहती है कि आएगा जरूर, वो देख उसके सखा वहां बैठे हैं वह माखन चुराकर यहीं आएगा।
 
उधर, गोकुल में महिलाएं बात करती हैं कि जिसके भाग्योदय होते हैं उसीके घर से माखन चुराने आता है कान्हा। तभी सभी देखती है कि कान्हा आ रहा है तो सभी अपने अपने घर में चली जाती हैं और फिर छुपकर देखती हैं कि आज ये किसके घर का माखन चुराएगा।
 
बाल कृष्ण चारों ओर घुमकर देखते हैं और फिर वे घर के बाहर रखी मटकियों में माखन ढूंढते हैं। अपने अपने घर से महिलाएं छुपकर ये दृश्य देखती रहती हैं। जब बाहर रखी म‍टकियों में माखन नहीं मिलता है तो बाल कृष्ण चुपके से एक घर में दाखिल होते हैं। वहां भीतर उन्हें ऊपर एक मटली लटकी हुई दिखाई देती है। तब सारी महिलाएं एकत्रित होकर उनमें से एक कहती है कि वो ऊपर गया है।
 
श्रीकृष्ण माखन चुराकर ले जा रहे होते हैं कि तभी सभी महिलाएं उन्हें रंगे हाथों पकड़ लेती हैं। एक पूछती हैं किसका माखन चुराया है, तो श्रीकृष्ण कहते हैं किसी का नहीं। तब दूसरी महिला कहती हैं चुराया नहीं, झूठ बोलता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैंने चोरी नहीं की। तीसरी महिला कहती है अब चलो यशोदा मैया के पास। वो मानती नहीं थीं कि मेरा बेटा चोरी करेगा। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि नहीं नहीं, मैया से मत कहना वो फिर मुझे ओखल से बांध देंगी। तब एक और महिला कहती हैं कि नहीं कहेंगी लेकिन तुम्हें इसका मूल्य देना पड़ेगा। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि ले लो मेरे कंगन ले लो। फिर वह महिला कहती हैं कि नहीं कंगन से काम नहीं चलेगा। हम तो चुंबन लेंगी। 
 
दूसरी ओर यमुना घाट पर बैठे सखाओं में से एक बोलता है आज तो उसने हमें भूखा ही मार दिया। कभी इतनी देर नहीं करता है। तब दूसरा सखा कहता है कि आज बेचारा किसी ऐसी गली में चला गया होगा जहां उल्टे चक्कर में फंस गया होगा। तब एक सखा कहता है कि तेरी ही गली में गया होगा। इस पर वह कहता है कि सच कहते हो मित्र हमारी गली की सारी ग्वालिनें महाधूर्त हैं हमारा सेनापति उन्हीं के हाथों फंस गया होगा। हो सकता है आज पिटाई भी हुई हो।
 
उधर, ग्वालिनें चुंबन भी लेती हैं और बालकृष्ण से नृत्य भी करवाती हैं। फिर सभी ग्वालिनें रास नृत्य करती हैं। दूसरी ओर आसमान में राधा कहती हैं कि कैसे आपने सभी को अपने मोह जाल में फंसा लिया है। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह मोहजाल नहीं है। ये इन सबकी पिछले जन्म की कामना है जिसे मैं पूरा कर रहा हूं। तब राधा कहती हैं कि मैं समझी नहीं। इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं कि ये जो ग्वालिनें हैं ये अपने पिछले जन्म में बड़े बड़े सिद्ध और तपस्वी थे। जिन्होंने घोर तपस्या करके हमारे साथ ममता का रिश्ता मांगा था। इन सबकी कामना थीं कि हमारी माता बने। सो योगमाया ने इन्हें ग्वालनों के रूप में गोकुल भेजकर इनकी अंतरंग इच्छा पूर्ण कर दी है। राधे वास्तव में ये आत्माओं का परमात्मा के लिए मिलन नृत्य है।
 
उधर, ग्वालिनें नृत्य में इतनी मगन हो जाती हैं कि उन्हें पता ही नहीं चलता है कि कब बालकृष्ण माखन लेकर भाग गया। उन्हें जब होश आता है तो पता चलता है कि कैसा छलिया है हमारा सारा माखन ले गया।
 
यमुना घाट पर जब श्रीकृष्ण के सखा देखते हैं कि कृष्णा आ गया है तो सभी खुश हो जाते हैं। तब एक सखा इतना सारा माखन देखकर कहता है कि लगता है कि आज तो सारी ग्वालिनों पर जादू कर दिया होगा। तब मनसुखा कहता है भई मान गए तू तो हमारा सचमुच ही सेनापति है। कृष्ण की सेना तो कभी भूखी नहीं मर सकती। तब एक सखा कहता है कि सेनापति से पूछों कि कहीं उसकी पिटाई तो नहीं हुई? तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि पिटाई तो नहीं हुई पर उन निर्दयियों ने कमर तोड़ डाली। तब मनसुखा पूछता है कमर तोड़ डाली, पिटाई के बिना? तब श्रीकृष्ण कहते हैं हां, पिटाई में तो एक आधा डंडा पड़ता, पर यहां तो नचा-नचा कर मार डाला। बस आज से मैंने निश्चय कर लिया है कल से मैं आप लोगों के लिए गली-गली नहीं घुमूगां। कल से आप लोग खुद ही अपना प्रबंध कर लेना। मुझे अपने लिए मेरी मैया से ही मिल जाता है माखन। मेरे बाबा के पास ढेर सारी गायें हैं।
 
यह सुनकर सभी सखा उदास हो जाते हैं। तब मनसुखा कहता है तेरे बाबा के पास तो ढेर सारी गायें हैं लेकिन इनमें से किसी के बाबा के पास गायें नहीं हैं। ये सब चरवाहें हैं। दिनभर दूसरों की गायें चराते हैं और उसका वेतन पाते हैं। तू इन बिचारों को माखन लाकर नहीं देगा तो इन्हें जीवन में माखन नहीं मिलेगा। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि ये भी मेरी तरह उन ग्वालनों के यहां जाएं और माखन मांग कर ले आएं। तब मनसुखा कहता है तेरे मांगने से दे देती हैं वो इनके मांगने से कभी नहीं देंगी और तू तो न मांगे फिर भी तेरे लिए पीछे-पीछे माखन की कटोरी लिए फिरती रहती हैं। तब एक सखा कहता है कन्हैया तो कैसे सबका मन मोह लेता है। तब दूसरा कहता है कि तेरा नाम तो मनमोहन होना चाहिए।
 
तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि इन चिकनी-चुपड़ी बातों से काम नहीं चलेगा। मैंने कह दिया ना अब मैं किसी ग्वालन के घर अकेला नहीं जाऊंगा। बहुत थक गया हूं मैं। ऐसा कहकर श्रीकृष्ण लंबे पैर कर बैठ जाते हैं। यह सुनकर सभी सखा उदास हो जाते हैं। उनमें से एक कहता है थक गये हो? लाओ चरण दबा दूं। ऐसा कहकर वह चरण दबाने लगता है। तभी दूसरा सखा भी कंधे दबाते हुए कहता है कि सेनापति यदि इस तरह हताश हो जाएगा तो सेना का भरण पोषण कैसे होगा?
 
इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं कि ये तुम जानो। नहीं तो कोई ऐसी योजना बनाओ की जिससे मेरी कमर भी ना टूटे और सबको माखन खाने को भी मिले। तब मनसुखा कहता है अच्छी बात है मुझको बैठकर सोचने का समय दो। सभी सखा बैठ जाते हैं। तब एक सखा कहता है कि हां मनसुखा अब तू ही कुछ सोच। जैसे कृष्णा हमारा पालनहार है वैसे ही तू हमारा सोचनहार है। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि अब से मैं अकेला चोरी नहीं करूंगा। बोलो तुम सब मेरे साथ चोरी करोगे? सभी सखा कहते हैं हां स्वीकार है। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि आज से मैं चोरों का राजा।
 
दूसरे दिन सभी एक घर में योजनाबद्ध तरीके से चोरी करने के लिए घुसते हैं। वहां खटिया पर एक वृद्ध बाबा सोये रहते हैं। उनके ऊपर छत पर माखन की मटकी लटकी रहती है। बालकृष्ण मनसुखा से इशारों में पूछते हैं अब क्या करें? मनसुखा सोचकर इशारा करता है कि तुम पलंग पर धीरे से चढ़कर मटकी उतार लो। श्रीकृष्ण पलंग पर चढ़ते हैं लेकिन उनका हाथ नहीं पहुंच पाता है। तब सबसे लंबे सखा को चढ़ाते हैं। श्रीकृष्ण उसकी गोदी में बैठकर मटकी निकालने का प्रयास करते हैं लेकिन नहीं निकाल पाते हैं। तब श्रीकृष्ण मनसुखा से इशारों से पूछते हैं कि अब क्या करें? तब मनसुखा कुछ सोचकर इशारों से बताता है कि इन्हें खाट सहित उठाकर अलग रख दो। तब सभी ऐसा ही करते हैं।
 
फिर सभी गोला बनाकर एक के ऊपर एक कंधे पर चढ़कर, अंत में श्रीकृष्ण सबसे ऊपर चढ़कर मटकी उतारने ही लगते हैं कि तभी एक सखा छींक देता है। उसकी छींक से खाट पर सोये बाबा चमककर उठ जाते हैं और श्रीकृष्ण अपने सखाओं सहित नीचे गिर पड़ते हैं। वो बाबा चिल्लाते हैं चोर-चोर-चोर, पकड़ो। सभी सखा वहां से भाग खड़े होते हैं।
 
आसपास के पड़ोसी एकत्रित होकर पूछते हैं कि कौन था। तब वह वृद्ध बाबा कहते हैं कि वही नंदलालजी का छोरा। तब एक महिला कहती हैं कि वही सबको भड़का कर चोरियां करवा रहा हैं। नंदलालजी को मुश्किल से संतान हुई है इसलिए अधिक लाड़-प्यार कर रहे हैं। तब वह वृद्ध कहता है कि छोरा बहुत बिगड़ गया है।

उधर, छींकने वाले मित्र को दंड स्वरूप उठक-बैठक लगवाई जाती है। दूसरी ओर यशोदा मैया कहती है कि सब झूठा बदनाम करती हैं मेरे लल्ला को। मैं सभी से कई बार कह रखा है कि एक बार पकड़कर ले आओ मेरे लल्ला को तो मानूंगी। तब काकी कहती हैं कि वह पकड़ा जाए तब तो।
 
तभी बाल श्रीकृष्‍ण वहां आ जाते हैं और कहते हैं कि मैं सखाओं के संग खेलने जा रहा हूं। तब यशोदा मैया कहती है कि क्यों रे लल्ला काकी कहती है कि तू सखाओं के संग लोगों के घरों से माखन चुराता है? तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैया काकी कितनी भोली है जिसने जो कहा बस मान लिया। तब श्रीकृष्ण काकी के गले लगकर कहते हैं कि अरे काकी हमारे घर में माखन की कमी है जो हम दूसरों के घर से चुराएं? काकी कहती हैं कि फिर वो सभी शिकायत क्यों करती हैं? तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि दुखियां हैं सारी।
 
तब श्रीकृष्ण ग्वालिनों की शिकायत करते हैं और कहते हैं कि वे मुझे नचा-नचा कर थका देती हैं। वे खुद ही मुझे अपने घर में बुलाकर नचाती हैं। मैं तो दुखी हो गया हूं। जरा से माखन के लिए वे ऐसा करती हैं। अब मैं बड़ा हो गया हूं तो मैंने कह दिया कि अब मैं नहीं नाचूंगा। इसीलिए अब वे मेरी झूठी शिकायत करती हैं। यह कहते हुए वे रोने लगते हैं और कहते हैं कि मैं तो इनसे दुखी हो गया हूं। मैया किसी ओर गांव में भेज दो। फिर श्रीकृष्ण वहां बहुत सा नाटक करते हैं और तब मां उससे कहती है जा मेरे लाल खेलने जा।
 
अपने दोस्तों के बीच जाकर श्रीकृष्ण बताते हैं कि किस तरह ग्वालिनों ने मेरी शिकायत कर रखी है। फिर श्रीकृष्ण बताते हैं कि काकी ने मुझे सबके नाम बताएं हैं। इन सब ग्वालियों से अब हमें बदला लेना हैं। तब सभी सखा इस पर चर्चा करते हैं कि किस तरह बदला लिया जाए। तब निर्णय होता है कि हम उनकी मटकियां फोड़कर उनसे बदला लेंगे। फिर सभी एक वृक्ष पर बैठकर कतार से पगडंडी पर जा रही ग्वालिनों की मटकी को गुलेल से फोड़ देते हैं। जय श्रीकृष्ण।

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