निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 26 जून के 55वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 55 ) के पिछले एपिसोड में अक्रूरजी हस्तिनापुर जाते हैं धृतराष्ट्र से जरासंध के आक्रमण के खिलाफ सहायता मांगने। अक्रूरजी कहते हैं कि मेरी आपसे प्रार्थना है महाराज इस पर जितनी जल्दी हो सकें निर्णय ले लीजिये क्योंकि जरासंध की सेना मथुरा पहुंचने की वाली है। तब धृतराष्ट्र कहते हैं कि हम आपका अनावश्यक
समय नष्ट नहीं करेंगे, क्योंकि हम परिस्थिति को भलीभांति जानते हैं।
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शकुनि यह प्रयास करता है कि धृतराष्ट्र मथुरा की सहायता नहीं करें और जरासंध का मथुरा पर आक्रमण हो जाने दें ताकि पांडवों की सहायता करने वाला कोई नहीं बचे। धृतराष्ट्र को शकुनि की बात समझ में आज जाती है।
भीष्म और विदुर के बीच संवाद होता है। विदुर चाहते हैं कि वे मथुरा की सहायता के लिए राजा धृतराष्ट्र को आज्ञा दें। लेकिन भीष्म कहते हैं कि मैं विवश हूं क्योंकि मैंने प्रतिज्ञा ली है कि जो भी इस सिंहासन पर बैठेगा मैं उसकी सेवा करूंगा और उसकी आज्ञा का पालन करूंगा।
भीष्म कहते हैं कि तुम तो महामंत्री हो तुम ये काम कर सकते हो। फिर विदुर भी कहते हैं कि मैं उनका छोटा भाई हूं और दूसरा यह की मैं एक दासी पुत्र हूं। इसलिए मेरा वहां कोई महत्व नहीं है और जिस राजनीति को शकुनि जैसे राहु का ग्रहण लगा है वहां प्रकाश कैसे होगा। वहां तो अंधकार ही अंधकार होगा।
उधर, शकुनि धृतराष्ट्र के मन में विष भरने के कार्य करता है। वह कहता है कि जब राजकुमार बड़े हो जाएंगे तो आप किसे युवराज घोषित करेंगे? अपने पुत्र दुर्योधन को या पांडु पुत्रों को? तब सारी यादव शक्ति कुंती पुत्रों के पक्ष में खड़ी हो जाएगी तब आप क्या करेंगे। इसलिए महाराज मथुरा का नाश होता है तो होने दो। ताकि न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी।
इधर, फिर अक्रूरजी महात्मा विदुर से मिलते हैं। अक्रूरजी भी बताते हैं कि आपके बारे में तो श्रीकृष्ण ने बताया है कि आप धर्म, न्याय और सत्य की मूर्ति हैं। तब विदुर श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति को प्रकट कर उनका गुणगान करते हैं और फिर कहते हैं कि मैं उनसे मिलने के लिए बहुत ही उतावला हूं।
उधर भीष्म पितामह से अक्रूरजी मिलते हैं तो वह उन्हें अपना समझकर राजमहल की परिस्थिति से अवगत कराते हैं और बताते हैं कि किस तरह यह राज्य पुत्र मोह और शकुनि के चंगुल में फंस गया है और भाई को भाई का शत्रु बना दिया है। वे कौरव और पांडवों के बीच की शत्रुता को प्रकट करते हैं। फिर भीष्म पितामह कहते हैं कि मैं आपकी समस्या का समाधान करने के बजाय अपने कुल की समस्या को लेकर बैठ गया। तब अक्रूरजी कहते हैं कि मुझे अपने राज्य की समस्या के बारे में कोई चिंता नहीं है तातश्री क्योंकि मथुरा की रक्षा करने वाला तो स्वयं मथुरा में ही विराजमान है। यह सुनकर तातश्री कहते हैं वो तो मैं भी जानता हूं फिर भी आप शाम को महाराज से अवश्य मिलिये। मैं जानता हूंकि वे आपकी सहायता नहीं करेंगे। क्योंकि आप महारानी कुंती के संबंधी हैं।
फिर अक्रूरजी महात्मा विदुर से मिलते हैं और तब विदुर श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति को प्रकट कर उनका गुणगान करते हैं और फिर कहते कहते हैं कि मैं उनसे मिलने के लिए बहुत ही उतावला हूं। जय श्रीकृष्ण।
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