रुक्मी भी रथ रुकवाकर कहता है ठहरजा, ठहरजा दुष्ट, ठहरजा। उसके क्रोध को देखकर रुक्मिणी श्रीकृष्ण का हाथ पकड़ लेती है। श्रीकृष्ण मुस्कुराते रहते हैं। रुक्मी कहता है तेरा काल तेरे सामने खड़ा है। धृष्टता की भी कोई सीमा होती है। एक अबला नारी को तू हरण करके मुस्कुरा रहा है। यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं क्योंकि यह मुस्कुराने का ही समय है। अभी-अभी हमारा पाणिग्रहण जो हुआ है। यह सुनकर रुक्मी कहता है कैसा पाणिग्रहण, किसका पाणिग्रहण? ये शास्त्रोक्त नहीं है। तुम अपहर्ता हो, तुमने अपहरण किया है।