7 अक्टूबर : सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के बारे में 10 अनजानी बातें

1. गुरु गोविंद सिंह एक विलक्षण क्रांतिकारी संत है। वे एक महान धर्मरक्षक, कवि तथा वीर योद्धा भी थे। वे सिख धर्म के दसवें गुरु, सिख खालसा सेना के संस्थापक एवं प्रथम सेनापति थे। समूचे राष्ट्र के उत्थान के लिए गुरु गोविंद सिंह जी ने संघर्ष करने के साथ ही निर्माण का भी रास्ता अपनाया। 
 
2. सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म पौष सुदी 7वीं सन् 1666 को पटना में माता गुजरी तथा पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी के घर हुआ। उस समय गुरु तेगबहादुर जी बंगाल में थे और उन्हीं के वचनानुसार बालक का नाम गोविंद राय रखा गया था। 
 
3. गुरु गोविंद सिंह जी वह व्यक्तित्व है जिन्होंने आनंदपुर के सारे सुख छोड़कर, मां की ममता, पिता का साया और बच्चों के मोह छोड़कर धर्म की रक्षा का रास्ता चुना। गुरु गोविंद सिंह जी की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वे अपने आपको औरों जैसा सामान्य व्यक्ति ही मानते थे। गुरु गोविंद सिंह जैसा न कोई हुआ और न कोई होगा।

 
4. गोविंद सिंह जी ने कभी भी जमीन, धन, संपदा और राजसत्ता के लिए लड़ाइयां नहीं लड़ीं, हमेशा उनकी लड़ाई होती थी दमन, अन्याय, अधर्म एवं अत्याचार के खिलाफ। 
 
5. एक लेखक (लिखारी) के रूप में देखा जाए तो गुरु गोविंद सिंह जी धन्य हैं। उनके द्वारा लिखे गए दसम ग्रंथ, भाषा और ऊंची सोच को समझ पाना हर किसी के बस की बात नहीं है।
 
6. गुरु गोविंद सिंह जी जैसा महान पिता कोई नहीं, जिन्होंने खुद अपने बेटों को शस्त्र दिए और कहा, जाओ मैदान में दुश्मन का सामना करो और शहीदी जाम को पिओ।

 
7. गुरु गोविंद सिंह जी जैसा कोई दूसरा पुत्र नहीं हो सकता, जिसने अपने पिता को हिंदू धर्म की रक्षा के लिए शहीद होने का आग्रह किया हो।
 
8. गुरु गोविंद सिंह जी खालसा पंथ की स्थापना की। भारतीय विरासत और जीवन मूल्यों की रक्षा तथा देश की अस्मिता के लिए समाज को नए सिरे से तैयार करने के लिए उन्होंने खालसा के सृजन का मार्ग अपनाया। 
 
9. गुरु गोविंद सिंह जी कहते थे कि युद्ध की जीत सैनिकों की संख्या पर निर्भर नहीं होना चाहिए, बल्कि वह तो उनके हौसले एवं दृढ़ इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है। जो सच्चे उसूलों के लिए लड़ता है, वह धर्म योद्धा होता है तथा ईश्वर उसे हमेशा विजयी बनाता है।
 
 
10. उन्होंने बाल विवाह, सती प्रथा, बहुविवाह, लड़की पैदा होते ही मार डालने जैसी बुराइयों के खिलाफ अपनी आवाज हमेशा बुलंदी के साथ उठाई थी। गुरु गोविंद सिंह जी का देहांत 7 अक्टूबर 1708 को हुआ था।

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