निहंग सिख कौन होते हैं, जानिए

Webdunia
शनिवार, 16 अक्टूबर 2021 (15:35 IST)
निहंग सिखों का इस देश, धर्म और समाज में अतुलनीय योगदान रहा है। आओ जानते हैं कि कौन होते हैं निहंग सिख, क्या है उनका पहनावा, कार्य, इतिहास और अन्य सिखों से कैसे अलग हैं निहंग सिख, जानिए सब कुछ।
 
 
1. निहंग शब्द का अर्थ : निहंग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के निशंक शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है निडर और शुद्ध। जो बिना किसी शंका के हो यानी निशंक। जिसका किसी से मोह न हो अर्थात निसंग। यही निहंग बन गया। कुछ लोगों के अनुसार इस शब्द की उत्पत्ति फारसी शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है- तलवार, कलम, घोड़ा और मगरमच्छ। गुरु शबद रत्नाकर महान कोश में भी ऐसा ही उल्लेख मिलता है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब और श्री दशम ग्रंथ साहिब में ये शब्द इस्तेमाल हुआ है।
 
2. कौन होते हैं निहंग सिख : निहंग सिख, सिखों की एक धर्मरक्षक सेना है और इनका 320 वर्ष पुराना शानदार इतिहास रहा है। वर्ष 1699 में सिख पंथ के अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंहजी द्वारा खालसा की स्थापना की गई थी। खालसा पंथ के पास 2 तरह के सैनिक थे। एक वो जो साधारण कपड़े पहनते थे और और दूसरे वो जो नीले रंग के कपड़े पहनते और बड़ी-सी पगड़ी लगाते थे। नीले रंग के कपड़े पहनने वालों को ही निहंग कहा गया। निहंग सिख आमतौर पर अमृत धारण किए होते हैं। 
 
3. निहंगों का बाना : निहंगों का बाना अर्थात उनका पहनावा अन्य सिखों से भिन्न होता है। निहंग सिख हमेशा नीले रंग के कपड़ों में रहते हैं। इनके साथ बड़ा तेग (भाला) या तलवार होती है। वे हमेशा नीली पगड़ी बांधे रहते हैं, साथ ही पगड़ी पर भी चांद तोरा लगा होता है। हाथ में कड़ा पहनते हैं और कमर पर कटार बांधकर रखते हैं। कई सिख ढाल भी रखते हैं। उनका योद्धाओं के जैसा पहनावा होता है।
 
यह भी कहा जाता है कि गुरु गोविंद सिंह के 4 पुत्र में से 1 सबसे छोटे पुत्र फतेह सिंह को भी अपने भाइयों की तरह युद्ध कला सीखना थी। बड़े भाइयों ने कहा कि अभी तुम छोटे हो। ये बात सुनकर फतेह सिंह घर में गए और बड़ी-सी पगड़ी और नीले रंग का चोला पहनकर बाहर आए और कहा कि अब तो मैं छोटा नहीं लग रहा हूं। कहा जाता है कि यहीं से निहंग पंथ की नीली वेशभूषा का प्रचलन हो चला।
 
4. निहंगों के 2 समुदाय : निहंगों में भी 2 समूह होते हैं। एक जो ब्रह्मचर्य का पालन करता है और दूसरा जो गृहस्थ होता है। गृहस्थ निहंग की पत्नियां और बच्चे भी वही वेश धारण करते हैं, जो निहंग करते हैं और ये सभी भी समूह के साथ ही चलते हैं। सिख गुरुओं के जीवन से जुड़े स्थानों पर ये चक्कर लगाते रहते हैं। जैसे 'माघी' के दिन ये मुक्तसर साहिब जाते हैं, जहां गुरु गोबिंद सिंह ने 'चाली मुक्ते' को आशीर्वाद दिया था। इसके बाद आनंदपुर साहिब में होली खेलने जाते हैं जिसे 'होला मोहल्ला' कहा जाता है। इसी तरह इनके जत्थे बाकी जगहों पर जाते हैं। इनके 3 दल हैं- तरना दल, बिधि चंद दल और बुड्ढा दल। इन सबके अलग-अलग मुखिया होते हैं जिन्हें जत्थेदार कहा जाता है।
 
5. निहंगों का कार्य : निहंग सिख रोज गुरबानी का पाठ करते हैं, बाणे में रहते हैं, भ्रमण करते रहते हैं, अस्त्र और शस्त्र का अभ्यास करते रहते हैं। सिखों के त्योहारों पर यह अपनी कला का प्रदर्शन भी करते रहते हैं। किसी मजबूर, गरीब या कमजोर पर हाथ न उठाना, उनकी रक्षा करना और धर्म की रक्षा करना ही इनका कार्य है। निहंग सिखों का धार्मिक चिन्ह निशान साहिब भी नीले रंग का होता है जबकि बाकी के सिख केसरी रंग के निशान साहिब को अपना धार्मिक चिन्ह मानते हैं। निहंग सिख आदि ग्रंथ साहिब (गुरु ग्रंथ साहिब) के साथ-साथ श्री दशम ग्रंथ साहिब और सरबलोह ग्रंथ को भी मानते हैं।
 
6. आक्रमणकारियों से देश की रक्षा की थी : खालसा पंथ में निहंग सैनिकों के दल को स्थापित करने का उद्देश्य बाहर से आने वाले आक्रामणकारियों से धर्म और देश की रक्षा करना था। 18वीं शताब्दी में जब अफगान से आए अहमदशाह अब्दाली ने पंजाब पर जब कई बार आक्रमण किया तो उसका सामना करके उसे रोकने में निहंग सिखों की बहुत बड़ी भूमिका रही है। महाराजा रणजीत सिंह की सरकार-ए-खालसा का श्रेय निहंग योद्धाओं को ही दिया जाता है। उनकी सेना में भी निहंगों का एक खतरनाक जत्‍था होता था, जो इस्लामिक आक्रमणकारियों से लड़ने में माहिर था। हालांकि साल 1849 में सरकार-ए-खालसा के पतन से निहंग का प्रभाव कम हो गया।
 
7. दुनिया के सबसे बहादुरों में से एक निहंग : दुनिया में निहंगों से बेहतर तलवारबाज और तीरंदाज नहीं देखे जा सकते हैं। ये क्षत्रिय, गोरखा, मंगोल और समुराई योद्धाओं की तरह वीर, निडर और शस्त्रधारी होते हैं। ये युद्ध की हर कला को जानते हैं और कई तरह के खतरनाक करतब दिखाने में भी माहिर होते हैं। निहंग सिखों के समूह एक समय देश के सबसे खतरनाक सैन्य शक्तियों में से एक माने जाते थे। आज भी इनका 'बाणा' इन्हें बाकियों से अलग खड़ा करता है। लेकिन आज अधिकतर ये घूम-घूमकर गुरबानी का पाठ करते हुए ही मिलते हैं।
 
8. अयोध्या की रक्षा की थी निहंगों ने : कहते हैं कि राम जन्मभूमि की रक्षा के लिए यहां गुरु गोविंदसिंहजी की निहंग सेना से मुगलों की शाही सेना का भीषण युद्ध हुआ था जिसमें मुगलों की सेना को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। उस वक्त दिल्ली और आगरा पर औरंगजेब का शासन था। इस युद्ध में गुरु गोविंद सिंहजी की निहंग सेना को चिमटाधारी साधुओं का साथ मिला था। कहते हैं कि मुगलों की शाही सेना के हमले की खबर जैसे ही चिमटाधारी साधु बाबा वैष्णवदास को लगी तो उन्होंने गुरु गोविंद सिंहजी से मदद मांगी और गुरु गोविंदसिंहजी ने ​तुरंत ही अपनी सेना भेज दी थी। दशम् गुरु उस समय आनंदपुर साहिब में थे। इस युद्ध में पराजय के बाद सिखों और साधुओं के पराक्रम से औरंगजेब बहुत ही हैरान और क्रोधित हो गया था।
 
सिंघु बॉर्डर पर 15 अक्टूबर, शुक्रवार को 1 व्यक्ति की बेरहमी से हत्या करने के मामले में निहंग सिख एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं। पिछले साल अप्रैल 2020 में पंजाब के पटियाला में तलवार से पुलिस वाले का हाथ काटने के बाद भी ये निहंग खबरों में आए थे। लेकिन हमें इन 2 घटनाओं से निहंग सिखों के बारे में कोई राय कायम नहीं करना चाहिए। अतीत में निहंग सिखों ने धर्म को बचाने के लिए कई लड़ाइयां लड़ी हैं और अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है। लेकिन उनकी यही बहादुरी उन्हें 'कट्टर' भी बनाती है जिसकी वजह से विवादों से भी उनका नाता रहता है।

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