नई दिल्ली:भारतीय निशानेबाज अवनि लेखरा को तोक्यो खेलों में रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन के साथ स्वर्ण पदक जीतने के लिए 2021 पैरालंपिक पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ महिला पदार्पण सम्मान दिया गया।
वर्ष 2012 में कार दुर्घटना में रीढ़ की हड्डी में चोट का सामना करने वाली जयपुर की 20 साल की अवनि ने तोक्यो पैरालंपिक की महिला 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिग एसएच1 स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था।
19 वर्षीय अवनि लेखरा ने महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल एसएच 1 स्पर्धा में 249.6 के विश्व रिकॉर्ड स्कोर की बराबरी करते हुए भारत को टोक्यो पैरालम्पिक का पहला स्वर्ण पदक दिलाया था। वह सातवें स्थान पर रहते हुए फाइनल में पहुंचीं थीं लेकिन फ़ाइनल में उन्होंने वाकई कमाल का प्रदर्शन किया था और पैरालम्पिक चैंपियन चीन की झांग कुइपिंग को दूसरे स्थान पर छोड़ दिया था। कुइपिंग ने 2489 का स्कोर कर रजत जीता था जबकि यूक्रेन की शेटनिक इरिना ने 2275 का स्कोर कर कांस्य पदक जीता था। अवनि पैरालम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं थी।
उन्होंने पैरालंपिक रिकॉर्ड तोड़ने के अलावा विश्व रिकॉर्ड की बराबरी की थी।अवनि ने 50 मीटर राइफल थ्री पोजीशन स्टैंडिंग एसएच1 स्पर्धा में भी कांस्य पदक जीता ओर खेलों के इतिहास में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं थी।
लेखरा ने 50 मीटर राइफल थ्री पॉजिशन एसएच1 स्पर्धा में 1176 के स्कोर से दूसरे स्थान पर रहकर फाइनल के लिये क्वालीफाई किया था।
फाइनल काफी चुनौतीपूर्ण रहा जिसमें लेखरा ने कुल 445.9 अंक का स्कोर बनाया और वह यूक्रेन की इरिना श्चेटनिक से आगे रहकर पदक हासिल करने में सफल रहीं।
भारत ने पैरालंपिक खेलों में पांच स्वर्ण, आठ रजत और छह कांस्य के साथ अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए कुल 19 पदक जीते थे।
कार दुर्घटना के कारण रीढ़ की हड्डी में लगी चोट
अवनि लेखरा को 2012 में हुई एक कार दुर्घटना के बाद व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ा क्योंकि उनके पैर हिल डुल नहीं पाते थे लेकिन यह हादसा उनके और उनके परिवार के इरादों को जरा भी नहीं डिगा सका और उन्होंने सभी तरह की परिस्थितियों का डटकर सामना किया। इस दुर्घटना में अवनि की रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट लगी थी। उनके पिता के जोर देने पर उन्होंने निशानेबाजी करना शुरू किया था।
गोल्ड मेडलिस्ट शूटर अभिनव बिंद्रा से मिली प्रेरणा
वह फुल-टाइम निशानेबाज नहीं बनना चाहती थीं लेकिन अभिनव बिंद्रा (भारत के पहले ओलंपिक व्यक्तिगत स्वर्ण पदक विजेता निशानेबाज) की आत्मकथा ए शॉट एट ग्लोरी पढ़ने के बाद वह इतनी प्रेरित हुईं कि उन्होंने अपने पहले ही पैरालंपिक में इतिहास रच दिया था।
कोविड-19 महामारी से उनकी टोक्यो पैरालंपिक की तैयारियों पर असर पड़ा जिसमें उनके लिये जरूरी फिजियोथेरेपी दिनचर्या सबसे ज्यादा प्रभावित हुई थी।
लेखरा ने कहा, रीढ़ की हड्डी के विकार के कारण कमर के निचले हिस्से में मुझे कुछ महसूस नहीं होता लेकिन मुझे फिर भी हर दिन पैरों का व्यायाम करना होता है।
कोविड 19 में फीजियो ने नहीं मां बाप ने की व्यायाम में मदद
उन्होंने कहा, एक फिजियो रोज मेरे घर आकर व्यायाम में मेरी मदद करता था और पैरों की स्ट्रेचिंग करवाता था। लेकिन कोविड-19 के बाद से मेरे माता-पिता व्यायाम करने में मेरी मदद करते हैं। वे जितना बेहतर कर सकते हैं, करते हैं।
कमर के निचले हिस्से के लकवाग्रस्त हो जाने के कारण उनके लिये पढ़ाई ही एकमात्र विकल्प बचा था लेकिन जिंदगी ने उनके लिये कुछ और संजोकर रखा था।
गर्मियों की छुट्टियों में 2015 में राइफल उठाने के बाद लेखरा ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में काफी अच्छा प्रदर्शन किया था और फिर वो यात्रा शुरू हुई जिसमें उन्होंने खेल के शीर्ष स्तर पर सबसे बड़ा पुरस्कार हासिल कर इतिहास रच दिया था।