SME IPO में क्या हो रहा है? 2 डीलरशिप, 8 कर्मचारी, 12 करोड़ के IPO में आए 4800 करोड़ रुपए

नृपेंद्र गुप्ता

मंगलवार, 27 अगस्त 2024 (15:19 IST)
SME IPO : दोपहिया वाहन डीलरशिप, रिसोर्सफुल ऑटोमोबाइल के आईपीओ ने निवेशकों को हैरान कर दिया। केवल 12 करोड़ रुपए के इस SME आईपीओ को लगभग 4,800 करोड़ रुपए की बोलियां प्राप्त हुईं। आईपीओ को इसके आकार से 400 गुना अधिक बोलियां मिली हैं। आईपीओ को देख लोगों को 1994 में जसपाल भट्टी का गोलगप्पों का आईपीओ याद आ गया। ALSO READ: क्या है ULI, इससे कैसे आसानी से एक क्लिक पर मिलेगा लोन?
 
रिसोर्सफुल ऑटोमोबाइल दिल्‍ली की एक छोटी ही ऑटोमोबाइल कंपनी है। इसके पास केवल दो कंपनियों की डीलरशिप हैं और 8 कर्मचारी हैं। आईपीओ को मिल रहे प्रतिसाद को देख निवेशकों के साथ ही शेयर बाजार एक्सपर्ट भी हैरान है। लोग यह जानना चाहते हैं कि आखिर इस आईपीओ में ऐसा क्‍या था कि यह 400 गुना सब्‍सक्राइब हो गया।
 
क्या है मामला : रिसोर्सफुल ऑटोमोबाइल ने एसएमई आईपीओ के जरिये 117 रुपए प्रति शेयर की दर से 10.2 लाख शेयरों की पेशकश की थी। यह इश्यू 22 अगस्त को खुला और 26 अगस्त को बंद हुआ। बीएसई के आंकड़ों के अनुसार, जब सोमवार शाम को सब्सक्रिप्शन विंडो बंद हुई, तो कुल 40.8 करोड़ शेयरों की बोलियां आ चुकी थीं। इसमें हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल (HNI) के लिए रिजर्व हिस्‍से को 150 गुना बोलियां मिलीं। रिटेल इनवेस्‍टर्स ने इस आईपीओ में जमकर पैसा लगाया और खुदरा निवेशकों का हिस्‍सा 500 गुना सब्‍सक्राइब हुआ।
 
क्या होता है एसएमई आईपीओ : एसएमई आईपीओ एसएमई द्वारा जारी किए गए आरंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव या आईपीओ हैं। एक सामान्य आईपीओ के लिए कंपनी को कंपनी के आकार के संदर्भ में कुछ दिशानिर्देशों का पालन करना आवश्यक होता है। वहीं एसएमई आईपीओ के मामले में कंपनी को नियमों कुछ छूट मिल जाती है। एसएमई आईपीओ को सुरक्षित माना जाता है क्योंकि वे भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) और स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा भारी रूप से विनियमित हैं। हालांकि, एसएमई के सार्वजनिक निर्गमों में हमेशा उच्च निवेश जोखिम होता है।
 
क्या बोले एक्सपर्ट : बाजार विशेषज्ञ सुयश राठौर ने कहा कि यह कागज पर बनी कंपनी दिखाई देती है। सेबी की रिक्वायरमेंट फुलफील कर दी है। यहां 2 स्‍थितियां बनती दिखाई दे रही है। पहली यह कि इसमें किसी को भी माल नहीं मिलेगा और आईपीओ काफी तेज खुलेगा। दूसरी यह कि ज्यादा लोगों को शेयर दे देंगे और कीमत काफी कम खोलेंगे। दोनों ही स्थितियों में नुकसान निवेशकों का ही है। 
 
उन्होंने कहा कि यह 2008 में अनिल अंबानी के आर पॉवर वाली कहानी है। उस समय कंपनी का आईपीओ 370 रुपए का था और सबको माल मिला था। हालांकि 150 रुपए में खुला था। बाद में इस आईपीओ का क्या हश्र हुआ सभी को पता है।  
 
उन्होंने कहा कि सेबी की रिक्वायरमेंट फुलफील कर यह आईपीओ लांच बाजार में आया है। इस केस में निवेशकों की भी गलती है। निवेश से पहले यह सोचना चाहिए कि 12 करोड़ की कंपनी में ऐसा क्या कि इसमें निवेश किया जाए। हर साल में बाजार में 10-12 ऐसी कंपनी आती है। कुछ नोटिस हो जाती है और कई कंपनियों का पता ही नहीं चलता। 
 
सेबी पर उठते सवाल : शेयर बाजार में होने वाली हर हरकत पर सेबी की नजर रहती है। वह समय समय पर निवेशकों के लिए एडवाइजरी भी जारी करती है। रिटेल निवेशकों की उसे काफी चिंता है। इसलिए उसने हाल ही में फ्यूचर और ऑपशन पर भी शिकंजा कसने की तैयारी की है। तथ्यों को गलत रूप से पेश करने पर उसने पेटीएम के खिलाफ नोटिस भी जारी किया था। ऐसे में सवाल उठता है कि तमाम सर्तकताओं के बाद भी आईपीओ के खेल पर लगाम लगाने में सेबी सफल क्यों नहीं हो पा रही है? जो कंपनियों आईपीओ लांच करती है वे कागजी खानपुर्ति कर कैसे आसानी से निवेशकों को चूना लगा देती है।
 
क्यों याद आई गोलगप्पों के आईपीओ की कहानी : जसपाल भट्टी ने 1994 में शो 'उल्टा-पुल्टा' अपने एक एपिसोड में एक कंपनी के शेयर के आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) की पूरी प्रक्रिया पर व्यंग्य किया था। यह वह समय था जब कई बेईमान प्रमोटर आईपीओ लॉन्च कर रहे थे, निवेशकों से पैसा इकट्ठा कर रहे थे और गायब हो रहे थे।
 
भट्टी को इस एपिसोड में चार्टर्ड अकाउंटेंट के रूप में दिखाया गया था। वह और उसका दोस्त गोलगप्पे खाने के लिए बाहर गए हुए हैं। दोस्त भट्टी को बताता है कि वह हिंदुस्तान फीवर और क्रुक बॉन्ड के 1,000-1,000 शेयर खरीदने की सोच रहा है। इस पर भट्टी अपने दोस्त से कहता है कि शेयर खरीदने के दिन खत्म हो गए हैं।
 
वह कहता है कि अब समय आ गया है कि आईपीओ लॉन्च किया जाए, लोगों से पैसे इकट्ठा किए जाएं और अपना खुद का व्यवसाय चलाया जाए। उसका दोस्त जवाब देता है, हर गोलगप्पे वाला आईपीओ नहीं ला सकता। इस पर भट्टी गोलगप्पे वाले की तरफ देखते हुए कहता है, अगर वह चाहे तो कल सुबह एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी खोल सकता है और 1 करोड़ रुपए जुटा सकता है।
 
यह बात गोलगप्पे बेचने वाले प्रेम प्रकाश को अच्छी लगती है और वह अगले दिन भट्टी के दफ्तर पहुंच जाता है। भट्टी फिर पूरी योजना का खुलासा करता है। कंपनी का नाम पीपी वॉटरबॉल्स होगा। भट्टी कहते हैं कि वे गोलगप्पे के कारोबार पर ऐसी रिपोर्ट लिखेंगे कि लोगों को लगेगा कि यह कोई बहुत बड़ी खाद्य उद्योग इकाई है।
 
भट्टी फिर प्रेम प्रकाश से कहते हैं कि उन्हें पूरे IPO को आगे बढ़ाने के लिए लगभग 10-15 लाख रुपए की आवश्यकता होगी। प्रेम प्रकाश कहते हैं कि वे अपने चाचा लाल सिंह से यह पैसा उधार ले सकते हैं। भट्टी इसे एक और मार्केटिंग स्टंट में बदल देते हैं, जहाँ वे कहते हैं कि पीपी वॉटरबॉल्स का लंदन के रेड लॉयन (अंग्रेजी में लाल सिंह) के साथ सहयोग है।
 
आईपीओ सफलतापूर्वक लॉन्च हो जाता है। फिर प्रसाद नाम का एक विशेषज्ञ आता है, जो खुदरा निवेशकों को स्टॉक के बारे में अनुमान लगाता रहता है और कहता है कि यह केवल ऊपर ही जाएगा। इस बीच, भट्टी अपने मुंबई के स्टॉक-ब्रोकर के साथ मिलकर पीपी वॉटरबॉल्स के स्टॉक खरीद लेता है, जिससे कृत्रिम कमी पैदा होती है और स्टॉक की कीमत आसमान छूती है।
 
इस तरह जब पीपी वॉटर बॉल्स के शेयर की कीमत 100 रुपए से अधिक हो जाती है, तो वे धीरे-धीरे शेयर बेचना शुरू कर देते हैं और भारी मुनाफा कमाते हैं, जबकि खुदरा निवेशकों के पास कागज के एक टुकड़े के अलावा कुछ नहीं बचता।

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