ईश्वर से सहायता की प्रार्थना करो -विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद का पत्र


 

एक अज्ञान संन्यासी के रूप में हिमालय से कन्याकुमारी की यात्रा करते हुए स्वामी विवेकानंद ने जनता की दुख-दुर्दशा का अपनी आंखों से अवलोकन किया था। अमेरिका की सुविधाओं तथा विलासिताओं के बीच सफलता की सीढ़ियों पर उत्तरोत्तर चढ़ते हुए भी, भारतीय जनता के प्रति अपने कर्तव्य का उन्हें सतत स्मरण था। बल्कि इस नए महाद्वीप की संपन्नता ने, अपने लोगों के बारे में उनकी संवेदना को और भी उभारकर रख दिया।

वहां उन्होंने देखा कि समाज से निर्धनता, अंधविश्वास, गंदगी, रोग तथा मानव कल्याण के अन्य अवरोधों को दूर करने के लिए मानवीय प्रयास, बुद्धि तथा निष्ठा की सहायता से सब कुछ संभव बनाया जा सकता है।

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20 अगस्त 1893 ई. को उन्होंने अपने भारतीय मित्रों के हृदय में साहस बंधाते हुए लिखा -

कमर कस लो, वत्स! प्रभु ने मुझे इसी काम के लिए बुलाया है। आशा तुम लोगों से है - 'जो विनीत, निरभिमानी और विश्वासपरायण हैं। दुखियों का दर्द समझो और ईश्वर से सहायता की प्रार्थना करो - वह अवश्य मिलेगी। मैं बारह वर्ष तक हृदय पर यह बोझ लादे और मन में यह विचार लिए बहुत से तथा‍कथित धनिकों और अमीरों के दर-दर घूमा। हृदय का रक्त बहाते हुए मैं आधी पृथ्वी का चक्कर लगाकर इस अजनबी देश में सहायता मांगने आया।

परंतु भगवान अनंत शक्तिमान हैं। - मैं जानता हूँ, वह मेरी सहायता करेगा। मैं इस देश में भूख या जाड़े से भले ही मर जाऊं, परंतु युवकों! मैं गरीबों, मूर्खों और उत्पीड़ितों के लिए इस सहानुभूति और प्राणपण प्रयत्न को तुम्हें थाती के तौर पर सौंपता हूं।

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जाओ, इसी क्षण जाओ उस पार्थसारथी (श्रीकृष्ण) के मंदिर में और उनके सम्मुख एक महाबलि दो, अपने समस्त जीवन की बलि दो- उन दीनहीनों और उत्पीड़ितों के लिए जिनके लिए भगवान युग-युग में अवतार लिया करते हैं और जिन्हें वे सबसे अधिक प्यार करते हैं और तब प्रतिज्ञा करो कि अपना सारा जीवन इन तीस करोड़ लोगों के उद्धार कार्य में लगा दोगे, जो दिनोंदिन अवनति के गर्त में गिरते जा रहे हैं।

प्रभु की जय हो, हम अवश्य सफल होंगे। इस संग्राम में सैकड़ों खेत रहेंगे, पर सैकड़ों पुन: उनकी जगह खड़े हो जाएंगे। विश्वास, सहानुभूति, दृढ़ विश्वास और ज्वलंत सहानुभूति चाहिए! जीवन तुच्छ है, मरण भी तुच्छ है, भूख तुच्छ है और शीत भी तुच्छ है। जय हो प्रभु की!

आगे कूच करो- प्रभु ही हमारे सेनानायक हैं। पीछे मत देखो कि कौन गिरा- आगे बढ़ो, बढ़ते चलो।

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