इस संसार गुरू को ईश्वर से भी उच्च स्थान प्राप्त है। हमारो शास्त्रों और पुराणों में भी ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जहां गुरू को ईश्वर से भी महान बताया गया है। भगवान ने खुद जब इस धरती पर अपने अलग-अलग अवतारों में जन्म लिया, तो उन्होंने गुरू ही महिमा को जानते हुए खुद उन्हें सर्वोपरि स्थान दिया और वे गुरूशरण में रहे।
प्राचीन काल में भी गुरू को जो सम्मान और स्थान दिया गया, उनके अदभुत उदाहरण आज भी सर्वव्याप्त है, जो आज के परिवेश में कहीं देखने को नहीं मिलता। उस समय के गुरूभक्ति के किस्से आज भी आदर्श कहानी के रूप में नई पीढ़ि को सुनाए जाते हैं। इन्हीं में एक है आरूणि की अपने गुरू के प्रति श्रद्धा और भक्ति की कहानी जो आज भी शिक्षा जगत में गर्व के साथ सुनाई जाती है।
आरूणि, धौम्य ऋषि का शिष्य था। उसके गुरू धौम्य ऋषि महान विद्वान और अनेक विद्याओं में कुशल थे। उनके आश्रम में कई शिष्य रह कर उनसे शिक्षा प्राप्त करते थे, जिनमें आरूणि भी एक था।
एक बार जब क्षेत्र में मूसलाधार वर्षा होने लगी, तो आश्रम के चारों ओर जलजमाव होने लगा। आसपास के खेत भी डूबने लगे, जिसे देख्कर धौम्य ऋषि को चिंता होने लगी। फसल के नष्ट होने से चिंतित धौम्य ऋषि ने आरूणि और अन्य शिष्यों को मेढ़ की निगरानी के लिए खेतों में भेजा, और मेढ़ के टूटने पर उसे बंद करने के लिए कहा।
गुरू की आज्ञा पाकर आरूणि और सभी शिष्य मेढ़ पर जाकर देखते हैं कि वह टूट गई है, और उसे जोड़ने का प्रयास करते हैं। परंतु जल के अत्यधिक वेग के कारण मेढ़ से पानी बाहर बने लगता है। तब आरूणि उस बहाव को रोकने के लिए स्वयं वहां लेट जाता है, जिससे जल का बहाव रूक जाता है।
इसके बाद धीरे-धीरे वर्षा कम हो जाती है, परंतु आरूणि वहीं पर लेटा रहता है। तब सभी शिष्य मिलकर आरूणि को ढूंढते हैं और ऋषि धौम्य भी उसे ढूंढते हुए वहां पहुंचते है। धौम्य ऋषि आरूणि को इस प्रकार से अपनी आज्ञा का पालन करने के लिए बिना कुछ सोचे समझे किए गए प्रयास से गदगद हो गए। उन्होंने कीचड़ में लेटे हुए आरूणि को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया और कहने लगे -
आज तुमने गुरु भक्ति का एक अपूर्व उदाहरण प्रस्तुत किया है। तुम्हारी यह तपस्या और त्याग युगों-युगों तक याद किया जाएगा। तुम एक आदर्श शिष्य के रूप में सदा याद किए जाओगे तथा अन्य छात्र तुम्हारा अनुकरण करेंगे। मेरा आशीर्वाद है कि तुम एक दिव्य बुद्धि प्राप्त करोगे तथा सभी शास्त्र तुम्हें प्राप्त हो जाएंगे। तुम्हें उनके लिए प्रयास नहीं करना पड़ेगा। आज से तुम्हारा नाम उद्दालक के रूप में प्रसिद्ध होगा अर्थात जो जल से निकला या उत्पन्न हुआ। तभी से आरूणि उद्दालक के नाम से प्रसिद्ध हुआ और सारी विद्याएं उन्हें बिना पढ़े, स्वयं ही प्राप्त हो गई।
आदर्श शिष्य की इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है, कि शिक्षक की आज्ञा का मन से पालन करने वाला शिष्य को बिन मांगे और बिना प्रयत्न के ही सब कुछ प्राप्त हो जाता है।