हमारे शास्त्रों में अनेक व्रतों का उल्लेख है जिनके श्रद्धापूर्वक करने से श्रद्धालु का कल्याण होता है। ऐसा ही एक व्रत है-हरितालिका तीज व्रत। भविष्योत्तरपुराण के अनुसार हरितालिका व्रत भाद्रपद शुक्ल तृतीया को किया जाता है। शास्त्रानुसार इस व्रत में द्वीया युक्त तृतीया का निषेध व तृतीय युक्त को ग्राह्य माना गया है। इस व्रत को सभी श्रद्धालु स्त्रियां सम्पन्न कर सकती हैं।
इस व्रत को करने के लिए अपने घर में फूलों से सजा मण्डप (फुलेरा) बनावें उसके नीचे स्वर्ण निर्मित शिव-गौरी या घर में जो प्रतिष्ठित शिव-गौरी का विग्रह हो उसे स्थापित कर हरितालिका तीज व्रत का संकल्प बोलें। तत्पश्चात 16 पेटिका सौभाग्य सामग्री की अर्पण कर शिव-पार्वती के 108 नामों से षोडषोपचार पूजन अर्चन करें।
दूसरे दिन शिव-गौरी के विग्रह के समक्ष तिल,घी की आहुति देकर हवन करें फ़िर आठ या सोलह जोड़ों को भोजन कराकर सौभाग्य पेटिका देकर व्रत का विसर्जन करें। किसी-किसी क्षेत्र में फुलेरा में 16 प्रकार की वनस्पतियों का उपयोग बताया गया है। कहीं-कहीं सर्वोषधि का पूजन में विशेष महत्त्व माना गया है। देश-काल-परिस्थिति अनुसार सभी पद्धतियां स्वीकार व ग्राह्य हैं किन्तु शास्त्रोक्त विधान उपरोक्त वर्णित है।
कौन सी हैं सर्वोषधि-
शास्त्रानुसार पूजन में सर्वोषधि को कलश में डालना अनिवार्य होता है, आइए जानते हैं कि सर्वोषधि कौन सी होती हैं।
वनस्पति शास्त्र की जिन 10 औषधियों को शास्त्रों ने सर्वोषधि की मान्यता प्रदान की हैं वे हैं-1. मुरा 2. जटामांसी 3. वच 4. कुष्ठ 5. शिलाजीत 6. हल्दी 7. दारूहल्दी 8. सठी 9. चंपक10. मुस्ता।