पति के लिए करवा चौथ का पहला व्रत जरूरी है या अपने बीमार पिता को अस्पताल ले जाना? सास बहू की शादी की सालगिरह ज्यादा जरूरी है या अपने माता-पिता के घर की सत्यनारायण की कथा? ससुराल की गृहस्थी संभालना ज्यादा जरूरी है या माता-पिता के बुरे वक्त में उनकी मदद करना? ननद की गोद भराई ज्यादा जरूरी है या अपनी छोटी बहन की शादी?
क्या एक लड़की की अपने माता-पिता के प्रति जिम्मेदारी शादी के बाद खत्म हो जाती है? यदि वह अपने माता-पिता की मदद करती है तो क्या यह गलत है? यदि वह ससुराल में जाकर अपने सास-ससुर की बेटी बन सकती है तो उसका पति उसके माता-पिता का बेटा क्यों नहीं बनता?
कुछ ऐसे ही प्रश्न लड़कियों के दिमाग में शादी के बाद उठते हैं। सोनी एंटरटेनमेंट पर 21 जनवरी से रात दस बजे नया धारावाहिक ‘बाबुल का आँगन छूटे ना’ शुरू हो रहा है। यह धारावाहिक प्रत्येक सोमवार से गुरुवार को रात 10 बजे देखा जा सकता है।
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ससुराल और मायका की दोहरी जिम्मेदारी आज की ज्यादातर महिलाएँ निभा रही हैं। संयुक्त परिवार अब पुरानी बात हो गए हैं। आज ज्यादातर छोटे परिवार नजर आते हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति है आस्था की। जो कि इस धारावाहिक का केन्द्रीय पात्र है।
आस्था दोहरी जिम्मेदारियों के बीच फँस जाती है। आस्था ने फैसला लिया था कि वह शादी न करके अपने माता-पिता की सेवा करेगी। लेकिन उसकी मुलाकात एक लड़के से होती है जो आस्था से शादी करना चाहता है। वह आस्था को विश्वास दिलाता है कि शादी के बाद वह अपने माता-पिता को मदद कर सकती है। आस्था उससे शादी कर लेती है।
शादी के बाद आस्था को समझ में आता है कि बहू की जिम्मेदारी बहुत बड़ी होती है। किस तरह से वह दोहरी भूमिका निभाती है यह इस धारावाहिक का मूल कथा है। रतन सिन्हा इस धारावाहिक के निर्माता है और मकबूल ने इसे निर्देशित किया है। इसमें विजय कश्यप, रामेश्वरी, राजा बुंदेला और नवनी परिहार ने मुख्य भूमिकाएँ निभाई हैं। आस्था के रूप में आस्था फौजदार दिखाई देगी।
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सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन के संजय उपाध्याय का कहना है ‘हमने हमेशा सशक्त महिला किरदारों को पेश किया है, जिन्हें लोगों का भरपूर प्यार और समर्थन मिला है। ‘बाबुल का आँगन छूटे ना’ में भी आस्था नामक सशक्त चरित्र है। मुझे विश्वास है कि इस सरल कहानी से आज के दर्शक खासकर महिलाएँ अपने आप को जोड़ेंगी।‘