यादों के बीच जनजीवन पटरी पर

शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008 (14:15 IST)
देश की आर्थिक राजधानी में 26 नवंबर को हुए हमलों के एक माह बाद मुंबईकर हमलों के दिनों को याद कर रहे हैं और साथ ही इनसे उबरने की कोशिश कर रहे हैं।

उपनगर बांद्रा में लायंस क्लब के अध्यक्ष केसी मुलानी ने कहा ऐसा लगता है कि कल की ही बात हो। इस भयावह घटना को इतनी जल्दी नहीं भुलाया जा सकता। हालाँकि राजनेता सोचते हैं कि लोगों की याददाश्त कमजोर है।

इन हमलों से गुस्साए नागरिक राजनेताओं के खिलाफ नाराजगी और मारे गए लोगों के परिवारों के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए बड़ी संख्या में सड़कों पर उतर आए थे।

हमलों के बाद शिवराज पाटिल को केंद्रीय गृहमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था, वहीं विलासराव देशमुख को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री पद तथा आरआर पाटिल को राज्य का उपमुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा।

इस तरह के अनेक आंदोलनों में भाग लेने वाले फिल्मकार अशोक पंडित ने कहा कि गेटवे ऑफ इंडिया पर प्रदर्शनों के रूप में जनता के दबाव ने राजनेताओं को जवाबदेह होने पर मजबूर किया।

उन्होंने कहा कि लक्जरी होटलों में आतंकी हमलों में अमीर लोग भी मारे गए तथा हमलों ने इस बार दो साल पहले ट्रेन में हुए सिलसिलेवार धमाकों की तुलना में अधिक ध्यान खींचा। दरअसल उन धमाकों में मरने वाले अधिकतर आम लोग थे।

आतंकी हमलों में प्रभावित हुए होटलों के दरवाजे लोगों के लिए 21 दिसंबर को खोले गए। आतंकवादियों ने जिस लियोपाल्ड कैफे पर हमला किया था वह घटना के एक पखवाड़े के भीतर दोबारा खोला गया।

समुद्री रास्ते से मुंबई पहुँचे दस आतंकवादियों ने 26 नवंबर को दो प्रमुख होटलों भीड़भाड़ वाले छत्रपति शिवाजी रेल टर्मिनस और एक यहूदी सामुदायिक केंद्र पर हमले किए थे। जाँचकर्ता कह चुके हैं कि आतंकवादी पाकिस्तान के रहने वाले थे और लश्कर-ए-तोइबा से जुड़े थे।

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