सूड़ान में युद्ध के कारण बेतहाशा बढ़ी खाद्य क़ीमतों के कारण, ढाई करोड़ से अधिक लोग भूखेपेट रहने को मजबूर हैं। बड़ी संख्या में सूडानी नागरिकों ने पड़ोसी देश चाड में शरण ली है। युद्धग्रस्त देश सूडान में बढ़ती खाद्य क़ीमतों और खाद्य सामग्री तक पहुंच सम्बन्धी चुनौतियों के कारण लगभग दो करोड़ 60 लाख लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल रहा है।
संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्तेफ़ान दुजैरिक ने मंगलवार को न्यूयॉर्क में दैनिक प्रेस वार्ता में संयुक्त राष्ट्र की आपदा राहत समन्वय एजेंसी – OCHA के आंकड़ों का हवाला देते हुए यह जानकारी दी है। प्रवक्ता ने कहा, “अगर मिसाल देकर बात करें तो ये संख्या, ऑस्ट्रेलिया की पूरी आबादी के बराबर है”
स्तेफ़ान दुजैरिक ने कहा कि OCHA, सूडान में खाद्य स्थिति के लगातार बदतर होने की स्थिति पर गम्भीर रूप से चिन्तित है और दो करोड़ 60 लाख की इस संख्या में लगभग साढ़े सात लाख लोग ऐसे भी हैं जो अकाल से बस एक क़दम की दूरी पर हैं।
बदतर हो रही सूडान की स्थिति : सूडान में बढ़ती खाद्य क़ामतों, खाद्य सामग्री तक पहुंच सम्बन्धी चुनौतियों और युद्ध के प्रभाव खाद्य सामग्री तक लोगों की पहुंच को और भी जटिल बना रहे हैं, जबकि ये पहुंच पहले ही बहुत सीमित है। मई की तुलना में जून महीने के दौरान सूडान में स्थानीय खाद्य सामग्री की क़ीमतें 16 प्रतिशत बढ़ीं और जून 2023 की तुलना में बात करें तो ये वृद्धि 120 प्रतिशत थी। प्रवक्ता ने कहा कि लोगों की मुश्किलें और भी बदतर होने वाली हैं क्योंकि बारिश का मौसम शुरू होने वाला है।
प्रवक्ता स्तेफ़ान दुजैरिक ने आगाह करते हुए कहा कि सूडान में लोग बहुत ख़राब हालात का सामना कर रहे हैं, जबकि मानवीय सहायता कर्मियों को इस स्थिति को और अधिक बिगड़ने से रोकने और सहायता सामग्री की सुचारू आपूर्ति करने के लिए, सभी सम्भव मार्गों से आसान पहुंच सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता है।
उन्होंने वित्तीय समर्थन की अहम ज़रूरत को भी रेखांकित किया और ध्यान दिलाया कि सूडान में मानवीय सहायता अभियान चलाने के लिए इस वर्ष लगभग $2.7 अरब की धनराशि की ज़रूरत है जबकि इसकी केवल 30 प्रतिशत है राशि ही प्राप्त हुई है।
गम्भीर मानवाधिकार हनन : इस मुद्दे से अलग बात करें तो सूडान के लिए संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र अन्तरराष्ट्रीय तथ्य खोजी मिशन ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से युद्ध ख़त्म कराने के लिए तत्काल ज़रूरी क़दम उठाने का आहवान किया है, जो अब दूसरे वर्ष में चल रहा है।
इस मिशन की स्थापना यूएन मानवाधिकार परिषद ने की है जिसने हाल ही में पड़ोसी चाड देश का तीन सप्ताह का दौरा किया है जहां उसने सूडान युद्ध के कारणों से होने वाले मानवाधिकारों के गम्भीर उल्लंघन सम्बन्धी व्यथित करने वाले रुझानों का रिकॉर्ड दर्ज किया है।
दंड के रूप में यौन हिंसा : इस तथ्यान्वेषी मिशन ने बताया है कि मानवाधिकार हनन के अधिकतर मामले वकीलों, मानवाधिकार पैरोकारों, शिक्षकों और डॉक्टरों जैसे पेशेवर लोगों के ख़िलाफ़ होते नज़र आते हैं। जबरन विस्थापन या बेदख़ली, एक सामान्य बात हो गई है। इस मिशन की एक विशेषज्ञ सदस्य मोना रिशमावी का कहना था, “यौन हिंसा के शिकार हुए भुक्तभोगियों की आपबीतियां सुनकर कलेजा मुँह को आने लगता है”
उनका कहना था, “यह हिंसा अक्सर उस समय होती है जब महिलाओं और लड़कियों को हिरासत रखा जाता है या वो सुरक्षा की ख़ातिर भाग रही होती हैं। कभी-कभी तो यौन हिंसा, उन महिलाओं को दंडित करने के लिए की जाती है जो अपने समुदायों की भलाई की ख़ातिर सक्रिय रूप से खड़ी होती हैं। कभी-कभी ये हिंसा बिना किसी कारण और मौक़ापरस्ती के लिए होती है”
इस मिशन को ऐसे क़दमों के बारे में भी बताया गया है जो हिंसा के कुचक्र को तोड़ने और ज़िम्मेदार तत्वों को न्याय के कटघरे में लाने और भुक्तभोगियों को समर्थन देने के लिए उठाए जा सकते हैं।