अपनी ताकत दिखाने को तैयार हैं यूपी के 'बाहुबली'

यूपी विधानसभा चुनाव में कई दलों ने बाहुबली नेताओं को टिकट दिए हैं और जहां तक इन बाहुबली नेताओं का सवाल है तो ये राजनीतिक दलों की अनेक तरह से मदद करते हैं। विभिन्न दलों को चुनाव लड़ने के लिए इन्हें पैसा नहीं जुटाना पड़ता वरन ये जब चाहें पैसे अपनी पार्टी के लिए मदद कर सकते हैं। विधानसभा के सदन के अंदर और बाहर जहां कहीं भी बाहुबल या गुंडागर्दी दिखाने, दूसरे नेताओं को डराने, धमकाने, अपहरण कर फिरौती वसूलने की बात आती है तो ये नेता अपनी-अपनी पार्टियों के लिए बेशकीमती साबित होते हैं।
     
हर बार सभी पार्टियां साफ छवि के उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का दावा करती हैं, लेकिन बावजूद अपने टिकट ऐसे बाहुबली नेताओं को मैदान में उतारने के लिए हर क्षण तैयार रखती हैं जो येनकेन प्रकारेण चुनाव जीतने की क्षमताएं रखते हैं। जब कभी इनकी चुनावी मैदान में धांसू एंट्री होती है, सारे हीरोनुमा नेता भागकर छिप जाते हैं। इनकी सबसे बड़ी पूंजी होती है, इनका आपराधिक रिकॉर्ड, जो कि प्रत्‍येक पार्टी को प्रभावित करता है और सारे चुनावी समीकरण इनकी मुट्‍ठी में आ जाते हैं। 
 
वैसे भी इनका विचारों, विचारधारा या दिमाग खपाने वाले किसी काम से कोई लेना-देना नहीं होता है। ये तो बस इतना जानते हैं कि क्षेत्र के वोटर इनके प्रभाव से और कामों के असर से डरते या नहीं, बस इतना ही काफी है। ज्यादातर मतदाता तो इन्हें देखकर ही हाथ जोड़ लेते हैं, पैरों पर गिर पड़ते हैं और जिस तरह से चापलूसी करना होती है, कर लेते हैं क्योंकि बेकार में अपनी जान गंवाने का किसी को भी शौक नहीं होता है। इसलिए चुनाव के इस मौसम में आइए नजर डालते हैं इन 'सुपरस्टारों' पर...
 
रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया : सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया एक बार फिर चर्चा में हैं। सीएम अखिलेश यादव पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधने के बाद उनके बीजेपी में शामिल होने के कयासों के बीच राजनीतिक गलियारे में हलचल मच गई है क्योंकि सपा की तुलना में राजा भैया का एक प्रभावशाली ठाकुर होने के कारण राजनीतिक भविष्य भाजपा में ही सबसे ज्यादा चमकीला नजर आता है। 
 
महज 24 साल की उम्र में अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले राजा भैया ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपना चुनाव जीता था। पूर्वी उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के कुंडा विधानसभा क्षेत्र के करिश्माई प्रत्याशी राजा भैया को किसी भी पार्टी की सरकार हो, कभी कोई परेशानी नहीं हुई। सपा, बसपा या भाजपा और कांग्रेस तक के द्वार उनके लिए हमेशा ही खुले रहते हैं। जब कुंडा में फिर से चुनाव हुए तो उनके खिलाफ प्रचार करने तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह कुंडा पहुंचे थे।
 
एक सार्वजनिक रैली में कल्याण सिंह ने वहां कहा था कि 'गुंडाविहीन कुंडा करौं, ध्वज उठाय दोउ हाथ।' लेकिन भाजपा उम्मीदवार राजा भैया से चुनाव हार गया था। राजा भैया को राजनीतिक क्षेत्रों में 'कुंडा के गुंडा' के नाम से बेहतर जाना जाता है। कुंडा उनका गृह स्थान है और वे हर बार चुनाव होने पर यहीं से चुनाव मैदान में अपनी किस्मत नहीं आजमाते वरन ताकत दिखाते हैं और यहां उनका मुकाबला तो राज्य का मुख्यमंत्री भी नहीं कर सकता है। 
 
अतीक अहमद : दस अगस्त 1962 को पैदा हुए अतीक अहमद उत्तरप्रदेश के श्रावस्ती जिले के रहने वाले हैं जिनके बाहुबल से सभी राजनीतिक दल परिचित हैं। पढ़ाई-लिखाई में उनकी कोई खास रुचि नहीं थी, इसलिए वे दसवीं की परीक्षा भी पास नहीं कर सके। बाद में उनकी स्वा‍भाविक रुचि अपराधों की दुनिया का सरताज बनने की रही और वे एक सफल अपराधी सरगना बनने में कामयाब हो गए। बाद में माफिया सरगनाओं की तरह अतीक अहमद जुर्म की दुनिया से राजनीति की दुनिया में प्रवेश कर गए।
     
पूर्वांचल और इलाहाबाद में सरकारी ठेकेदारी, खनन, अपहरण और उगाही के कई मामलों में उनका नाम आया तो उन्हें लगा कि वे अब राजनीति के लिए पूरी तरह फिट हैं। राजनीति के शुरुआती वर्षों में वे अन्य नेताओं की तरह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीते। वर्ष 1989 में पहली बार इलाहाबाद (पश्चिमी) विधानसभा सीट से विधायक बने। अतीक अहमद ने 1991 और 1993 का चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ा और विधायक भी बने। 1996 में इसी सीट पर अतीक को समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया और वह फिर से विधायक चुने गए हैं। अब सपा ने उन्हें कानपुर कैंट से अपना प्रत्याशी बनाया है क्योंकि इस विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्‍या काफी है। 
 
अंसारी बंधु (मुख्तार और अफजाल अंसारी) : पूर्वांचल से यूं तो कई अपराधियों से नेता बने लोगों का नाम चर्चाओं में रहता है लेकिन एक ऐसा नेता इस क्षेत्र से आता है, जो अपराध की दुनिया से राजनीति में आकर पूर्वांचल का रॉबिनहुड बन गया। उस बाहुबली नेता का नाम है मुख्तार अंसारी और पूर्वांचल की राजनीति में उसका उतना ही असर है जितना कि बिहार की राजनीति में शहाबुद्दीन का है। अफजाल अंसारी मुख्तार के भाई हैं। मुख्तार इस वक्त मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट से विधायक हैं, लेकिन उनकी राजनीति कभी सदन में तो कभी जेल में होती है। 
 
प्रदेश के माफिया नेताओं में मुख्तार अंसारी का नाम पहले पायदान पर माना जाता है। इस बार विधानसभा चुनाव में उनके भाई अफजाल अंसारी को सपा ने टिकट दिया है। मुख्तार इस वक्त जेल में बंद हैं और कुछ समय पहले ही उनकी पार्टी कौमी एकता दल का विलय समाजवादी पार्टी में हुआ था। अफजाल अंसारी का जन्म यूपी के गाजीपुर जिले में ही हुआ था जहां उनके दादा मुख्तार अहमद अंसारी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कार्यवाहक अध्यक्ष भी रहे थे। हालांकि उनके पिता एक कम्युनिस्ट नेता थे। दोनों भाइयों में अफजाल बड़ा है और कहा जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी को वाराणसी से चुनाव जिताने में अंसारी बंधुओं ने भी कथित तौर पर मदद की थी।
 
राजन तिवारी : हाल ही में बसपा के हाथी पर सवार होने वाले राजन तिवारी मूल रूप से उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले के सोहगौरा गांव के रहने वाले हैं। उनका परिवार और रिश्तेदार इसी इलाके में बसे हुए हैं और उनका बचपन इसी गांव में बीता। राजन की प्रार‍ंभिक शिक्षा भी इसी जिले में हुई, लेकिन युवा अवस्था में उसने अपराध की दुनिया में कदम रख दिया। इस दौरान पुलिस से बचकर वह बिहार भाग गया जहां वह राजनीति में भी सक्रिय रहा और दो बार विधायक भी रहा। अब फिर उसने यूपी का रुख कर लिया है और माना जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में राजन तिवारी पूर्वांचल में अहम भूमिका में दिखाई देंगे। वे कुशीनगर या देवरिया जिले की किसी एक विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़ सकते हैं, लेकिन यह बहनजी को तय करना है।
 
डीपी यादव : दूध बेचने वाले से मंत्री बनने वाले डीपी यादव ने शराब की दुनिया में कदम रखा तो उन पर दौलत की बरसात होने लगी। इस धंधे में आकर उन्होंने जमकर पैसा कमाया और इसके बाद सियासत में कदम रखा। करीब 66 साल पहले नोएडा के सर्फाबाद गांव में डीपी यादव का जन्म तेजपाल के घर हुआ था। उसके पिता कई बार लगान का विरोध करने पर जेल जा चुके थे और उनका परिवार आर्य समाजी था लेकिन डीपी की पढ़ाई में कोई दिलचस्पी नहीं थी इसलिए दूध बेचने का कारोबार शुरू किया लेकिन ये काम वह ज्यादा दिन नहीं चला पाए। कारण यह रहा कि डीपी को दूध से ज्यादा शराब का धंधा आकर्षक लगा और वह शराब माफिया बाबू किशन के संपर्क में आ गए। 
 
कुछ दिन में ही वह किशन लाल का पार्टनर बन गए। इस धंधे से डीपी यादव ने खूब पैसा कमाया और बाद में राजनीति का रुख किया। इस दौरान उनके खिलाफ कई मामले दर्ज होते गए। फिलहाल वे जेल में बंद हैं। लेकिन माना जा रहा है कि वे जेल से ही विधानसभा का चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। वह पहले भी जेल से चुनाव लड़ चुका हैं और संसद सदस्य भी रहे हैं, लेकिन आपराधिक रिकॉर्ड के चलते उसे कई बार जेल भी जाना पड़ा है। डीपी का बेटा और भतीजा भी नितीश कटारा हत्याकांड में जेल में है।
 
विनय शंकर तिवारी : बहुजन समाज पार्टी ने विनय शंकर को गोरखपुर की चिल्लूपार विधानसभा से अपना प्रत्याशी घोषित किया है। विनय शंकर बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी के बड़े पुत्र हैं। जब से राजनीति का अपराधीकरण गोरखपुर से शुरू हुआ था तो हरिशंकर तिवारी इसके सबसे बड़े अगुवा थे। एक जमाने में पूर्वांचल की राजनीति में तिवारी की तूती बोलती थी। रेलवे से लेकर पीडब्ल्यूडी की ठेकेदारी में हरिशंकर का कब्जा था और ऐसे ही तमाम कामों के चलते तिवारी ने एक बहुत बड़ा साम्राज्य खड़ा कर दिया था।  
 
उनके बारे में यह भी कहा जाता है कि जेल में रहकर चुनाव जीतने वाले वह पहले नेता थे। उनको ब्राह्मणों का भी प्रभावशाली नेता माना जाता है। यह हरिशंकर तिवारी का ही दबदबा है कि उनके बेटे और रिश्तेदार लोकसभा और विधानसभा का चुनाव जीतते आए हैं और चिल्लूपार विधानसभा सीट तिवारी परिवार की स्थाई सीट मानी जाती है।

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