राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा और बसपा की निगाहें सपा में चल रहे अंदरुनी झगड़े पर टिकी थीं। परंपरागत रूप से मुसलमानों द्वारा समर्थित पार्टी मानी जाने वाली सपा में जारी कलह का फायदा उठाने की कोशिश कर रही बसपा, खुद को भाजपा को रोकने की क्षमता वाली एकमात्र शक्ति के रूप में पेश कर रही थी।
दूसरी ओर, भाजपा भी सपा में झगड़े की शक्ल बदलने के साथ-साथ अपनी रणनीति भी बदल रही थी। हालांकि उसका ज्यादातर जोर राज्य की कानून-व्यवस्था को खराब ठहराने और विकास का पहिया रूक जाने के आरोप लगाने पर ही रहा।
हालांकि अब हालात बदल गए हैं। अब बसपा और भाजपा को अपनी रणनीति में जरूरी बदलाव करने पड़ सकते हैं। बसपा ने तो इसकी शुरुआत भी कर दी है। उसके राष्ट्रीय महासचिव नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने सोमवार को लखनऊ में प्रमुख शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद से मुलाकात की और कहा कि अगर प्रदेश में बसपा की सरकार बनेगी तो किसी के साथ नाइंसाफी नहीं होने दी जाएगी।
सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन की सुगबुगाहट तो पहले से ही थी, लेकिन सपा में चुनाव चिन्हऔर पार्टी पर कब्जे की लड़ाई काफी लंबी खिंच जाने की वजह से कांग्रेस भी गठबंधन की संभावनाओं को लेकर पसोपेश में दिख रही थी। यही वजह थी कि वह आखिरी वक्त तक प्रदेश की सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कहती रही। (भाषा)