नज़्म : शायर-ए-आज़म, दिलावर फ़िगार

शनिवार, 14 जून 2008 (12:34 IST)
कल इक अदीब-ओ-शायर-ओ-नाक़िद मिले हमें
कहने लगे कि आओ ज़रा बहस ही करें

करने लगे ये बहस कि अब हिन्द-ओ-पाक में
वो कौन है कि शायर-ए-आज़म कहें जिसे

मैंने कहा जिगर तो कहा डेड हो चुके
मैंने कहा कि जोश कहा क़द्र खो चुके

मैंने कहा फ़िराक़ की अज़मत पे तबसिरा
बोले फ़िराक़ शायर-ए-आज़म अरा ररा

मैंने कहा कलाम-ए-रविश लाजवाब है
कहने लगे कि उनका तरन्नुम खराब है

मैंने कहा कि फ़ैज़ तो बोले कि रेड हैं
मैंने कहा हफ़ीज़ तो बोले कि पेड हैं

मैंने कहा तरन्नुम-ए-अनवर पसन्द है
कहने लगे कि उनका वतन देवबन्द है

मैंने कहा कि साहिर-ओ-मजरूह-ओ-जाँनिसार
बोले कि शायरों में न कीजिए इन्हें शुमार

मैंने कहा कि रंग नया है नशूर का
बोले ख्याल ठीक नहीं है हुज़ूर का

मैंने कहा कुछ और तो बोले कि चुप रहो
मैं चुप रहा तो कहने लगे और कुछ कहो

मैंने कहा कि शाद तो बोले स्टाइरिस्ट
मैंने कहा नदीम तो बोले कि जरनलिस्ट

मैंने कहा कि साग़र-ओ-आज़ाद बोले नो
मैंने कहा रईस तो बोले कि ज़ूदगो

मैंने कहा खुमार कहा फ़न में कच्चे हैं
मैंने कहा कि शाद तो बोले कि बच्चे हैं

मैंने कहा क़मर का तग़ज़्ज़ुल है दिलनशीं
कहने लगे कि उन में तो कुछ जान ही नहीं

मैंने कहा न्याज़ तो बोले कि ऐबबीं
मैंने कहा सरूर तो बोले कि नुकताचीं

मैने कहा ज़रीफ़ तो बोले कि गन्दगी
मैंने कहा सलाम तो बोले कि बन्दगी

मैंने कहा कि फ़ना भी बहुत खुश कलाम हैं
बोले कि राह-ए-नज़्म में कुछ सुस्त गाम हैं

मैंने कहा ये जो हैं मेहशर इनायती
कहने लगे कि आप हैं इनके हिमाएती

मैंने कहा असर तो कहा आउट ऑफ़ डेट
मैं ने कहा कि नूह तो बोले कि थर्ड रेट

मैंने कहा कि ये जो दिलावर फ़िगार हैं
बोले कि वो तो तंज़-ओ-ज़राफ़त निगार हैं

मैंने कहा कि तंज़ में इक बात भी तो है
बोले कि उसके साथ खुराफ़ात भी तो है

मैंने कहा कि शायर-ए-आज़म कोई नहीं
कहने लगे कि ये भी कोई लाज़मी नहीं

मैंने कहा तो किसको मैं शायर बड़ा कहूँ
कहने लगे कि मैं भी इसी कशमकश में हूँ

पायान-ए-कार खत्म हुआ जब ये तजज़िया
मैंने कहा हुज़ूर तो बोले कि शुक्रिया

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