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ले अबीर और अरगजा भरकर रुमाल
छिड़कते हैं और उड़ाते हैं गुलाल
ज्यूं झड़ी हर सू है पिचकारी की धार
दौड़ती हैं नार ियां बिजली की सा र
आओ साकी, शराब नोश करें
शोर-सा है, जहां में गोश करें
आओ साकी बहार फिर आई
होली में कितनी शादियां ला ई
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होली खेला आसफुद्दौला वजीर।
रंग सोहबत से अजब हैं खुर्दोपीर।
क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी
देखो कु ंवरजी दू ंगी मैं गारी...
मौसमे होली का तेरी बज़्म में देखा जो रं ग
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गुलजार खिले हों परियों के और मजलिस की तैयारी हो
कपड़ों पर रंग की छींटों से खुशरंग अजब गुलकारी हो
मु ंह लाल गुलाबी आ ंखें हों और हाथों में पिचकारी हो
उस रंग भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो
तब देख नजारे होली के ।
मुहैया सब है अब अस्बाबे होली।
उठो यारों भरों रंगों से झोली ।
खाके- शहीदे-नाज से भी होली खेलिए
रंग इसमें है गुलाब का बू है अबीर की।