ग़ज़ल---दाग़ देहलवी

पेशकश : अज़ीज़ अंसारी

अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का
याद आता है हमें हाय! ज़माना दिल का

तुम भी मुँह चूम लो बेसाख़ता प्यार आ जाए
मैं सुनाऊँ जो कभी दिल से फ़साना दिल का

पूरी मेंहदी भी लगानी नहीं आती अब तक
क्योंकर आया तुझे ग़ैरों से लगाना दिल का

इन हसीनों का लड़कपन ही रहे या अल्लाह
होश आता है तो आता है सताना दिल का

मेरी आग़ोश से क्या ही वो तड़प कर निकले
उनका जाना था इलाही के ये जाना दिल का

दे ख़ुदा और जगह सीना-ओ-पहलू के सिवा
के बुरे वक़्त में होजाए ठिकाना दिल का

उंगलियाँ तार-ए-गरीबाँ में उलझ जाती हैं
सख़्त दुश्वार है हाथों से दबाना दिल का

बेदिली का जो कहा हाल तो फ़रमाते हैं
कर लिया तूने कहीं और ठिकाना दिल का

छोड़ कर उसको तेरी बज़्म से क्योंकर जाऊँ
एक जनाज़े का उठाना है उठाना दिल का

निगहा-ए-यार ने की ख़ाना ख़राबी ऎसी
न ठिकाना है जिगर का न ठिकाना दिल का

बाद मुद्दत के ये ऎ दाग़ समझ में आया
वही दाना है कहा जिसने न माना दिल का

2. हसरतें ले गए इस बज़्म से चलने वाले
हाथ मलते ही उठे इत्र के मलने वाले

वो गए गोर-ए-गरीबाँ*पे तो आई ये सदा--- आशिक़ की क़ब्र
थम ज़रा ओ रविश-ए-नाज़ से चलने वाले

देखिए क्या हवा लाए मेरे नामे का जवाब
पास उनके हैं बहुत ज़हर उगलने वाले

इन जफ़ाओं पे वफ़ा करिए न करिए लेकिन
दिल बदलता नहीं ओ आँख बदलने वाले

शर्म आलूदा*निगाहें तो करेंगी बिस्मिल------शर्म से भरी
अब कोई आन में ये तीर हैं चलने वाले

दिल ने हसरत से कहा तीर जो उसका निकल
देख इस तरहा निकलते हैं निकलने वाले

दिल-ए-बेताब वो आते हैं ख़बर आई है
सब्र कर सब्र ज़रा मेरे मचलने वाले

इमतेहान तेग़-ए-जफ़ा*का जो उन्हें हो मंज़ूर-----अत्याचार की
बच- चा कर अभी टल जाते हैं टलने वाले

गरमि-ए-सोहबत-ए-अग़यार*के शिकवे पे कहा---- दुश्मन के अधिक पास रहने पर
आप ऎ दाग़ हमेशा के हैं जलने वाले

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