तुम्हारी क़ब्र पर मैं फ़ातिहा पढ़ने नहीं आया, मुझे मालूम था, तुम मर नहीं सकते तुम्हारी मौत की सच्ची खबर जिसने उड़ाई थी, वो झूठा था, वो तुम कब थे? कोई सूखा हुआ पत्ता, हवा में गिर के टूटा था। मेरी आँखें तुम्हारे मंज़रों में क़ैद हैं अब तक मैं जो भी देखता हूँ, सोचता हूँ वो, वही है जो तुम्हारी नेक-नामी और बद-नामी की दुनिया थी। कहीं कुछ भी नहीं बदला, तुम्हारे हाथ मेरी उंगलियों में सांस लेते हैं, मैं लिखने के लिए जब भी कागज-कलम उठाता हूं, तुम्हें बैठा हुआ मैं अपनी कुर्सी में पाता हूं। बदन में मेरे जितना भी लहू है, वो तुम्हारी लग़्ज़िशों नाकामियों के साथ बहता है, मेरी आवाज़ में छुपकर तुम्हारा ज़ेहन रहता है, मेरी बीमारियों में तुम, मेरी लाचारियों में तुम। तुम्हारी क़ब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है, वो झूठा है, वो झूठा है, वो झूठा है, तुम्हारी कब्र में मैं दफ़न हूं, तुम मुझमें ज़िन्दा हो, कभी फुरसत मिले तो फ़ातिहा पढ़ने चले आना।