लखनऊ। डॉक्टर आरसी चौधरी देश के बड़े कृषि वैज्ञानिक हैं। धान की ब्रीडिंग, खासकर कालानमक धान को लेकर करीब दो दशक से उन्होंने उल्लेखनीय काम किया है। चंद रोज पहले उनसे मुलाकात हुई। उसी दौरान किसी का कालानमक चावल के लिए फोन आया। डॉक्टर चौधरी का जवाब था कि अब इस बाबत दिसंबर-जनवरी में बात करें। फिलहाल स्टॉक में एक छटांक भी नहीं बचा है।
उधर से पूछा गया क्यों? डॉ. चौधरी ने जवाब दिया कि सब अपने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की देन है। उन्होंने न सिर्फ कालानमक को सिद्धार्थनगर का ओडीओपी (एक जिला, एक उत्पाद) घोषित किया बल्कि निजी स्तर पर सार्वजनिक रूप से इसकी खूबियों की इतनी बार चर्चा की कि जितना उत्पादन नहीं है उससे अधिक देश-विदेश में मांग है।
यह उदाहरण कालानमक की लोकप्रियता का प्रतीक है। इसके आसार बोआई के सीजन में ही आने लगे थे। गोरखपुर के बीज के एक बड़े व्यापारी, मूलतः देवरिया के रहने वाले श्रद्धानंद तिवारी का परिवार करीब 5 दशक से बीज के कारोबार में है। देवरिया एवं गोरखपुर में उनकी दुकान है। साख अच्छी है। लिहाजा पूरे गोरखपुर मंडल से किसान उनके यहां बीज लेने आते हैं।
योगी सरकार की ओर से कालानमक धान की ब्रांडिंग के मद्देजर उन्होंने मौजूदा खरीफ सीजन के पहले ही अनुमान लगा लिया था कि इस साल बीज की अप्रत्याशित मांग निकल सकती है। लिहाजा गोरखपुर रेलवे स्टेशन रोड स्थित अपनी दुकान पर उन्होंने बैनर लगा रखा था, 'किसान भाई कालानमक धान के जरिये अपनी आय दोगुना-तिगुना करें।' इसका असर भी हुआ। बीज की बिक्री बढ़कर करीब तीन गुना हो गई।
इसकी पुष्टि डॉक्टर आरसी चौधरी भी करते हैं। उनके मुताबिक नर्सरी डालने के सीजन में पूर्वांचल ही नहीं लखनऊ, हरदोई, पीलीभीत, उन्नाव और अम्बेडकरनगर आदि जिलों से भी बीज की मांग आई। यहां तक कि राजभवन भी इसके क्रेज से नहीं बच सका। डॉक्टर चौधरी के मुताबिक मांग देखते हुए पहली बार उनको कहना पड़ा कि बिका हुआ बीज वापस नहीं लिया जाएगा। फिलहाल किसी ने वापसी के बाबत बात भी नहीं की। नतीजा यह रहा कि पिछले साल की तुलना में इस साल कालानमक धान का रकबा 50 हजार हेक्टेयर से बढ़कर लगभग 70 हजार हेक्टेयर हो गया। यह वृद्धि 40 फीसद है। पांच साल पहले यह सिर्फ 2200 हेक्टेयर था। इस लिहाज से यह बृद्धि करीब 320 गुना है, जो खुद में अभूतपूर्व है।
और बेहतर प्रजातियों के विकास के लिए इरी कर रहा शोध : किसानों में कालानमक का क्रेज देखते हुए इसके अनुसंधान पर भी जोर है। वाराणसी स्थित इरी (इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट) इस पर शोध कर रहा। वह कई प्रजातियों पर ट्रायल कर रहा है। ट्रायल में जो प्रजाति बेहतर निकलेगी उसे किसानों में लोकप्रिय किया जाएगा। उत्तर प्रदेश और बिहार के किसानों के बीच काम करने वाली संस्था सस्टेनेबल ह्यूमन डेवलेपमेंट को इरी ने कालानमक की 15 प्रजातियों को एक जगह छोटे-छोटे रकबे में डिमांस्ट्रेशन के लिए उपलब्ध कराया है।
सरकार की ओर से अब तक किए गए प्रयास : कालानमक की इस लोकप्रियता के पीछे योगी सरकार की बड़ी भूमिका है। सिद्धार्थनगर का ओडीओपी घोषित करने के बाद से सरकार ने इसे लोकप्रिय बनाने के लिए कई प्रयास किए। मुख्यमंत्री के निर्देश पर लघु, सुक्ष्म एवं मध्यम उद्योग विभाग के पूर्व अपर मुख्य सचिव डॉक्टर नवनीत सहगल खुद कई बार सिद्धार्थनगर गए। किसानों एवं प्रशासन के साथ बैठक की। सरकार की ओर से कपिलवस्तु में कालानमक महोत्सव का लोकार्पण खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया।
कुशीनगर में आयोजित अंतरराष्ट्रीय बौद्ध महोत्सव में आए बौद्ध देश के अतिथियों को गिफ्ट हैंपर के रूप में कालानमक दिया गया। खास अवसर पर खास अतिथियों को दिए जाने गिफ्ट हैंपर में कालानमक अनिवार्यतः होता ही है। प्रदेश सरकार की ओर से सिद्धार्थनगर में कालानमक का कॉमन फैसिलिटी सेंटर बनकर तैयार है। इसके चलने पर ग्रेडिंग, पैकिंग से लेकर हर चीज की अत्याधुनिक सुविधा एक ही छत के नीचे मिल जाएगी।
योगी सरकार के इन सारे प्रयासों का नतीजा सबके सामने है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कालानमक को लोकप्रिय बनाने के लिए वहां के तत्कालीन जिलाधिकारी दीपक मीणा को सम्मानित भी किया था। उल्लेखनीय है कि कालानमक धान का इतिहास बहुत पुराना है। इसे भगवान बुद्ध का प्रसाद माना जाता है। स्वाद, सुगंध एवं पोषण के लिहाज से इसे दुनिया का सर्वश्रेष्ठ चावल कह सकते हैं। यह एक मात्र चावल है जिसमें विटामिन 'ए' मिलता है। इसके धान का रंग काला होता है, पर चावल आम चावल की तरह सफेद ही होता है। तुलनात्मक चार्ट इसकी श्रेष्ठता के सबूत हैं।