Uttar Pradesh Inflation News : उत्तर प्रदेश में आजकल आम का मौसम चल रहा है, लेकिन कमरतोड़ मंहगाई ने आम लोगों की कमर तोड़ दी है। वहीं इन्द्र देवता ने बारिश करते हुए सूर्य की तपिश भले ही कम कर दी हो, लेकिन महंगाई के पारे ने आम आदमी के पसीने छुड़ा रखें है। कुछ दिन पहले तक 10-20 रुपए किलो बिकने वाला टमाटर ऐसा लाल हुआ कि वह 160-180 रुपए तक पहुंच गया।
टमाटर की लालिमा को देखकर हरी सब्जी भी नखरिली हो गई, भिंडी 60-80 किलो, परवल 80-100 किलो, तोरी 120, बीनस 120, अदरक 500 रुपए किलो पर पहुंच गया। सब्जियों के दामों में बेतहाशा वृद्धि के चलते आम आदमी परेशान है, हर घर में सब्जी के बिना रोटी खाना मुश्किल है।
रोजमर्रा में प्रयोग होने वाला टमाटर 160-180 रुपए किलो होने के कारण अधिकांश थालियों से गायब हो चुका है। घरों में भले ही गृहिणी नज टमाटर इस्तेमाल करना बंद कर दिया हो लेकिन थाली से अन्य सब्जी कैसे हटायें? कैसे बजट मेंटेन करें? यह बड़ी चुनौती है।
सब्जियों के दामों में बेतहाशा उछाल के पीछे बारिश को होना वजह बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इस समय हिमाचल प्रदेश से टमाटर आता है, वहां बारिश अधिक होने के चलते टमाटर की फसल खराब हो गई और आवक पर उसका असर दिखाई पड़ रहा है। अदरक के बढ़ते भाव के पीछे की वजह उसका भंडारण है। वही फसल खराब होना या स्टोर करना एक वजह हो सकती है, लेकिन जमाखोरों द्वारा मुनाफे के चलते बाजार में इसकी कृत्रिम कमी पैदा की जा रही है।
तोराई, भिंडी, परवल, लौकी, बीनस, बैगन सभी मंहगे है, 20 रुपए पाव से नीचे कोई सब्जी नही है, ऐसे में आम आदमी मंहगाई की मार झेल रहा है।
सुरसा की तर बढ़ती कीमतों ने थाली से जहां सब्जी गायब कर दी। परिवार के पालनहार ने सोचा कि विकल्प के तौर पर दालों का प्रयोग थाली में ज्यादा किया जाएं।
डायन मंहगाई को यह बात भी पसंद नही आई, उसने दालों को भी अपनी तरफ आकर्षित कर लिया। अरहर की दाल 110-120 तक मिल रही थी अब वह 200 रुपए किलो का आंकड़ा छूने के बेताब है। ऐसा ही हाल अन्य दालों का है 20-30 रुपए हर दाल पर बढ़े हुए है। आटा बाजार में 40-50 रुपए किलो, दूध 70-80 रुपए लीटर, ब्रेड 50 रुपए की है।
अब रोजमर्रा की थाली से सब्जी-दाल की मात्रा बहुत कम हो गई है, ऐसे में जो सब्जी-दाल में पानी का जो झोल बचा उसे स्वादिष्ट बनाकर पेट भरने का जतन करने में गृहिणी जुटी है। लेकिन आपने एक कहावत जरूर सुनी होगी कि 'ऊंट के मुंह में जीरा'।
जीरे पर लगे इस मंहगाई के तड़के पर यह कहावत सटीक बैठती है। लगभग 300 रुपए किलो के आसपास बिकने वाला जीरा अचानक से 700 का आंकड़ा पार कर गया है। जिसके चलते अब लोग कह रहे है कि ऊंट के मुंह में जीरा नही, बल्कि इंसान के मुंह में जीरा कहना चाहिए।
बढ़ती मंहगाई से जहां आम आदमी त्रस्त है, वही दुकानदार और सब्जी बेचने वाले भी परेशान है। सब्जी व्रिकेता विक्की का कहना है कि उसका ठेला पहले 2000 में भर जाता था, अब तीन हजार में भी पूरा नही भर पाता। ग्राहक हमसे कहता है सब्जी मंहगी कर दी। पहले जो व्यक्ति 500 ग्राम सब्जी लेता था वह 250 ग्राम पर आ गया है।
दाल-मसाले व्रिकेता अमित का कहना है कि महंगाई का प्रमुख कारण जमाखोरी है। मौसम के बहाने का जमाखोरों की चांदी कट रही है और दाम आसमान को छू रहें है।
अब इंसान क्या खायें परेशान है, मौसम और लाइफस्टाइल की वजह से दवाओं का खर्च भी दोगुना बढ़ गया है, नौकरी- पेशा लोगों सैलरी वही है, पुरानी सेविंग खत्म हो गई, नई बचत का कोई रास्ता दिखाई नही दे रहा है।
सरकार को इन जमाखोरों पर अंकुश लगाने का जतन करना चाहिए। लेकिन देखा जायें तो एक बड़ा व्यापारी वर्ग किसी न किसी तरह से सरकार के लोगों के साथ जुड़ा है, जिसके चलते उन पर एक्शन कम हो पाता है।