आधुनिक श्रवण कुमार बना राहुल, दादा-दादी को कंधे पर उठाकर लाया कांवड़

हिमा अग्रवाल
Today Shravan Kumar Rahul Saini: कलयुग में जहां माता-पिता बुजुर्ग अवस्था में बेटे की सेवा के लिए तरस रहे हैं, बच्चे मां-बाप को वृद्धाश्रम में शरण दिला रहे हैं, ऐसे में मन को शांति देने वाली तस्वीरें भी आ रही हैं। एक पोता अपने दादा-दादी को श्रवण कुमार बनकर कंधे पर रखकर प्रेम की कांवड़ ला रहा है।

यह श्रवण कुमार पोता गाजियाबाद जिले का रहने वाला राहुल सैनी है। राहुल का सपना है कि वह अपने दादा-दादी को धार्मिक यात्रा कराए, जिसके चलते उसने श्रावण मास की शिवरात्रि पर कांवड़ लाने का मन बनाया और उस कांवड़ में दादा-दादी को बैठाया और चल दिया हर की पैड़ी हरिद्वार की तरफ। 
राहुल गाजियाबाद के असलतपुर फकरू गांव का रहने वाला है। उसने 20 जून को हरिद्वार से गंगाजल के साथ अपने 85 वर्षीय दादा धन्नू और 82 वर्षीय दादी बलबीरी को कंधे पर बांस के सहारे तैयार कांवड़ में बैठाकर यात्रा शुरू की है। लगभग 135 किलोग्राम भार कंधे पर रखकर आधुनिक युग का श्रवण कुमार हर तरफ वाह-वाही पा रहा है।
 
गांव के शिवालय में जलाभिषेक करेगा राहुल : राहुल शिवरात्रि पर गांव के ही शिवालय में अपने-दादा-दादी के साथ जलाभिषेक करेगा। राहुल को बचपन से ही अपने दादा-दादी से बेहद प्यार है, जिसके चलते उसने बुजुर्ग दादा-दादी की धार्मिक यात्रा का सपना पूरा किया है। वहीं राहुल के साथ उसके दो साथी पप्पू और हिमांशु भी है, जो उसकी हिम्मत बढ़ाकर कांवड़ उठाने में सहयोग कर रहे हैं। वहीं पोते के प्रेम को देखकर धन्नू और बलवीरी अपने को धन्य मानते हुए ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि ईश्वर सबको ऐसा पोता दे।
 
आधुनिक युग का श्रवण कुमार दाल-रोटी खाकर प्रतिदिन 10 किलोमीटर पैदल यात्रा करके अपने गंतव्य की तरफ बढ़ रहा है। रास्ते में चिलचिलाती धूप, उमस और बारिश भी उसके इरादों को डगमगा नही पा रही है।
 
बुजुर्गों की सेवा का संदेश : कंधे पर उठाए दादा-दादी को देखकर लोगों को माता-पिता की सेवा में लगे श्रवण कुमार की याद लोगों के जहन में एक बार फिर से जीवित हो उठी है। इससे पहले देखने में आया था कि माता-पिता को लेकर कांवड़ यात्रा की गई है, लेकिन राहुल ने दादा-दादी की कांवड़ उठाकर युवाओं को संदेश दिया है कि बुजुर्ग सेवा से बड़ा कोई धर्म नही है और यह संदेश संयुक्त परिवार को जोड़ने में फिर से कामयाब हो सकता है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala

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