यूपी चुनाव में सपा सुप्रीमो मायावती की 'रहस्यमय' चुप्पी के मायने

संदीप श्रीवास्तव

शनिवार, 5 मार्च 2022 (13:24 IST)
भारत के सबसे बड़े प्रदेश की सूची मे रहने वाला उत्तर प्रदेश जहां की राजनीति का असर सीधे तौर पर केंद्र की राजनीति पर भी पड़ता है और 2022 का विधानसभा चुनाव का परिणाम आने वाले लोकसभा चुनाव का भी भविष्य तय करेगा। यूपी के इतिहास में चार बार मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर बैठने का रिकॉर्ड मायावती के नाम दर्ज है। वे राज्य की पहली महिला मुख्‍यमंत्री भी रही हैं।
 
इस 2022 के विधानसभा चुनाव में मायावती की चुप्पी हर किसी को विचलित कर रही है। हर किसी के मन में एक ही सवाल है कि आखिर मायावती के मौन के पीछे क्या कारण हैं? इस पूरे मामले पर राजनीतिक विश्लेषक व बुद्धजीवी वर्ग मंथन जरूर कर रहा है। वर्ष 1984 में बहुजन समाज पार्टी वजूद में आई और वर्ष 1993 में पहली बार प्रदेश में 164 प्रत्याशियों में 67 सीटें जीतकर अपनी ताकत का एहसास कराया था।
 
इसका असर 2007 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। इस चुनाव में बसपा ने प्रदेश की सभी 403 सीटों पर प्रत्याशी उतारे जिसमें 206 प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की और मायावती ने अकेले अपने दम पर यूपी में सरकार बनाई। इस चुनाव में बसपा को 30.43% वोट मिले, किन्तु इसके बाद के चुनाव में बसपा का ग्राफ गिरना शुरू हो गया। 2012 के विधानसभा चुनाव में केवल 80 सीटें व 2017 के चुनाव मे मात्र 19 सीटें ही बसपा हासिल कर सकी।  हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ा, वहीं पिछली विधानसभा चुनाव में मोदी लहर में भाजपा रिकॉर्ड जीत दर्ज कर प्रदेश की सत्ता में आई और इस बार 2022 का चुनाव भाजपा मोदी व योगी के चेहरे पर लड़ रही है।
 
बसपा की बात करें तो इस चुनाव वो दमखम नहीं दिख रहा हैं और खास बात यह है कि प्रदेश के 75 जिलों की 403 विधानसभा सीटों को अगर देखें तो जिन सीटों पर भाजपा के प्रत्याशियों की स्थिति मजबूत है, उन सीटों पर बसपा ने लगता है कि खानापूर्ति करते हुए केवल अपनी उपस्थिति ही दर्ज कराई है।
 
ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि न ही बसपा के प्रचार-प्रसार में दम दिख रहा और न ही प्रत्याशियों में। इतना ही नहीं बसपा व भाजपा दोनों ही पार्टियां अपने प्रचार व रैलियों में एक-दूसरे पर निशना साधने से बचे रहे हैं। इससे यह प्रतीत होता है कि कहीं दोनों दलों के बीच अंदरूनी साठगांठ तो नहीं है? इसकी पुष्टि इन अटकलों से भी हो रही है कि भाजपा यूपी में सरकार बनाने के बदले मायावती को उपराष्ट्रपति का पद दे सकती है। यदि ऐसा हुआ तो भाजपा यूपी में मदद के लिए न सिर्फ मायावती का कर्ज उतार देगी, बल्कि देशवासियों को यह संदेश देने में भी सफल होगी कि उसने एक दलित महिला को शीर्ष पद पर बैठाया है। 

लोगों का यह भी मानना है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि श्रीगणेश रूपी हाथी अपनी सूंड में 'कमल' के पुष्पों की माला काशी के भोलेनाथ के चरणों मे अर्पित तो नहीं कर रहा हैं, जिसके उपरांत भोलेनाथ के प्रसन्न होने पर मनमाफिक प्रसाद मिल सके। हालांकि फिलहाल कोई भी दावा जल्दबादी होगी, लेकिन 10 मार्च को चुनाव परिणाम के बाद पूरी स्थिति साफ हो जाएगी।
 

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