मौका कोई भी हो फायदे में सिर्फ एक चीज रहती है और वो है बाजार। साल कि शुरूआत न्यू ईयर के बाजार से होती है फिर संक्रांति में पतंगबाजी का बाजार, फिर 26 जनवरी को झंडे, तिरंगे के टेटू बनवाने का बाजार और अब 14 फरवरी आ रहा है जो न्यू ईयर के बाद बाजार के लिए सबसे शुभ दिन है। हर साल शुरू के इन दो महीनो में वेलेंटाइन डे सबसे ज्यादा बिक्री और कमाई वाला दिन होता है। बाजार हर चीज बेच सकता है इसमें कोई दो राय नहीं है, अब आप कहेंगे कि बाजार प्यार तो नहीं बेच सकता, भावनाएँ तो नहीं बेच सकता, बेशक नहीं लेकिन उसे व्यक्त करने के तरीकों को तो बेच सकता है।
बाजार अपना रास्ता खुद बना लेता है। उसमें हर चीज को भुनाने की ताकत होती है। अब आप किसी गार्डन में जाकर फूल तोड़ने की हिमाकत तो करने से रहे क्योंकि आजकल हर गार्डन में ये लिखी हुई तख्ती बड़ी सख्ती से लगाई जाती है कि "फूल तोड़ना सख्त मना है". फिर आप झक मारकर फूलों की दुकान से बकायदा नगद पैसे देकर गुलाब खरीदेंगे और अपने प्रेमी या प्रेमिका को देंगे। और आप अगर किसी से प्यार करते हैं (प्यार मतलब, ये आजकल का वेलेंटाइन डे वाला प्यार) तो भले ही आपकी जेब कितनी हल्की हो आप कम से कम एक फूल देकर इस वेलेंटाइन की रस्म अदायगी तो जरूर करेंगे।
तो आ गया ना बाजार प्यार के बीच में। नाराज मत होइए, ये आज के समय की जमीनी हकीकत है जहाँ लोगों के बस दो ही काम है पैसा कमाना और खर्च करना। और ये सब जो हो रहा है उसके पीछे आप और हम ही हैं। बाजार बनाने वाले भी हम हैं और उसे चलाने वाले भी हम ही हैं। जो चीज समाज में आएगी उसे बाजार में आना ही है।
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बाजार समाज से अलग नहीं है। मुझे तो कभी कभी शक होता है कि वेंलेंटाइन डे को भारत में लाने के पीछे कहीं बाजार के पुराने खिलाड़ियों का तो हाथ नहीं है। मानना होगा कि वेलेंटाइन डे पर फूलों, ग्रीटिंग कार्ड्स, गिफ्ट्स, चॉकलेट्स, खबरों, राजनीतिक बयानबाजी का बाजार जितना गर्म होता है उतना शायद ही किसी दिन होता है, हालाँकि खबरें और राजनीति, बाजार के लिए किसी दिन की मोहताज नहीं है।
प्यार में बाजार आया या बाजार में प्यार आया ये एक अलग बात है लेकिन हम उसे किस तरह से लेते वो महत्वपूर्ण हैं। कई लोगों के लिए ये दिन उनकी दो वक्त की रोटी की फिक्र से छुट्टी का दिन है तो कई छुटभैये नेताओं के लिए चुनावों के बाद से आई फुर्सत से छुट्टी का दिन। सूरत कोई भी हो प्यार कभी किसी का घाटा नहीं होने देता।