वसंत ऋतु में पंच तत्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंच तत्व जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। आकाश स्वच्छ है, वायु सुहावनी है, अग्नि (सूर्य) रुचिकर है, तो जल पीयूष के समान सुखदाता। और धरती? उसका तो कहना ही क्या! वह तो मानो साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली होती है। ठंड से ठिठुरे विहंग अब उड़ने का बहाना ढूँढ़ते हैं तो किसान लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर नहीं अघाता। धनी जहाँ प्रकृति के नव सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं तो निर्धन शिशिर की प्रताड़ना से मुक्त होने के सुख की अनुभूति करने लगते हैं।
बारह राशियों में सूर्य या पृथ्वी के घूमने में लगने वाले बारह महीनों को दो-दो मासों के वर्गों में बाँटकर 6 ऋतु की कल्पना बड़े व्यावहारिक तरीके से भारत में की गई है। इनमें वसंत ऋतु को सबका राजा 'ऋतुराज' कहा गया है।
कामसखा वसंत
कथा है कि अंधकासुर का वध करने के लिए देवों की योजना के अनुसार जब भगवान शिव के पुत्र कुमार कार्तिकेय की दरकार आन पड़ी थी तो सवाल उठा कि शिव पुत्र कैसे पैदा हो? इसके लिए शिवजी को कौन तैयार करे? तब कामदेव के कहने पर ब्रम्हाजी की योजना के अनुसार वसंत को उत्पन्न किया गया था। कालिका पुराण में वसंत का व्यक्तिकरण करते हुए इसे सुदर्शन, अति आकर्षक, संतुलित शरीर वाला, आकर्षक नैन-नक्श वाला, अनेक फुलों से सजा, आम की मंजरियों को हाथ में पकड़े रहने वाला, मतवाले हाथी जैसी चाल वाला आदि सारे गुणों से भरपूर बताया है। वसंत में कुछ ऐसी बात है 'अमुवा की डाली पै रे कूजत कोयरिया कै हियरा में उठत हिलोर' वाले आम होते हैं। ऋग्वेद के अनुसार यह संवत् का मुख है और मुख को तो कम से कम धुला, पुंछा, सजा और आँखों के रास्ते दिल में समाने वाला होना ही चाहिए।
ऋतुराज वसंत नाम क्यों है?
इसी दौरान नया संवत् शुरू होने से नए साल के पहले त्योहार इसमें बसे रहने के कारण इसे वसंत कहा जाता है। फसल तैयार रहने से उल्लास और खुशी का आलम रहता है। मंगल कार्य, विवाह आदि भी इस दौरान होते हैं। सुहाना मौसम, फूलों की बहुतायत, तैयार खेती, मतवाला माहौल, आम पर बौर, खिलते कमल, सर्दी का जाता हड़कंप, सुहानी शाम आदि सब इसे ऋतुराज बनाते हैं।
प्यार-मोहब्बत का मौसम
इसका एक नाम 'कामसखा' भी है। प्राचीन काल में किसी के प्रति अपने प्यार और आकर्षण का इजहार करने के लिए यह ऋतु अनुकूल मानी जाती थी। राजमहलों में और राजकीय देखरेख में नगरों में मस्ती और प्रपोज करने के लिए बाकायदा 'मदन महोत्सव' मनाया जाता था। इस बात का उल्लेख ही नहीं, विस्तृत विवरण संस्कृत साहित्य में बखूबी किया गया है। आमों की मोहनी खुशबू, कोयल की कूक, शीतल-मंद सुरभित हवा, खिलते फूल, लहलहाते खेत और फागुन के मदमस्त करने वाले गीत सब मिलकर अनुकूल समाँ बाँधते हैं।
वसंत पंचमी से वसंत की शुरुआत है?
यह तिथि देवी सरस्वती का अवतरण या प्राकट्य दिवस होने से इस दिन सरस्वती जयंती, श्रीपंचमी आदि पर्व होते हैं। कभी यह वसंत का पहला दिन भी हो सकता है। वैसे सायन कुंभ में सूर्य आने पर वसंत शुरू होता है। हाँ, इस दिन से वसंत राग या वसंत के प्यार भरे गीत, राग-रागिनियाँ गाने की शुरुआत होती है। इस दिन सात रागों में से पंचम स्वर (वसंत राग) में गायन, कामदेव, उनकी पत्नी रति, और वसंत की पूजा की जाती है।