वट सावित्री व्रत की 10 रोचक बातें जिन्हें आपको जानना चाहिए

WD Feature Desk

शनिवार, 1 जून 2024 (13:43 IST)
Vat Savitri amavasya purnima 2024: वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को रखा जाएगा जो 6 जून 2024 को रहेगी और वट पूर्णिमा का व्रत 21 जून को रखा जाएगा। ज्येष्ठ माह के इस व्रत का खास महत्व है। महिलाएं इस दिन व्रत रखकी अपने पति के दीर्घायु की कामना करती हैं। 6 जून को इसी दिन शनि जयंती भी है। आओ जानते हैं वट सावित्री व्रत या पर्व की 10 रोचक बातें।
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1. दो बार आता है ये पर्व : वर्ष में दो बार वट सावित्री का व्रत रखा जाता है। पहला ज्येष्ठ माह की अमावस्या को और दूसरा ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को। उत्तर भारत में अमावस्या का महत्व है तो दक्षिण भारत में पूर्णिमा का। वट पूर्णिमा 24 जून 2021 गुरुवार को है।
 
2. स्कन्द व भविष्य पुराण के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को किया जाता है, लेकिन निर्णयामृतादि के अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को करने का विधान है। 
 
3. यह भी कहते हैं कि भारत में अमानता व पूर्णिमानता ये दो मुख्य कैलेंडर प्रचलित हैं। हालांकि इन दोनों में कोई फर्क नहीं है बस तिथि का फर्क है। पूर्णिमानता कैलेंडर के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है जिसे वट सावित्री अमावस्या कहते हैं जबकि अमानता कैलेंडर के अनुसार इसे ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को मनाते हैं, जिसे वट पूर्णिमा व्रत भी कहते हैं।
 
4. वट सावित्री अमावस्या का व्रत खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, पंजाब और हरियाणा में ज्यादा प्रचलित है जबकि वट पूर्णिमा व्रत महाराष्ट्र, गुजरात सहित दक्षिण भारत के क्षेत्रों में प्रचलित है।
 
5. वट सावित्री का व्रत शादीशुदा महिलाएं अपने पति की भलाई और उनकी लम्बी उम्र के लिए रखती हैं। मान्यता अनुसार इस व्रत को करने से पति की अकाल मृत्यु टल जाती है। इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं।
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6. दोनों ही व्रत के दौरान महिलाएं वट अर्थात बरगद की पूजा करके उसके आसपास मन्नत का धागा बांधती है। वट अर्थात बरगद का वृक्ष आपकी हर तरह की मन्नत को पूर्ण करने की क्षमता रखता है।
 
7. पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसलिए इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने का विशेष महत्व है। इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने से घर में सुख-शांति, और धनलक्ष्मी का वास होता है।
 
8. दोनों ही व्रतों के पीछे की पौराणिक कथा दोनों कैलेंडरों में एक जैसी है। वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 
 
9. सती सावित्री की कथा सुनने व वाचन करने से सौभाग्यवती महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूरी होती है। 
 
10. इस व्रत को सभी प्रकार की स्त्रियां (कुमारी, विवाहिता, विधवा, कुपुत्रा, सुपुत्रा आदि) रख सकती हैं। 

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