Vat Savitri Vrat puja method: यदि आप पहली बार वट सावित्री का व्रत कर रही हैं, तो यह एक बहुत ही शुभ और महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। यह व्रत पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए रखा जाता है। इस साल वट सावित्री का व्रत मंगलवार, 10 जून 2025 को ज्येष्ठ पूर्णिमा पर मनाया जाएगा। पश्चिमी और दक्षिणी भारत में वट पूर्णिमा व्रत 10 जून को रखा जा रहा है। यहां पहली बार वट सावित्री व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए विस्तृत पूजा सामग्री और विधि दी गई है:ALSO READ: वट सावित्री पूजा का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
वट सावित्री व्रत पूजा सामग्री लिस्ट: यह सुनिश्चित कर लें कि पूजा से एक दिन पहले ही आप सभी सामग्री एकत्रित कर ली हैं।
• सावित्री और सत्यवान की मूर्ति या तस्वीर: आजकल छोटी मूर्तियां या चित्र आसानी से बाजार में उपलब्ध होते हैं।
• वट वृक्ष की पूजा के लिए: वट वृक्ष या बरगद का पेड़, यदि पास में न हो तो एक डाली जिसमें फल लगे हों, लाकर गमले में लगा सकते हैं या फिर घर में वट वृक्ष की तस्वीर के सामने भी पूजा कर सकते हैं।
- कच्चा सूत या लाल कलावा/ धागा- परिक्रमा के लिए (कम से कम 7 बार लपेटने के लिए पर्याप्त)
- जल से भरा हुआ कलश (पानी वाला लोटा और पीतल का कलश)
- रोली, कुमकुम, सिंदूर, हल्दी
- अक्षत (चावल)
- लाल या पीले रंग के ताजे फूल, फूलों की माला
- दीप/मिट्टी का दीपक और घी या तेल
- धूप, अगरबत्ती
- पांच या सात प्रकार के फल (विशेषकर आम, केला, तरबूज/खरबूजा, लीची आदि मौसमी फल)
- मिठाई या पूजन प्रसाद (जैसे पुए-पूड़ी, गुड़-चना, बताशे, शक्करपारे)
- भीगा हुआ चना (कथा के बाद प्रसाद के रूप में भी वितरित किया जाता है)
वट सावित्री व्रत की पूजा विधि (पहली बार करने वालों के लिए):
1. व्रत से एक दिन पूर्व (नहाए-खाए): व्रत से एक दिन पहले सात्विक भोजन ग्रहण करें। इस दिन प्याज, लहसुन, बैंगन, मसूर की दाल आदि का सेवन न करें।
• रात को चने भिगोकर रख दें (प्रसाद के लिए)।
2. व्रत के दिन (ज्येष्ठ पूर्णिमा- 10 जून 2025):
• प्रातःकाल स्नान और संकल्प:
- सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर यानी जितना जल्दी संभव हो स्नान करें।
- स्वच्छ और शुद्ध वस्त्र धारण करें। लाल, गुलाबी या पीले रंग के वस्त्र शुभ माने जाते हैं।
- सोलह श्रृंगार करें।
- पूजा घर में भगवान का ध्यान करें और मन में व्रत का संकल्प लें कि आप अपने पति की लंबी आयु, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत रख रही हैं।
- इस दिन नीले, काले, भूरे या सफेद रंग के वस्त्र पहनने से बचें।
• वट वृक्ष की पूजा:
- वट वृक्ष के नीचे जाकर पूजा करें। यदि वट वृक्ष उपलब्ध न हो, तो घर में वट वृक्ष की डाली या चित्र स्थापित कर पूजा की जा सकती है।
- वट वृक्ष के नीचे की जगह को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध कर लें।
- सावित्री और सत्यवान की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। साथ ही गौरी और गणेश जी की प्रतिमा भी स्थापित कर सकते हैं (गणेश जी की प्रतिमा सुपारी में कलावा लपेटकर बनाई जा सकती है)।
- कच्चे सूत या कलावे को वट वृक्ष के चारों ओर लपेटें और कम से कम सात बार परिक्रमा करें (घड़ी की दिशा में)। प्रत्येक परिक्रमा पर एक-एक चना वृक्ष में चढ़ाते जाएं।
- परिक्रमा करते समय आप मन में अपनी मनोकामनाएं दोहरा सकती हैं या सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण कर सकती हैं।
- पूजन के बाद हाथ में भीगे हुए चने लेकर वट सावित्री व्रत कथा पढ़ें या सुनें। यह व्रत का सबसे महत्वपूर्ण भाग है।
- पूजा के अंत में वट वृक्ष की आरती करें।
- अपनी सास को भीगे हुए चने और कुछ वस्त्र या कोई अन्य सामग्री भेंट करें और उनका आशीर्वाद लें।
- अपनी क्षमतानुसार जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र या फल का दान करें।
• व्रत का नियम:
- यह व्रत आमतौर पर निर्जल रखा जाता है, यानी बिना अन्न और जल के। यदि स्वास्थ्य कारणों से संभव न हो, तो आप फलाहार कर सकती हैं या केवल जल ग्रहण कर सकती हैं। अपनी शारीरिक क्षमता का ध्यान रखें।
- दिनभर भगवान का स्मरण करें और सकारात्मक रहें।
• पारण:
- अगले दिन सुबह स्नानादि के बाद भगवान का स्मरण करें और पूजा करें।
- फिर 11 भीगे हुए चने खाकर व्रत का पारण करें।
- पति का आशीर्वाद लें।
यह विधि पहली बार व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए विस्तृत और सहायक होगी। श्रद्धा और भक्ति के साथ किए गए इस व्रत से निश्चित रूप से आपको शुभ फल की प्राप्ति होगी।
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