साहित्य : विद्वानों की नजर में

साहित्य समाज का दर्पण है यह तो हम सभी ने सुना है। लेकिन साहित्य का सृजन करते हुए एक साहित्यकार साहित्य के बारे में क्या सोचता है यह जानना बेहद दिलचस्प है। आइए जानते हैं साहित्य क्या है महापुरुषों की नजर में-

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* साहित्य सच्चिदानंद की प्यास और खोज का प्रत्यर्पण है।

-जैनेन्द्र कुमार



* जिस साहित्य में हमारी रुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हम में गति और शांति पैदा न हो, हमारा सौन्दर्य प्रेम न जागृ्त हो, जो हममें सच्चा संकल्प और कठिनाइयों पर विजय पाने की सच्ची दृढ़ता उत्पन्न न करे, वह आज हमारे लिए बेकार है। वह साह‍ित्य कहलाने का अधिकारी नहीं।

-मुंशी प्रेमचंद



*साहित्य वह है जिसे चरस खींचता हुआ किसान भी समझ सके और खूब पढ़ा-लिखा भी समझ सके।

-महात्मा गांधी




* यदि हमें जीवित रहना है और सभ्यता की दौड़ में अन्य जातियों की बराबरी करना है तो हमें श्रमपूर्वक बड़े उत्साह से सत्साहित्य का उत्पादन और प्राचीन साहित्य की रक्षा करनी चाहिए।

-महावीर प्रसाद द्विवेदी



* जब अंतरजगत का सत्य बहिर्जगत के सत्य के संपर्क में आकर संवेदना या सहानुभू‍ति उत्पन्न करता है, तभी साहित्य की सृष्टि होती है।

-रामकुमार वर्मा



* सच्चे साहित्य का निर्माण तो एकांत-चिंतन और एकांत साधना में होता है।

-अनंत गोपाल शेवड़े



*सबसे जीवित रचना वह है जिसे पढ़ने से प्रतीत हो कि लेखक ने सबकुछ फल की तरह प्रस्फुटित किया है।

-शरतचंद्र



* साहित्य का पतन राष्ट्र के पतन का द्योतक है। पतन की ओर वे परस्पर साथ देते हैं।

-गेटे




* साहित्य, संगीत और कला से रहित पुरुष बिना पूंछ और सींग के साक्षात पशु हैं।

-अज्ञा

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