प्रियदर्शन / टीवी पत्रकार और लेखक: चेतन भगत दरअसल भाषा को सिर्फ बाज़ार की चीज की तरह देखते हैं और हिंदीभाषियों को उपभोक्ता की तरह। अगर उन्हें यह समझ होती कि भाषा सिर्फ इस्तेमाल की वस्तु नहीं होती, उसका स्मृति से, परंपरा से वास्ता होता है, वह अनुभव और कल्पना की भी भाषा होती है तो ऐसे सुझाव नहीं देते। क्या चेतन भगत देवनागरी में अपने अंग्रेज़ी उपन्यास लिख सकते हैं? अगर नहीं तो वे देवनागरी में लिखने वालों को रोमन में लिखने की सलाह क्यों दे रहे हैं? अंग्रेजी का दबदबा इसलिए नहीं है कि वह रोमन में लिखी जाती है, बल्कि इसलिए है कि वह इस देश में हुकूमत की भाषा है। इसलिए उसमें रोज़गार है और शान है और इसीलिए लोगों में अंग्रेज़ी सीखने या बोलने की ललक है। लेकिन वह एक संस्कृतिविहीन और स्मृतिविहीन भारत बना रही है जिसके स्टार लेखक चेतन भगत जैसे सतही उपन्यासकार ही हो सकते हैं।