कवि अशोक चक्रधर कहते हैं,' हिन्दी के लिए जितना किया जाना चाहिए था, वह नहीं हो पा रहा, इसकी मुझे चिंता है। मैं चाहता हूं कि हिन्दी नई पीढ़ी तक पहुंचे, हालांकि इसमें संदेह नहीं है कि हिन्दी बदल रही है और तकनीक के साथ चलने लगी है बल्कि मुझे लगता है कि जो लोग यह कहते हैं कि तकनीक की वजह से हिन्दी का विकास नहीं हो पाया, वे गलत हैं। तकनीक ने तो काम आसान किया है।
हिन्दी में कई ऐसे सॉफ्टवेयर आ रहे हैं जो इसके तकनीकी विकास को भी प्रमाणित करते हैं। मिसाल के तौर पर प्रवाचक ऐसा ही एक नया उत्पाद है जो पूरे के पूरे टेक्स्ट को हिन्दी में बदल देता है। द्रुतलेखन भी ऐसा ही सॉफ्टवेयर जो हिन्दी के विकास में सहायक होगा। लिहाजा मुझे तो लगता है नई तकनीक भाषाओं के प्रति संवेदनशील है, कमी तो प्रयोक्ताओं की ओर से है।
अशोक चक्रधर हिन्दी के विकास के लिए काम कर रही संस्थाओं के बीच रचनात्मक संवाद की बात भी कहते हैं।
उनके अनुसार, 'हिन्दी के विकास के लिए तमाम संस्थाओं को एक-दूसरे के सहयोग के लिए आगे आना चाहिए। मिल-बैठकर आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि कोई एक संस्थान सारा काम नहीं कर सकता। आपस के अंतर्विरोध दूर करने भी अनिवार्य हैं। हिन्दी के विकास के लिए हिन्दीसेवी संस्थाओं का संगठन बहुत जरूरी है।