आ रेल मुझे मार

पहले पिताजी हुआ करते थे। पिताजी ने अंगड़ाई ली और वे पापा हो गए। बहुत समय तक बच्चों ने पापा को ढोया। बच्चे पापा से बोर हो गए। पापा भी अपने व्यक्तिगत बच्चों से परेशान हो गए। लिहाजा पापा व बच्चों के आपसी सद्व्यवहार से पापा "डैड" में कन्वर्ट हो गए। पिताजी यात्रा करते-करते बेचारे "डैड" बन गए। इसी तरह से माँ वाया मम्मी के "मॉम" तक पहुँच गई।

पहले पिताजी व माँ के लिए सुरेश और लक्ष्मी जन्म लेती थी। अब डैड व मॉम के संयुक्त उद्यम से टिंची व किट्टू अवतार लेते हैं। अब टिंची व किट्टू अपने स्वास्थ्य की रक्षा सरसों व मक्का की रोटी से करने के बजाय पिज्जा व बर्गर से करते हैं। छाछ को छोड़कर कोला पीने में ज्यादा विश्वास करते हैं। मामला एकदम नई जनरेशन का है। सब बदल रहा है।

लेकिन बेचारे मुहावरों के साथ बड़ी नाइंसाफी हो रही है। वर्षों से वही पुराने मुहावरे घसीटे जा रहे हैं। मुहावरे होने चाहिए : "अमेरिका के आगे रोना और अपना कश्मीर खोना।"। "चोर-चोर पम्पेरे भाई।" "जिसकी कुर्सी उसका पंप।" "मुँह में "बुश" बगल में लादेन।" "नौ हजार कसमें खाके मुश, बुश को चले।" "मुश के आगे कबूतर उड़ाना।" "चोर की गाड़ी में पुलिस।" "छछूंदर के सिर में अमेरिकी तेल" आदि।" मुहावरों को अपडेट किया जाना चाहिए, जैसे पिताजी अपडेट होकर "डैड" हो गए। मम्मी अपडेटहोकर "मॉम"हो गईं। "रूपवती नारी" तो अपडेट होकर "लूपवती नीरा" बन गई। चरम कोटि का प्यार "चर्म कोटि" का हो गया। मामला अपडेटिंग का है। वक्त के साथ कदम मिलाने का है।

एक मुहावरा बेचारा बरसों से वही है- "आ बैल मुझे मार।" अब न तो कहीं बैल दिखाई देते हैं और न ही कोई बैलों से मरने वाला वीर। बैलों की जगह सुपर फास्ट रेलों ने ले ली। दनादन रेलें चल रही हैं। पहले मरने-मारने की समस्त क्रियाएँ बैलों की सहायता से होती थीं। अब कहाँ बैल? मुहावरा समिति को अब नया मुहावरा देना चाहिएः "आ रेल मुझे मार।" अब मरने-मारने की संपूर्ण सुविधा रेलों ने प्रदान कर दी है।

रेल के नीचे आकर मरना प्रेमी-प्रेमिकाओं का सबसे उत्तम विकल्प है वहीं पति-पत्नी भी रेल की पटरियों के सहारे ही आनंदपूर्वक मरने का धर्म निबाहते हैं। मरने की ऐसी उत्तम सुविधा रेलों के अलावा और कहाँ? स्वयं रेल मंत्रालय इस मामले में महासीरियस है। रेल महकमा खुद अपनी देखरेख में "फिश" को "प्लेट" में रखकर भक्षण करता है और "फिश प्लेटों" की शह पर सामूहिक आत्महत्या कार्यक्रम संपन्ना होने देता है। कभी रेल को पटरी से उतारा जाता है तो कभी दो रेलों का भरत-मिलाप कराया जाता है।

इस मामले में पाकिस्तान भी कम नहीं है। इधर भारत ने बम फोड़ा, उधर उसने भी जा बम फोड़ा। भारत ने बड़ी मेहनत से रेलगाड़ियों को पटरी से उतारा ताकि रेलों को सड़कों पर भी चलने का अभ्यास हो और आत्महत्या जैसा पुनीत कार्य भी पूर्ण हो।

तभी पाकिस्तान ने भी दो-चार "फिश प्लेटें" अपने आकाओं तक पहुँचाई और कर दिया धमाका। कुशलतापूर्वक रेल को पटरी से उतारा और दर्जनों "अपराधों को हलाक" करने में कामयाब हुआ। इसे कहते हैं मुहावरों का "अपडेटीकरण।" अब ताजा मुहावरा बना- "आ रेल मुझे मार।"

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