सवाई मानसिंह द्वितीय भी गायत्री देवी की खूबसूरती, बहादुरी व उनकी अदाओं के मुरीद होकर उन्हें अपना दिल दे बैठे थे। वे जब-जब भी लंदन जाते, तब-तब अपनी इस प्रेमिका से मुलाकात करते।
जहाँ राजमाता ने शानो-शौकत का दौर देखा, वहीं उन्होंने राजमहल में दहाड़-दहाड़कर रोती चिंघाड़ती तन्हाइयों को भी देखा। दर्द की हर सिसकी को गायत्री देवी ने महसूस किया। अपने जीवन के कई उतार-चढ़ावों की लहरों में वो चट्टान की तरह सीना ताने खड़ी रही।