स्विटजरलैंड में जन्मीं, भारतीय मेजर जनरल से शादी और बना दिया सैन्य अलंकरण परमवीर चक्र का डिजाइन
परमवीर चक्र की डिजाइन तैयार करने वाली स्विस महिला इवा योन्ने लिंडा उर्फ सावित्री बाई खानोलकर
परमवीर चक्र किसने किया तैयार
एक स्विस महिला इवा योन्ने लिंडा के सावित्री बाई खानोलकर बनने का रोचक सफर
भारत का सर्वोच्च शौर्य सैन्य अलंकरण परमवीर चक्र युद्ध में बहादुरी के लिए दिया जाता है। इस परमवीर चक्र के रंग, रूप और आकार को जिन हाथों ने तैयार किया वह एक स्विस महिला इवा योन्ने लिंडा महिला थीं जो भारत के प्रेम में इस कदर डूबीं कि सावित्री बाई खानोलकर के नाम से पहचानी गई। आइए जानते हैं प्रमुख बिंदुओं के माध्यम से उनकी अनोखी गाथा....
1. इवा की पैदाइश 20 जुलाई 1913 में स्विटजरलैंड के न्यूचैटेल में हुई।
2. इवा के पिता आंद्रे डी मैडे मूल रूप से हंगरी और मां मार्टे हेंट्जेल रूसी महिला थीं।
3. इवा के पिता जिनेवा यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और लीग ऑफ़ नेशन्स में लायब्रेरी के हेड ऑफ द डिपार्टमेंट भी थे। वहीं उनकी मां मार्टे हेंट्जेल इंस्टीट्यूट
जीन-जैक्स रूसौ में पढ़ाती थीं। इवा के जन्म के साथ ही उनकी मां का निधन हो गया था। जिसके बाद इवा की परवरिश उनके पिता ने की।
4. इवा ने अपनी पढ़ाई रिवियेरा के एक स्कूल से की। अपनी मां के गुजर जाने के बाद इवा अक्सर अपने पिता की लायब्रेरी में चली जाती थीं।
5. यहां पर उनका ज्यादातर समय किताबों के बीच बीतता था। इसी दौरान इवा ने लायब्रेरी में भारत की संस्कृति से जुड़ी कई किताबें पढ़ीं। यहीं से उनका भारतीय संस्कृति के प्रति गहरा आकर्षण हुआ।
6. 1929 में इवा की मुलाकात विक्रम रामजी खानोलकर से हुई। विक्रम इंडियन आर्मी कैडेट के सदस्य थे। वे ब्रिटेन के सेंडहर्स्ट में रॉयल मिलिट्री अकेडमी में ट्रेनिंग के लिए गए थे। इवा रामजी से शादी करना चाहती थीं लेकिन उनके पिता इस बात के लिए राजी नहीं हुए।
7. इवा अपने इरादों की पक्की थीं। कुछ सालों बाद इवा भारत आ गईं और 1932 में दोनों ने लखनऊ में मराठी रीति रिवाज के साथ शादी कर ली। शादी के बाद इवा सावित्री बाई खानोलकर कहलाईं।
8. मेजर जनरल विक्रम की पत्नी बनने के बाद सावित्री का रूझान संस्कृत भाषा और भारतीय परंपरा के प्रति हुआ। जल्दी ही सावित्री ने संस्कृत, मराठी और हिंदी बोलना सीखा। सैन्य अधिकारी विक्रम खानोलकर की पहली पोस्टिंग औरंगाबाद में हुई। बाद में प्रमोशन पाकर जब वो बतौर मेजर नौकरी के लिए पटना पहुंचे तो सावित्री बाई भी उनके साथ गईं। बस यही से सावित्री की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई।
9. उन्होंने शास्त्रीय संगीत, डांस और पेंटिंग सीख ली। वे हमेशा यह कहती थी कि ''वास्तव में मैं भारतीय ही हूं जो गलती से यूरोप में पैदा हो गई।''
अगर कोई उन्हें विदेशी कहता तो उन्हें बुरा लगता था। पटना पहुंचकर सावित्री बाई ने पटना विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और संस्कृत नाटक, वेद, और उपनिषद का गहन अध्ययन किया। स्वामी रामकृष्ण मिशन का हिस्सा बनकर उन्होंने सत्संग तक सुनाए। संगीत और नृत्य में निपुण होने के लिए वो उस समय के नामी उस्ताद पंडित उदय शंकर के संपर्क में भी आईं और उनकी शिष्या बन गईं।सभी विधाओं में पारंगत होने के बाद उन्होंने सेंट्स ऑफ़ महाराष्ट्र और संस्कृत डिक्शनरी ऑफ़ नेम्स नामक दो पुस्तकें लिखकर नाम कमाया।
10. सावित्री को भारत के प्राचीन इतिहास की गहरी जानकारी थी। उनकी इसी जानकारी ने मेजर जनरल हीरा लाल अटल को प्रभावित किया। उन्होंने मेडल परमवीर चक्र को डिजाइन करने का प्रस्ताव सावित्री बाई के सामने रखा। जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
11. विस्तार से कहें तो 1947 में हुए भारत-पाक युद्ध में अदम्य साहस और अभूतपूर्व युद्ध कौशल दिखाने वाले वीरों को सम्मानित करने के लिए भारतीय सेना नए पदक तैयार करने पर काम कर रही थी। पदक तैयार करने की जिम्मेदारी मेजर जनरल हीरा लाल अटल को दी गई थी। अब तक मेजर जनरल अटल ने पदकों के नाम पसन्द कर लिये थे। इन पदकों को परमवीर चक्र, महावीर चक्र और वीर चक्र का नाम दिया गया था। इसी दौरान, मेजर जनरल अटल की मुलाकात सावित्री बाई से हुई।
12. इस मुलाकात के दौरान सावित्री बाई की भारतीय संस्कृति पर समझ, पौराणिक प्रसंग और अध्यात्मिक ज्ञान ने मेजर जनरल अटल को खासा प्रभावित किया था। सावित्री बाई की चित्रकला देखने के बाद मेजर जनरल अटल ने मन ही मन ठान लिया था कि वह पदक की डिजाइन सावित्री बाई से ही तैयार कराएंगे। एक दिन मेजर जनरल अटल ने यह प्रस्ताव सावित्री बाई के समक्ष रख दिया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। सावित्री बाई ने कुछ दिनों की मेहनत के बाद सभी पदों का डिजाइन तैयार कर मेजर जनरल अटल को भेज दिया।
11. इस डिजाइन को सहर्ष स्वीकृत कर लिया गया। सावित्री बाई द्वारा डिजाइन किया गया परमवीर चक्र सबसे पहले मेजर सोमनाथ शर्मा को प्रदान किया गया।
12. उसके बाद सावित्री ने महावीर चक्र, वीर चक्र और अशोक चक्र की डिजाइन भी तैयार की। विक्रम के इस दुनिया से चले जाने के बाद सावित्री ने अपना जीवन समाज सेवा को समर्पित कर दिया। 1990 में उनकी मृत्यु के समय तक वे रामकृष्ण मिशन का हिस्सा रहीं।
13. भारत का सर्वोच्च शौर्य सैन्य अलंकरण परमवीर चक्र मेजर सोमनाथ शर्मा से लेकर कैप्टन बिक्रम बत्रा तक, 21 वीर योद्धाओं को प्रदान किया जा चुका है।
14. परमवीर चक्र का मूल स्वरूप के तौर पर 3.5 सेमी व्यास वाले कांस्य धातु की गोलकार कृति तैयार की गई. जिसमें सावित्री बाई ने भारत की आदिकाल से अब तक की वीरता, त्याग और शांति के सूचक को परमवीर चक्र में शामिल किया था। इसमें इंद्र के वज्र के साथ महर्षि दधीचि के त्याग को दर्शाया गया है। परमवीर चक्र में चारों तरफ वज्र के चार चिह्न बनाए गए हैं। पदक के बीच में अशोक से लिए गए राष्ट्र चिह्न चक्र को जगह दी गई
है। पदक के दूसरी ओर कमल का चिह्न है, जिसमें हिंदी और अंग्रेजी में परमवीर चक्र लिखा गया है।
15. 1947 में हुए भारत-पाक युद्ध के बाद सावित्री बाई ने अपना जीवन युद्ध में विस्थापित सैनिकों की सेवा में समर्पित कर दिया। 1952 में मेजर जनरल विक्रम खानोलकर के देहांत हो जाने के बाद सावित्री बाई ने अपना जीवन अध्यात्म की तरफ़ मोड़ लिया और दार्जिलिंग के राम कृष्ण मिशन में चली गयीं। जीवन का अन्तिम समय उन्होंने अपनी पुत्री मृणालिनी के साथ गुजारा। 26 नवम्बर 1990 को उनका देहांत हो गया।