मैं स्त्री हूं : नए साल में समाज से मेरे 5 सवाल

साल बीता पर हम नहीं बीते... नारी के 5 प्रश्न 
 
साल दर साल समय बीतता है और हर साल के अंतिम मुहाने पर आकर खड़ी मैं सोचती हूं सारे सवाल तो वैसे ही हैं मेरे हाथों में बिना उत्तर के। हर साल सजाती हूं उम्मीदों के रंग विश्वास के कैनवास पर, हर साल सोचती हूं कुछ नया अपने लिए, हर साल चाहती हूं कुछ अच्छा अपने अपनों के लिए, लेकिन पाती हूं खाली हाथ, सूनी आंखें, खोखली बातें, कड़वे अनुभव, फीकी हंसी और गिरता सम्मान। 


 
पर मैं नारी हूं, शक्ति हूं, सत्यम, शिवम और सुंदरम की मोहक अभिव्यक्ति। मैं फिर उठती हूं, मैं फिर हंसती हूं, मैं फिर मुस्कुराती हूं, मैं फिर-फिर सपने देखती हूं, मैं फिर-फिर रंग भरती हूं जीवन के कैनवास पर। मैं फिर गुनगुनाती हूं जीवन का मधुरतम संगीत कोमलता की आशा में, आत्मविश्वास की भाषा में। मैं इस साल फिर सजा रही हूं अरमान, मिले मुझे मेरा अधिकार, मेरा सम्मान। 
 
हर वर्ष की तरह वर्ष 2015 में मैं पूरे समाज से चाहती हूं जवाब सिर्फ 5 सवालों के। सवाल सुरक्षा का, सवाल सम्मान का, सवाल स्नेह का, सवाल समानता का और सवाल सफलता का।   
 
सवाल सुरक्षा का : 
 
साल 2014 में जब अभिनेत्री शहनाज ट्रेजरीवाला ने प्रधानमंत्री मोदी और कुछ बड़े सितारों को अपनी सुरक्षा को लेकर खुला पत्र लिखा तो लगा कि यह मुद्दा कब तक इस धरा का नासूर बनता रहेगा? साल 2014 में दुनिया भर से महिलाओं से जुड़ी भयावह खबरें आई। ईरान के तेहरान में 26 साल की रेहाना जब्बारी को फांसी दी गई। सोशल मीडिया पर उसका खत खासा चर्चित रहा। राजधानी दिल्ली का उबेर टैक्सी कंपनी ड्राइवर द्वारा दुष्कर्म का कांड हैरान कर गया तो मई 2014 उत्तर प्रदेश के एक गांव में दो लड़कियों की लाश पेड़ से लटकी हुई पाई गई थी। पुलिस के अनुसार, दोनों लड़कियों के साथ पहले गैंग रेप किया गया था और फिर उन्हें मारकर पेड़ से लटका दिया गया था। नवंबर 2014 को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में सरकार की तरफ से नसबंदी का एक कैंप लगाया गया था। इसमें 3 घंटों में 83 महिलाओं की नसबंदी की गई थी, जिसमें कई महिलाओं की मौत हो गई। मैं कहां सुरक्षित हूं, घर, बाहर, सड़क, कार्यालय,वाहन, स्कूल, कॉलेज हर जगह छेड़छाड़ से लेकर हिंसा, बलात्कार से लेकर हत्या तक रोज पैदा होती स्थितियां खौफनाक हैं। 
 
* सवाल : क्या 2015 में मुझे (समूची नारी जाति को) अपने देश में अपनी जमीन पर, अपनी हवाओं में, अपने आकाश के नीचे सुरक्षा के साथ सांस लेने की अनुमति मिलेगी? 
 
 

सवाल सम्मान का : 
 
बलात्कार के बढ़ते मामलों के बीच कई ऐसे मामले हैं, मुद्दे और सवाल हैं जो महिलाओं के सम्मान को लेकर हैं। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार, अनाचार, दुराचार, छेड़खानी, घरेलू हिंसा के इतने किस्से हैं जो किसी अखबार की सुर्खियां नहीं बनते, किसी की नजर में जो अपराध नहीं कहे जाते और तो और स्वयं महिलाओं द्वारा समाज का रूख और नजरिया भांप कर अपनी नियति समझ स्वीकार कर लिए जाते हैं। इनका कोई आंकड़ा नहीं मिलेगा, इनका कोई रिकॉर्ड दर्ज नहीं है। जाहिर है,  हो भी नहीं सकता।


 

लेकिन क्या समाज कभी सोचेगा इस सवाल पर कि कितने-कितने स्तरों पर महिला का सम्मान कमतर हो रहा है, क्यों हो रहा है और इसे कैसे रोका जा सकता है? विडंबना है कि गालियां, प्रताड़ना, लताड़ और दुत्कार के बीच पीसती नारी नवरात्रि पर इसी देश में पूजी जाती है....!   
 
* सवाल : क्या 2015 में एक इंसान होने के नाते मुझे मेरा (समूची नारी जाति को) नैसर्गिक सम्मान मिलेगा? 
 
 

सवाल स्नेह का : 
 
नारी और पुरुष स्नेह के धागे से बंधे हैं लेकिन इसी साल बढ़ती रही प्यार के नाम पर विभत्स घटनाएं। कभी फेसबुक से शुरू लव, सेक्स और धोखे की कहानियां सुर्खियां बनीं तो कभी असहनीय और हिला देने वाली तेजाब से जला देने की नृशंस वारदातें। प्यार जैसा सुकोमल शब्द जहां मन में गुलाबी कोंपले अंकुरित करता है वहां यह प्यार का कौन सा स्वरूप है कि साथी के इंकार कर देने पर तेजाब से चेहरा झुलसाने का दुस्साहस कर बैठें। 


 
साल 2014 में तेजाबी हमले में चेहरा खो देने वाली लक्ष्मी एक नई उम्मीद बन कर उभरीं। लक्ष्मी को इंटरनेशनल वुमन ऑफ करेज अवॉर्ड मिला वहीं इसी साल फोटोग्राफर राहुल शर्मा ने तेजाब से झुलसी रूपा, ऋतु, सोनम और चंचल के साथ फोटो शूट किया। उन कुचली कलियों को आत्मविश्वास का मंच दिया। किंतु प्रश्न यह कि कैसे कोई प्यार में इंकार का इतना विकृत जवाब दे सकता है?     
 
*सवाल : क्या 2015 में मुझे (समूची नारी जाति को) सच्चा और सुकोमल प्यार नसीब होगा?  
 
 

सवाल समानता का : 
 
महिला और पुरुष के बीच भेदभाव इस देश का तीखा-कड़वा सच है। पिछले साल ना भ्रूण हत्या के आंकड़े कम हुए। ना ही महिला तस्करी के। भेदभाव का आलम यह कि कार्यालय हो या खेल, फिल्म हो या व्यवसाय हर जगह, हर कहीं महिला समानता का ढोल ही पीटा गया वास्तव में स्थितियां विपरित ही रही। बॉक्सर सरिता देवी ओलंपिक में भेदभाव की शिकार हुई और उन्होंने स्वाभिमानवश पदक लेने से इंकार कर दिया तो उन्हें ही निष्कासन का दंश झेलना पड़ा। देश भर से उन्हें वह सहयोग नहीं मिला जो अपेक्षित था।  


 


जानीमानी फिल्म अभिनेत्रियों ने अपने साक्षात्कारों में यह स्वीकारा कि उन्हें अभिनय के लिए अभिनेताओं की तुलना में कम दाम मिलते हैं। राजनीति में महिलाएं शीर्षस्थ पदों पर पहुंचीं लेकिन अनावश्यक विवादों से उनका नाता बना रहा। स्मृति ईरानी के ज्योतिषी के पास जाने को लेकर बवाल मचाया गया लेकिन यह सब जानते हैं कि बरसों से तमाम नेता अपने भविष्य को लेकर ज्योतिषियों के पास जाते रहे हैं।   
 
* सवाल : क्या 2015 में मेरे काम का, मेरी मेहनत का समानता के स्तर पर मूल्यांकन होगा? 
 
 

सवाल सफलता का : 
 
2014 में यकीनन सफलताएं मेरे हिस्से में ज्यादा आई। पड़ोसी देश की साहसी बच्ची मलाला का नोबल हो या मंगलयान (इसरो का उपग्रह) का मंगल की अंडाकार कक्षा (ऑरबिट) में सफलतापूर्वक प्रवेश। सफलता का परचम महिलाओं के ही हाथ में रहा। भारत के अंतरिक्ष शोध में मंगलयान का प्रवेश एक कालजयी घटना रही। इस अभियान की कामयाबी से भारत ऐसा देश बन गया है जिसने एक ही प्रयास में अपना अभियान पूरा कर लिया।


 


24 सितंबर 2014 को जब यह खुशनुमा खबर हवाओं से छनकर आई तो इसके साथ ही इसरो की बैंगलूरु स्थित प्रयोगशाला में महिला वैज्ञानिकों का एक समूह खुशी से झूमता नजर आया। मंगलयान के इस अभियान में इन वैज्ञानिकों का अतुलनीय योगदान रहा। परंपरागत साड़ी और सिर में महकती वेणियों के साथ उनकी वैज्ञानिक सोच का नूर उनके चेहरे से छलक रहा था। सफलता की हर गाथा जो बीते बरसों में महिलाओं ने लिखीं वे असीम संघर्ष और अटूट श्रम का सुपरिणाम थी। यह गाथाएं संदेश देती हैं कि अगर अनावश्यक सामाजिक बाधाएं ना होती तो यह और जल्दी लिखी जाती, ज्यादा सुनहरी लिखी जाती।  
 
*  सवाल : क्या 2015 में मेरी सफलताओं के लिए समाज के छोटे द्वार बड़े होंगे? 


 
 
2015 में हर सवाल अपना जवाब 'हां' और सिर्फ 'हां' सुनना चाहता है, आप से, आप सभी से.... 
 
  
 

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